09.07.2020 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 09.07.2020
Updated: 09.07.2020

Updated on 09.07.2020 20:18

👉 अहमदाबाद ~ अणुव्रत समिति द्वारा चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन
👉 दलखोला ~ चार भावना कार्यशाला का आयोजन
👉 टॉलीगंज ~ मंत्र दिक्षा कार्यक्रम
👉 टॉलीगंज ~ तेयुप शपथ ग्रहण समारोह
👉 कटक (उड़ीसा) ~ तेयुप का शपथ ग्रहण समारोह

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प्रस्तुति : 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Photos of Sangh Samvads post


Updated on 09.07.2020 11:29

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जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...

🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱

🕉️ *श्रृंखला ~ 80* 🕉️

*31. लीन रहें अपनी साधना में*

प्रस्तुत श्लोक में आचार्य अपनी बात एक घटना के माध्यम से प्रस्तुत कर रहे हैं।

एक दिन राजकुमार पार्श्व अपने महल के झरोखे में बैठे थे। उन्होंने देखा— नगरवासियों के झुण्ड एक दिशा की ओर जा रहे हैं। पता लगा कि नगर के बाहर एक 'कमठ' नाम का तापस पंचाग्नि तप की साधना कर रहा है। लोग हाथ में फल-फूल लेकर उसी की पूजा करने जा रहे हैं।

राजकुमार पार्श्व ने अवधिज्ञान से देखा— आग की धूनी में एक लक्कड़ में नाग-नागिन का जोड़ा जल रहा है। उस अज्ञान तप का भण्डाफोड़ करने और नाग-नागिन को धर्म का सहारा देने के लिए राजकुमार पार्श्व वहां आए। तापस को स्पष्ट शब्दों में कहा— 'तप की ओट में अनर्थ हो रहा है। बेचारा सर्प-युगल अग्नि में बुरी तरह झुलस रहा है।' यों कहकर अपने सेवक से उस लक्कड़ को बाहर निकलवाया। सावधानीपूर्वक उसको चीरा, झुलसा हुआ सर्प-युगल बाहर आ गया।

पार्श्वकुमार ने उस अर्धदग्ध सर्प-युगल को नमस्कार महामंत्र सुनाया। नमस्कार महामंत्र सुनते-सुनते दोनों ने प्राण त्याग दिए। धर्म-श्रवण के फलस्वरूप सांप मरकर धरणेन्द्र देव बना और नागिन पद्यावती देवी।

तापस पार्श्वकुमार के प्रति अत्यन्त रुष्ट हुआ। विवश होकर वह अन्य स्थान पर जाकर घोर तप करने लगा। घोर अज्ञानमय तप के कारण वह मरकर प्रेतयोनि में उत्पन्न हुआ। कुछ प्रेतात्माओं की प्रकृति ही ऐसी होती है कि उन्हें दूसरों को सताने में आनन्द आता है।

एक बार हम लोग हरियाणा में थे। एक परिवार ओड़िशा से दर्शनार्थ आया। एक भाई बोला— हम सारे परिवार के लोग दुःखी हैं। कोई प्रेतात्मा सता रही है।

मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री महाप्रज्ञ) पूछा— 'क्या वह बोलती है?'

'हां, बोलती है।'

मैंने कहा— 'हमारे सामने आए तो हम भी बात कर लें।' तब एक सदस्य में प्रेतात्मा का प्रवेश हुआ।

मैंने पूछा— 'तुम किस परिवार से संबंधित हो?'

वह बोला— 'इसी परिवार का हूं। इनका दादा ही हूं।'

मैंने कहा— 'इनके दादा हो, फिर क्यों सता रहे हो?'

