Pravachan
Delhi
06.10.2014
आज की प्रेरणा........
प्रवचनकार - आचार्य महाश्रमण......
हमारे जीवन में अनेक प्रिवृतियाँ होती है | उनमें एक महत्वपूर्ण प्रिवृति है -
चलना | चलना कैसे चाहिए? "जयं चरे" जयणा पूर्वक चलें, संयम पूर्वक
चलें | साधू को मंद गति से, गज गति से, भेड़ की तरह दृष्टि नीचे रखकर
ईर्या समिति को संभालकर चलना चाहिए|नीचे देखकर चलने के चार लाभ
बतलाए गए हैं| खोई हुई वस्तु मिल जाती है, दया पलती है, हिंसा टलती है
व दृष्टि संयम हो जाता है | गृहस्थ भी यदि ध्यान रखकर चले तो चलते
चलते साधना हो सकती है| चलते समय न खाए, न बात करे, न स्वाध्याय
करे, एकाग्र चित्त होकर चले व विचारों के प्रवाह को सीमित करे | ऐसे में
सहज धर्म साधना संभव है | दुनियां में सबसे बड़ा आकाश, सबसे आसान
दूसरों की निंदा करना, सबसे कठिन अपने आप को पहचानना और सबसे
गतिशील अपना मन | हम भी चलें और अहिंसा की साधना भी चलती रहे|
तो सार यह है कि चलने की उपयुक्त विधि के द्वारा हम अपनी धार्मिकता
का विकास कर सकते है |
दिनांक - 6.10.2014
ASHOK PARAKH
9233423523