15.10.2015 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 16.10.2015
Updated: 05.01.2017

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यदि कोई सुधरना नहीं चाहता तो उसको ब्रह्मा भी नहीं बदल सकते
दुराग्रही व्यक्ति को कोई भी बदल नहीं पाता --today pic

व्यसन अगर बीमारी है तो बीमारी साध्य है इलाज संभव है

यदि व्यसनी को बीमार समझकर उसकी आलोचना न करते हुए, उसको नीचा न दिखाते हुए उस पर दया की जाए और दया कर के उसे सुधरने का अवसर दिया जाए और उपाय बताया जाए तो उसका सुधार संभव है।

उपदेश आदेशात्मक हो तो व्यक्ति को हीन महसूस होता है और उसे मार्ग कठिन प्रतीत होता है इससे सुधार जटिल हो जाता है।
किसी को झलिल करने से उसकी आत्मशक्ति नहीं बढ़ती..
किसी को निचा दिखाने से उसमे स्फूर्ति नहीं आ सकती
इसीलिए सर्वप्रथम किसी को सुधारने के लिए खुद में सुधार होना आवश्यक है। उसके बाद ही हम किसी अन्य व्यक्ति को सुधार सकते है और इस प्रक्रिया को प्रारंभ करने से एक निर्मल भविष्य देखने मिल सकता है।

ऊर्जा(energy) और रसायन(chemical) असंतुलित होने से व्यक्ति बीमार पढता है।अगर यह दोनों चीज़े संतुलित हो जाए तो अपनी भावनाओं, विचारों और बर्ताव में संतुलन आ जाता है, स्वास्थ्य लाभ होता है और इस प्रकार ख़ुद संतुलित होने पर हम दूसरों में सुधार ला सकते है।

सुधार की इकाई हम ख़ुद है।

* करुणा भाव सुधार के लिए सर्वप्रथम आवश्यक है।
* निंदा से नहीं सद्भावना से ही कल्याण होता है।
* एक साधु के प्रेम से हत्यारा भी साधु बन सकता है...और
एक गृहस्थ की घृणा से साधु भी असाधु बन सकता है।
* ह्रदय में सद्भावना होगी, करुणा भाव होगा तभी अपने अंदर सेवा की भावना आएगी और उस भावना से उसका सुधार प्रांरभ होगा।
* व्यसन रोगी के प्रति सद्भावना ही सुधार में सबसे महत्व पूर्ण है जो व्यसनी को भी आशा जगाएगी।
* अपना बनाकर जब किसी को सुधारते है तो उसके अन्दर सुधरने की भावना जागृत होती है। पराया बनकर यह संभव नहीं ।
* भावनाओ को पवित्र करना ही लक्ष्य है।

* जिस क्रिया में अपना स्वार्थ हो और दुसरो को पीड़ा पहोंचती हो उसे पाप कहा जाता है।

* उपदेश सुनने मात्र से कार्य नहीं होता, उसे सुनकर समझा जाता है, आचरण किया जाता है तब जाकर अपने अंदर और वातावरण में पवित्रता आती है।
- संत श्री ध्यानसागर
जिनवाणी प्रवचन, दिनांक-१४ अक्टूबर,२०१५th today day da

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