'अब इनके साथ हमारा कोई संबंध नहीं है। हमें तो सताने में ही मजा आता है, चाहे पोता हो या बेटा, इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। जहां वैरानुबंध होता है वहां तो हम बहुत उग्र हो जाते हैं।'

कमठ के मन में पार्श्व के प्रति आक्रोश प्रबल हो गया। उसने सोचा— पार्श्व ने मेरी साधना में विघ्न डाला है। धूनी से लकड़ी बाहर निकालकर मेरा अपमान किया है। लोगों में मेरा तिरस्कार हुआ है। क्रोध की तीव्रता से वह वैरानुबंध संस्कारगत हो गया। शत्रु के साथ शत्रु का संबंध और मित्र के साथ मैत्री का अनुबंध चलता रहता है।

पार्श्व साधु बन गए। साधना कर रहे थे। ध्यान की मुद्रा में थे। उस समय कमठ ने धूलि की वर्षा की। समग्रता से आकाश को ढक दिया। इतनी अधिक धूल बरसायी कि आकाश आच्छन्न हो गया। सूर्य भी दृष्टि से ओझल हो गया, पर पार्श्व के पास अपनी साधना का अतिशय था। धूल ऊपर उठती गई, पार्श्व पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। पार्श्व का आभामंडल किंचित् मात्र भी दूषित नहीं हुआ।

कमठ सारा दृश्य देख रहा था। आखिर हार गया, थक गया। सिद्धसेन कहते हैं— कमठ की उस धूल से आपका तो क्या, आपको छाया का भी कुछ नहीं हुआ, किन्तु उन रजों से वह बेचारा बंध गया। रज का एक अर्थ है— धूल और दूसरा अर्थ है कर्म-मल। कमठ ने रजें उछाली पर उसका प्रयोजन सिद्ध नहीं हुआ। आपने कुछ नहीं किया फिर भी उसने कर्म का बंधन कर लिया।

प्रभो! यह आपका अतिशय है, विशेषता है, आपकी पवित्रता है, किन्तु कमठ का नुकसान हो गया। उसने रजें आप पर उछाली, वे आप पर नहीं गिरी, स्वयं उस पर ही जाकर गिरीं। परिणामस्वरूप कर्म का बंधन कर लिया।

एक बोधपाठ इस प्रसंग में प्रत्येक व्यक्ति को लेना है कि दूसरों पर रजें न उछालें। दूसरों पर धूल न गिराएं। आजकल तो रजों की जगह जूते उछाले जाते हैं। हम दूसरों पर रजें व जूते न उछालें। इस प्रकार के व्यवहार से किसी दूसरे का तो अहित होता है या नहीं, स्वयं का अहित अवश्य होता है। इस घटना से पार्श्व का कोई अहित नहीं हुआ, किन्तु स्वयं कमठ का अहित हो गया। उसके बहुत भारी कर्मों का बंध हो गया। इसलिए हम इस घटना से सीख लें कि दूसरों पर धूल न उछालें। बस, अपनी साधना में लीन रहें। दूसरा हमारी छाया को भी प्रभावित नहीं कर सकेगा।

*आचार्य सिद्धसेन दूसरों का अनिष्ट नहीं सोचने की बात किस प्रकार बता रहे हैं...?* जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 323* 📜

*श्रीमद् जयाचार्य*

*संघर्षों के घेरे*

*विद्रोह की तैयारी*

मुनि चतुर्भुजजी छोगजी के बड़े भाई थे। वे अत्यन्त चालाक और स्वार्थ-परायण व्यक्ति थे। उनको दृढ़ विश्वास था कि जयाचार्य छोगजी को ही अपना उत्तराधिकारी बनायेंगे। उनके आचार्य बनने पर मेरा सम्मान बढ़ेगा। यदा-कदा अन्य मुनियों के सम्मुख वे अपनी उक्त भावना को प्रकट भी करते रहते थे। मुनि मघवा को युवाचार्य बना देने पर उनका स्वप्न भंग हो गया। वे बौखला उठे। तभी से उन्होंने संघ में भेद डालने के प्रयास प्रारम्भ कर दिये। वे छिप-छिपे अनेक मुनियों तथा श्रावकों के सम्मुख आचार्यश्री की निंदा करने लगे।

जयाचार्य के कानों तक शीघ्र ही सारी स्थिति पहुंच गई। उन्होंने मुनि चतुर्भुजजी को बुलाया और सभी के सम्मुख उपालम्भ दिया। उन्होंने उसे अपना घोर अपमान समझा। प्रतिवाद तो नहीं कर सके, परन्तु अन्दर ही अन्दर जल-भुन गये। उन्होंने निश्चय किया कि इस अपमान का बदला अवश्य लूंगा। मौन रहने से अब काम नहीं चलेगा। मैं जब इनके दोषों का विवरण जनता के सम्मुख रखने लगूंगा, तभी इन्हें आटे-दाल के भावों का पता चलेगा।

