Pravachan
Delhi
24.09.2014
आज की प्रेरणा.......
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण.......
आत्मा और शरीर दो तत्व है | सिद्धांततः आत्मा का अलग अस्तित्व है और
शरीर का अलग | जब दोनों साथ रहते हैं तब जीवन की स्थिति बन जाती है|
न केवल आत्मा जीवन और न केवल शरीर जीवन | आत्मा और शरीर का
मिलन जीवन और अलगाव मृत्यु | जब सूक्ष्म शरीर से भी आत्मा अलग हो
जाती है तब मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है | जीवन अध्रुव, शरीर अध्रुव, ऐसे में
धर्म की साधना करनी चाहिए | जब तक बुढ़ापा पीड़ित न करे, इन्द्रियां क्षीण
न हो, तब तक धर्म की साधना कर लेनी चाहिए | साधना का आध्य साधन
है - शरीर | हमारे जीवन में अनुशासन का का भी महत्व है, आत्मानुशासन
का भी | आचार्य तुलसी ने एक नारा दिया - निज पर शासन, फिर अनुशासन|
अनुशासन के बिना यह लोकतंत्र का देवता भी विनाश व मृत्यु को प्राप्त हो
जायगा | लोकतंत्र - जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा होने वाला
शासन | भारत केवल कृषि भूमि ही नहीं, ऋषि भूमि भी है | संत वह होता है,
जो शांत होता है | भारत में ज्ञान का खजाना भी है, मुझे कमी लग रही है तो
नैतिक मूल्यों की | देश के लिए पांच प्रकार का विकास वांछनीय है - भौतिक,
आर्थिक, शैक्षिक, नैतिक व आध्यात्मिक |
दिनांक - २४ सितम्बर, २०१४
ASHOK PARAKH
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