24.10.2015 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 25.10.2015
Updated: 05.01.2017

News in Hindi

Source: © Facebook

❖ प्रतिमा-प्रगटीकरण! ❖ धरती से निकलेंगे भगवान्... ❖दर्शन देंगे जिनेन्द्र प्रभु...... ❖ चलिये सुरूरपुर... exact 10km before Baraut.

✈ भूगर्भ से प्रकट होने वाली चमत्कारिक, अलौकिक, अद्वितीय जिन-प्रतिमा के प्रथम-दर्शन के लिए! जी हाँ! आचार्य कुशाग्रनन्दी महाराज की भविष्यवाणी के अनुसार जिसका हमें बरसों से इंतज़ार था वो घड़ी अब आ गयी... दिनांक 25-10-2015 रविवार के दिन आचार्य विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी महाराज के आशीर्वाद और सान्निध्य में, बह्मचारी नवीन 'सागर' और बह्मचारी सुरेश बज़ जी (दादाजी) के निर्देशन में और धर्म-रक्षक देवों के परम-सहयोग से सुरूरपुर कलां बागपत (उ.प्र.) में ज़मीन से जिन-बिम्ब जी निकाले जायेंगे। प्रभु के भव्य आगमन को साक्षात् देखने के लिए आप सब भी सपरिवार आमन्त्रित हैं।

सादर जय जिनेन्द्र!!
🔸विपिन जैन (बॉबी) 09808277686, 09058969080
🔹 हर्षित जैन 08923166366, 07895943257
🔹अमित जैन 09456420863 -

सुरूरपुर कलां देहली से 50 kms, शाहदरा से 41 kms, सहारनपुर से 110 kms की दूरी पर बागपत - बडौत के बीच देहली - सहारनपुर राज्य मार्ग पर है...

निवेदक - सकल दिगम्बर जैन समाज सुरूरपुर कलां (बागपत):)

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❖ भक्तामर स्तोत्र के 3rd and 4th काव्य का अद्भुत विवेचन -- क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी महाराज द्वारा [विशेष रूप से कल्पांत-काल, कल्प काल, इन्द्र का विशेष वर्णन ] ✿

बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ, स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोहम् ।
बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥

स्तुति को तैयार हुआ हूँ, मैं निर्बुद्धि छोड़ि के लाज।
विज्ञजनों से अर्चित है प्रभु! मंदबुद्धि की रखना लाज॥
जल में पड़े चंद्र मंडल को, बालक बिना कौन मतिमान।
सहसा उसे पकड़ने वाली, प्रबलेच्छा करता गतिमान ॥3॥

Thy throne has been adored by angles Almighty. Myself without knowledge shameless try to do this
Expect the boy who else tries to catch the moon in water, Only because he doesn’t know the sky as the Moon place. |3|

