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🌍आज की प्रेरणा 🌎
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - कैसे हो भाव विशुद्धि?
प्रवचनस्थल - विराटनगर
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --
यह पुरुष अनेक चित्तों वाला होता है,विभिन्न प्रकार के भाव उभरते रहते हैं| कभी आक्रोश तो कभी क्षमा, कभी अहंकार तो कभी झुकना, कभी माया तो कभी ऋजुता, कभी संतोष तो कभी लोभ| निषेधात्मक व विधेयात्मक भाव अपना रूप दिखाते जाते है| कर्म बंधन के क्षेत्र में भाव मुख्य तथा वाणी और शरीर गौण| भावना से कल्याण व भावना से अकल्याण, जैसी भावना वैसी सिद्धि| मोह कर्म के संयोग व वियोग से शुद्धि व अशुद्धि जुड़ी रहती है| भाव ही बंध और मोक्ष का कारण है| सोलह भावना के अनुचिंतन से चित्त शुद्धि
व वैराग्य वृद्धि होती है| मन के पार जाना एक विशेष बात है जहाँ निर्विचार की स्थिति बन जाती है| पहले शुद्ध भावना और फिर भाव मुक्ति| डाक्टर द्वारा पेट फाड़ना व डाकू द्वारा पेट फाड़ने में भावना का अन्तर होता है, एक प्राण रक्षा के लिए पेट फाड़ता है और दूसरा प्राण हनन के लिए | मानव जीवन को दुर्लभ बतलाया गया है | जो मानव जीवन पाकर भी धर्म नहीं करता वह प्राप्त चिंतामणि को समुद्र में फेंकने जैसा है| आदमी मरकर देव गति,
देव गति, नरक गति,मनुष्य गति या मोक्ष में भी जा सकता है| आदमी एक बुद्धि सम्पन्न एक बुद्धि विपन्न,एक स्वस्थ एक निरोग, एक यशस्वी एक तिरस्कृत यह सब पूर्व संचित कर्म व पुन्य-पाप का कारण है.अतः आदमी को पापकारी प्रवृतियों से बचना चाहिए|
दिनांक - १९ सितम्बर, २०१५
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महावीर समवसरण से पूज्य गुरुदेव के प्रवचन कालीन पावन दृश्य।दि.19.09.2015
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