Jhini Charcha by Jayacharya Dhal 5 Part 3

Published: 16.03.2024
Jhini Charcha was  written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics.  Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language. 
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice. 
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal 5 Stanza 28 to 43

ढाल 5 पद्य 28 से 43
गुणस्थान और भाव

२८. पहिलो गुणठाणो दोय भाव छे, खयोपशम परिणामीको रे।

खयोपशम भाव मिथ्यादृष्टि कही ते, अनुयोगद्वारे तहतीको रे।।

प्रथम गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। अनुयोगद्वार सूत्र में मिथ्यादृष्टि को क्षायोपशमिक भाव कहा गया है।

२९. दूजो गुणठाणो दोय भाव छे, खयोपशम भाव परिणामीको रे।

खयोपशम-समदृष्टि कही ते, वमतां पिण सम्यक्त गुण नीको रे।।

दूसरा गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायोषशमिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। सम्यम्दृष्टि को क्षायोपशमिक भाव कहा गया है। वहां सम्यक्त्व छूट रहा हैं, फिर भी उस अवस्था में सम्यक्त्व (सास्वादन सम्यक्त्व) का गुण विद्यमान है।

३०. तीजो गुणठाणो दोय भाव छे, खयोपशम भाव परिणामीको रे।

खयोपशम भाव मिश्रदृष्टि कही ते, अनुयोगद्वार सधीको रे।।

तीसरा गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। अनुयोगद्वार में मिश्रदृष्टि को क्षायोपशमिक भाव कहा गया है।
३१. समचे चोथो गुणठाणो किसो भाव छे? च्यार भाव कहीजे रे।

एक-एक जीव री पूछा करे तो, उत्तर इण परि दीजे रे।।

समुच्चय की दृष्टि से चौथा गुणस्थान किस भावरूप है? वह चार भाव वाला है। एक-एक जीव की दृष्टि से पूछा जाए तो उत्तर इस प्रकार होगा—

३२. उपशम-सम्यक्त पावै जिण में, ते चोथो गुणठाणो दोय भावो रे।

उपशम-भाव ने परिणामिक छै, उपशम-सम्यक्त न्यावो रे।।

जिस चतुर्थ गुणस्थान में औपशमिक सम्यक्त्व होता है, वह द्विभावात्मक-औपशमिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। इसका न्याय यह है कि उसमें औपशमिक सम्यक्त्व है।

३३. खायक-सम्यक्त पावे जिण में, ते चोथो गुणठाणो दोय भावो रे।

खायक-भाव ने परिणामिक छे, खायक-सम्यक्त न्यावो रे।।

जिस चतुर्थ गुणस्थान में क्षायिक सम्यक्त्व होता है, वह भी द्विभावात्मक -क्षायिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। क्योंकि उसमें क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त है।

३४. खयोपशम-सम्यक्त पावै जिण में, ते चोथो गुणठाणो दोय भावो रे।

खखयोपशम -भाव ने परिणामिक छै, खयोपशम-सम्यक्त न्यावो रे।।

जिस चतुर्थ गुणस्थान में क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होता है, वह भी द्विभावात्मक -क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। क्योंकि उसमें क्षायोपशमिक सम्यक्त्व प्राप्त है।

३५. पांचमो गुणठाणो दोय भाव छे, खयोपशम-भाव परिणामीको रे।

देशव्रत थी पांचमो बाज्यो, ते संवर पदारथ नीको रे।।

पांचवां गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। प्रस्तुत गुणस्थान देश्रत के कारण नव पदार्थों में संवर पदार्थ भी है।

३६. छठो सातमो गुणठाणो दोय भाव छै, खयोपशम -भाव परिणामीको रे।

सर्वव्रत थी छठो सातमों बाज्यो, ते चारित्र संवर नीको रे।।

छठा और सातवां गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव वाले होते हैं। ये दोनों पूर्ण व्रत के कारण चारित्र संवर भी कहलाते हैं।

३७. आठमो नवमो दोय भाव छै, खयोपशम-भाव परिणामीको रे।

ए पिण चारित्र गुण थी निरमल, संवर पदारथ नीको रे।।

आठवां और नोवां-ये दो गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव वाले होते हैं। ये दोनों चारित्र गुण की निर्मलता के कारण संवर पदार्थ में होते हैं।

३८. दशमो गुणठाणो दोय भाव छे, खयोपशम-भाव परिणामीको रे।

सूक्षम-संपराय-चारित्र थी दसमो, निरमल निजगुण नीको रे।।

दसवां गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायोपशमिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। प्रस्तुत गुणस्थान सूक्ष्मसम्पराय चारित्र के कारण निर्मल निज गुण होता है।

३९. ग्यारमो गुणठाणो दोय भाव छे, उपशम-भाव परिणामीको रे।

उपशम-चारित्र थी ए बाज्यो, संवर पदारथ नीको रे।।

ग्यारहवां गुणस्थान द्विभावात्मक - औपशमिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। प्रस्तुत गुणस्थान औपशमिक चारित्र के कारण संवर पदार्थ में होता है।

४०. बारमो गुणठाणो दोय भाव छे, खायक-भाव परिणामीको रे।

खायक-चारित्र थी ए बाज्यो, संवर पदारथ नीको र।।

बारहवां गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। प्रस्तुत गुणस्थान क्षायिक चारित्र के कारण संवर पदार्थ में होता है।
४१. तेरमो गुणठाणो दोय भाव छे, खायक परिणामीको रे।

केवलज्ञान दर्शण थी बाज्यो, निर्जरा पदारथ नीको र।।

तेरहवां गुणस्थान द्विभावात्मक - क्षायिक और पारिणामिक भाव वाला होता है। केवलज्ञान और केवलदर्शन की दृष्टि से वह निर्जरा पदार्थ में होता है।१

४२. चवदमो गुणठाणो परिणामिक छे, अजोग संवर सूं कहिये रे।

ते अजोग-संवर च्यार भाव नहीं छै, तिण सूं परिणामिक इक लहिये रे।।

चौदहवां गुणस्थान केवल पारिणामिक भाव वाला होता है। बह अयोग संवर चार भाव वाला नहीं होता, इसलिए प्रस्तुत गुणस्थान केवल पारिणामिक भावात्मक होता है।

४३. पांचमी ढाल उगणीसे बारे, बेसाखर सुदि पूनम तिथ सारो रे।

भिक्खू भारीमाल ऋषराय प्रसादे, 'जय-जश' हरष अपारो रे।

पांचवीं गीतिका सम्पन्न। रचनाकाल वि. सं. १९१२ वैशाख शुक्ला पूर्णिमा। भिक्षु, भारीमाल और ऋषिराय के प्रसाद से 'जय-जश गणपति' को अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है।


Sources
From: Sushil Bafana
Provided by: Sushil Bafana
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