Explanation - इस शलोक में आचार्य श्री ने चंद्रमा के लिए 'शशांक' शब्द प्रयोग किया 'शश है अंक में जिसके' शश मतलब खरगोश और अंक मतलब गोदी, ये कवियों की कल्पना है उनको चन्द्रमा में खरगोश जैसा कोई आकृति दिखाई दे गयी तो उन्होंने चंदमा को शशांक कह दिया, वैसे कहा भी गया है 'जहा ना पहुचे कवि, वहा पहुचे रवि ' | देव लोगो द्वारा पूजित है पाद-पीठ जिनका ऐसे जिनेन्द्र, मतलब भगवान् जब राज्य अवस्था में सिंघ्हासन बैठते थे तो उनके पैर रखने का स्थान [चोकी] तो उस स्थान की भी देव लोगो ने पूजा की थी, तो आप बोल सकते है सम्यक्दर्ष्टि तो सिर्फ वीतरागता और रत्न-त्रय की पूजा करता है नहीं लेकिन ऐसा एकांत मिथ्यात्व नहीं है, अब देखो जब बालक तीर्थंकर का अभिषेक किया जाना होता है तब पहले इंद्र आदि देव लोग उस शिला की पूजा करते है जिस पर भगवान् का अभिषेक होना है, इसी प्रकार जब पंचकल्याणक होते है पहले उस वेदी और शिला को मंत्रित किया जाता है उसको पूज्य बनाया जाता है और फिर 'जगत पूज्य' को उस वेदी पर विराजमान करते है | तो ऐसे भगवान् की स्तुति करने के लिए मैं भी उत्कंठित बुद्धि वाला हो रहा हूँ जबकि मेरे पास इन्द्र जैसा बुद्धि नहीं है जबकि मैं जानता हूँ की इन्द्र भी आपके गुणों का वर्णन कर पाने में समर्थ नहीं था तो भी मैं स्तुति शुरू करने जा रहा हूँ, और इसका द्रष्टान्त के लिए आचार्य श्री कहते है जैसे एक बालक पानी में पड़े चंद्रमा के प्रतिबिम्ब को पकंदने के लिए एकदम बिना सोचे झपटता है, और बुद्धि के ऐसे ही मैं भी बिना बुद्धि के बालक के सामान कार्य करने जा रहा हूँ और भगवान् की स्तुति करने जा रहा हों जिनकी स्तुति इन्द्र भी नहीं कर पाया और आपके गुण ही अनंत है तो उसको शब्दों में कैसे बाँधा जा सकता है, तो ये मेरा सिर्फ बाल-हट और मैं निर्लज हूँ जो ऐसा काम करने जा रहा हूँ | 3|

इन्द्र कितने है तो 16 स्वर्ग में 12 इन्द्र होते है, 1st, 2nd, 3rd and 4th में एक एक इन्द्र, 13th, 14th, 15th and 16th में भी एक एक इन्द्र, अब बचे 5th से 12th स्वर्ग, इनमे 5th and 6th का एक, 7th and 8th का एक, 9th and 10th का एक, 11th and 12th का एक, इस तरह टोटल सोलह स्वर्ग में 12 इन्द्र होते है |
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वक्तुं गुणान् गुण-समुद्र! शशांक-कांतान्, कस्ते क्षमः सुर-गुरु-प्रतिमोपि बुद्धया ।
कल्पांत-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं, को वा तरीतु-मलमम्बु निधिं भुजाभ्याम् ॥4॥

हे जिन! चंद्रकांत से बढ़कर, तव गुण विपुल अमल अति श्वेत।
कह न सके नर हे गुण के सागर! सुरगुरु के सम बुद्धि समेत॥
मक्र, नक्र चक्रादि जंतु युत, प्रलय पवन से बढ़ा अपार।
कौन भुजाओं से समुद्र के, हो सकता है परले पार ॥4॥

Bright like the Moon Thy features can’t be explained there, Even by angle preceptor with wide good knowledge
How can a man swim off sea vomiting the crocodiles, At the time of world destruction really impossible

हे गुणों के समुद्र! आपके चंद्रमा जैसे मनोहर गुणों को कह पाने में कौन समर्थ है? मतलब कोई नहीं, क्योकि जब इन्द्र भी आपके समस्त गुणों के नहीं गा पाया और हार गया,आदिपुराण में इन्द्र भगवान् की स्तुति प्रारम्भ करना शुरू करता है लेकिन शुरू के 33 काव्यो में गुणों की भक्ति करता है और फिर हार जाता है और बोलता है भगवान् आपके गुण अनंत है तो कैसे मैं शब्दों में बाँध सकूँगा तो फिर कहता है की अब मैं आपके 1008 नाम लेकर आपके गुणों की स्तुति करूँगा और इन्द्र क्या इन्द्र की सभा में गुरु जैसा सम्मान पाने वाले और इन्द्र के भी गुरु कहलाने वाले महत्तर जाति के सामानिक देव, जिनको ब्रह्स्पति भी कहा जाता है अगर वो स्वयं भी आपके गुण-गान करना चाहे तो भी नहीं कर पाएंगे |