मुनि चतुर्भुजजी अग्रणी बनकर स्वतंत्र विहार करने के बहुत इच्छुक थे, परन्तु जयाचार्य ने उन्हें कभी ऐसा अवसर प्रदान नहीं किया। इसका भी उनके मन में भारी रोष था। समय-समय पर प्रदत सामूहिक शिक्षाओं के विषय में उनका विचार था कि वे सब उन्हीं को लक्ष्य करके दी जा रही हैं। वे सोचते थे कि मर्यादा-निर्माण भी उन्हें चारों ओर से घेरने के लिए किया जा रहा है। उन सभी स्थितियों का प्रभावशाली ढंग से सामना करने के लिए उन्होंने अन्य साधुओं को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया।

विद्रोह करने की तैयारी में उन्होंने अनेक ऐसे साधुओं को अपने साथ मिलाया जो विभिन्न कारणों से जयाचार्य से असन्तुष्ट थे। कपूरजी, जीवोजी, संतोजी, छोटे छोगजी तथा कस्तूरजी आदि अनेक मुनि उनके उस विरोध-अभियान में सम्मिलित हो गये।

*विस्फोट*

विरोध का प्रथम विस्फोट जयाचार्य के पदासीन होने के लगभग दो वर्ष पश्चात् ही हो गया था, परन्तु यह कोई बहुत बड़ा विस्फोट नहीं था। उसमें छोटे जीवोजी, धनजी तथा हमीरजी— ये तीनों मुनि एक साच संघ से पृथक् हो गये। जयाचार्य उस समय मालव—यात्रा का निश्चय करके कानोड़ पधार रहे थे। मार्गस्थ डबोक गांव में उक्त घटना घटी। पता चलने पर राजनगर-निवासी श्रावक लिखमीचंदजी ने उनसे वार्तालाप किया। उससे मुनि जीवोजी तो संभल गये और अपनी मूल का प्रायश्चित्त करके वापस संघ में आ गये। शेष दोनों मुनि पृथक् रहकर काफी निंदात्मक प्रचार करते रहे।

दस वर्षों के पश्चात् विक्रम सम्वत् 1920 में दूसरा सामूहिक विस्फोट हुआ। उसमें मुनि चातुर्भुजजी का विशेष हाथ था। चूरू-चतुर्मास के पश्चात् विहरण करते हुए जयाचार्य माघ शुक्ला 13 को कसूम्बी से लाडनूं पधारे। उस दिन कपूरजी, जीवोजी, सन्तोजी और छोटे छोगजी— ये चारों मुनि प्रच्छन्न रूप से पीछे रह गये। सायंकाल तक नहीं पहुंचे तब समझ लिया गया कि वे संघ से पृथक् हो गये हैं।

*मुनि चतुर्भुजजी द्वारा रचे गए एक मायाचार...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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Posted on 09.07.2020 07:51

🌏 *इस पंचम आरे में सतयुग का दर्शन करना हो तो..,*
🙏 *परम् पूज्य गुरुदेव सामने विद्यमान है..*

🎼 *सतयुग की पहचान हो..*
https://youtu.be/8ipt7uzUxpg

☄️ *समय के झरोखे से..*
✨ *"मुख्य मुनि श्री" द्वारा गीत के माध्यम से अभिव्यक्त भावों के कुछ अंश..*

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🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 जन्मोत्सव पर "मुख्य मुनि" *मुनि श्री महावीर कुमार* द्वारा गाया गया श्रद्धा-गीत - "सतयुग की पहचान हो सचमुच में भगवान ....


🧘‍♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘‍♂

🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन

👉 *#आहार और #स्वास्थ्य* : *श्रृंखला १*

एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लें।
देखें, जीवन बदल जायेगा, जीने का दृष्टिकोण बदल जायेगा।

प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
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