Short News in English
Location: | Kelwa |
Headline: | Avoid Ego After Getting Post◄ Acharya Mahashraman |
News: | Acharya Mahashraman told that people should avoid ego after getting post. He told to Upasak to stay polite. They will visit many city during Paryushan and that time they should benefit people with knowledge and sadhana. Good behaviour impress others. |
News in Hindi
‘सत्ता मिले तो अहंकार से बचें’- आचार्य महाश्रमण
केलवा 27 जुलाई जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने श्रावक-श्राविकाओं से आह्नान किया कि वह अपने मन में अहंकार के भाव का प्रवेश न होने दें। अहंकार स्वयं एवं समाज के लिए घातक है। जो लोग सत्ता में आते हैं, उन्हें अहंकारी नहीं बनना चाहिए। विनम्रता के साथ व्यवहार करना चाहिए।
आचार्य ने संबोधि के तीसरे अध्याय में वर्णित पुण्य को परिभाषित करते हुए कहा कि मनुष्य की ओर से किए जाने वाले शुद्ध कर्म से निर्जरा में आशातीत वृद्धि होती है। पुण्य को बंधन बताते हुए उन्होंने कहा कि पुण्य के साथ पाप का भी प्रादुर्भाव होता है। इसलिए साधक को ध्यान और साधना करते समय इससे प्राय: बचना चाहिए। उसे कभी किसी वस्तु की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए। शुद्ध मन से की गई साधना से फल की प्राप्ति अवश्य होती है। उन्होंने पाप कर्म के संदर्भ में कहा कि मन के भीतर कषाय उत्पन्न होने से इसकी उत्पति होती है। इसका दुष्प्रभाव मन को विचलित कर झकझोर देता है।
प्रबल पुण्य से मिलता है तेरापंथ का आचार्यत्व:
आचार्य ने कहा कि प्रबल पुण्य से ही तेरापंथ जैसे शासन का आचार्य बनने का अवसर मिलता है, जो पुण्यशाली होता है। उसकी बातों को समाज में तवज्जो दी जाती है। सब जगह सम्मान प्राप्त होता है। अन्यथा उसकी बातों को नजरंदाज कर दिया जाता है। उपासक प्रशिक्षण शिविर में ज्ञान को ग्रहण कर रहे उपासक-उपासिकाओं से उन्होंने आह्नान किया कि वे धर्म, साधना और ज्ञान से लोगों को लाभान्वित कराने की दृष्टि से गांव-गांव जाएंगे। ऐसी स्थिति में उनका व्यवहार विनम्रशील बनाना अत्यंत आवश्यक है। व्यवहार में शालीनता और विनम्रता का भाव छलकना चाहिए। आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती का प्रसंग सुनाते हुए आचार्य ने कहा कि हमारा व्यवहार अच्छा हो, तो सामने वाला भी प्रभावित होगा। व्यक्ति में अहिंसा का भाव होगा, तो उसके दुश्मन के आचरण में भी परिवर्तन आ सकता है।
सतत साधना करने की आवश्यकता:
मंत्री मुनि सुमेरमल ने साधना, ध्यान और आराधना की प्रक्रिया को सतत रखने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि एक ही क्रिया सघनता से करने से हमें आत्मानुभूति का अहसास होता है। बाहरी और दिखावे के तौर पर की गई साधना से किसी तरह की फल की आशा करना बेमानी है। हम भीतर से अपने मन को ज्ञान रूपी खजाने से मजबूत बनाएंगे, तो इसकी जीवन में श्रेष्ठ अनुभूति होगी। इस दौरान तेरापंथ महिला मंडल भीलवाड़ा की सदस्याओं ने गीत प्रस्तुत किया।