फिर आगे द्रष्टान्त देते हुए कहते है --- जिस समुद्र में प्रलयकाल में मतलब काल में अंत में होने वाली प्रलय में समय में भड़के हुए धडियाल और मगरमच्छो के झुण्ड विधमान है और समुद्र में भयंकर तूफ़ान है की जब लहरे उपर उठे तो एक तरफ से समुद्र का हल दिखने लग जाए ऐसा भयंकर तूफ़ान जिसके सामने सुनामी, कैटरिना आदि कुछ नही, जबकि सुनामी से ही क्या हाल हो गया तो जब प्रयाल्काल का तूफ़ान समुद्र में हो जिसका कोई कल्पना नहीं की जा सकती, तो क्या ऐसे समुद्र को कोई पार कर सकता है? नहीं असंभव है, किसी भी भुजाओ में इतनी शक्ति नहीं की कोई वैसा समुद्र को पार कर जाए, इसी तरह मैं कैसे भगवान् के अनंत गुणों को कह सकूँगा जब उनको गुण ही अनंत है...
यहाँ एक शब्द आया कल्पान्त-काल, जिसका मतलब है कल्प काल का अंत, एक कल्पकाल 20 कोड़ा-कोडी सागर का होगा है [1 करोड़x1 करोड़ = 1 कोड़ा-कोडी ] और एक कल्प काल को दो भागो में बाटा गया है, एक उत्सर्पिणी जिसमे सुख, आयु, लम्बाई आदि बढती ही जाए और दूसरा अवसर्पिणी जिसमे सुख, आयु, लम्बाई आदि धटती ही जाए, अभी अवसर्पिणी काल चल रहा है जिसमे जब चीज़े धटती जा रही है इनको ऐसे समझ सकते है जैसे धडी में सेकंड वाली सुई एक से शुरू होती है तो छह तक तो निचे की और जाती है मतलब गिरती है और फिर छह से बारह तक उपर की और जाती है मतलब उठती है, ऐसे ये क्रम चलता ही रहता है और असंख्यात अवसर्पिणी काल के व्यतीत हो जाने पर एक हुन्डावसर्पिनी [हुंडा+ अवसर्पिणी] काल आता है जिसमे अनखोनी घटनाय हो जाया करती है, तो ऐसे कल्पांत काल मतलब अवसर्पिणी काल के अंत में 49s दिनों में जो प्रलय होती है उसको लिया गया, समुद्र का जल इतना उछालता है की योजनो गहरे समुद्र का भी ताल दिखने लग जाए और ऐसे समुद्र में प्रलय से रहने वाले जीव घड़ियाल, मगरमच्छ, व्हेल मछली जो की 30-40 फुट की होती है और उसका वजन 20 टन लगभग रहता है | तो ऐसे समुद्र को कोई नहीं पार कर सकता इसी तरह मैं मतलब मानतुंग आचार्य बोलते है मैं स्तुति प्रारभ करने जा रहा हों तो इस तरह आचार्य श्री अपनी लघुता प्रकट करते है |

जय जय आदिश्वर स्वामी | जय जय आदिश्वर स्वामी | जय जय आदिश्वर स्वामी

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►►►SOURCE --- ये explanation क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी मुनिराज के भक्तामर शिविर के प्रवचनों के आधार से सुनकर मैंने अपने शब्दको में लिखा है - Nipun Jain ÉUphorič और ये शिविर की Recorded mp3 series www.jinvaani.org website पर उपलबब्ध जिसको आप डाउनलोड कर सकते है और डेली एक सुनकर भक्तामर का शुद्ध उचारण और अर्थ सिख सकते है exact link है - http://library.jain.org/1.Pravachan/Saint_Kshu_DhyanSagar_Ji/Stotra/BhaktamarStotra/
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