05.11.2015 ►TMC ►Terapanth Center News

Published: 05.11.2015
Updated: 04.01.2016

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महावीर समवसरण से आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य से प्रवचनकालीन पावन दृश्य।
दि.05.11.2015

प्रस्तुति > तेरापंथ मीडिया सेंटर
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🌍आज की प्रेरणा 🌏
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - हंसी भी हो तो स्तर की हो..
प्रवचनस्थल - बिराटनगर, ४. ११.१५
प्रस्तुति - अम्रृतवाणी.
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से:-
आर्हत वाड्मय में कहा गया है - संयम में रमण करने वाले साधुओं का जीवन देवलोक के समान होता है जबकि संयम में रमण न करने वाले साधुओं का जीवन नरक के सामान | जैन रामायण में बतलाया गया है कि अयोध्या की राज्य परम्परा में राजा विजय व उनकी रानी हिमचूला| उनके दो पुत्र| बड़े पुत्र बज्रबाहू का विवाह राजकन्या मनोरमा के साथ हुआ| भाई उदयसुंदर बहन को पहुँचाने साथ गया| मार्ग में साले व बहनोई के साथ विनोद व हंसी मजाक भी चल रही थी| बज्रबहू की दृष्टि मुनि गुणसागरजी पर पड़ी और वह दौड़कर मुनि के दर्शन कर उनके गुणानुवाद करने लगा | साले ने जब यह सुना तो बोल पड़ा - आप भी दीक्षा लेंगे क्या? यदि मन में आ गई है तो साधु बन जाएं| हां मैं साधु बन जाऊंगा बज्रबाहू ने कहा | जब बहनोई जी सचमुच साधु बनने के लिए तैयार हो गए तो साले ने कहा - आप यह क्या कर रहे हैं? अभी अभी तो शादी हुई है| लेकिन अंततः बहनोई व साले के साथ उस
बहन ने भी दीक्षा ग्रहण करली | यह सब जानकर राजा विजय को भी वैराग्य भाव आ गया व छोटे पुत्र पुरंदर को राज्यभार सौंप कर सन्यास ग्रहण कर लिया| पुरंदर के पुत्र का नाम था कीर्तिधर| कुछ समय बाद कीर्तिधर के मन में भी जब साधुत्व की भावना जगी तो मंत्री ने परामर्श दिया - यदि आपको साधुत्व स्वीकार ही करना है तो पहले शादी करके संतान की उत्पत्ति करें, फिर साधुत्व की बात सोचें | राजा का राज्य के प्रति भी कर्तव्य होता है| आप अपने कर्तव्य का निर्वाह करें | यह सुन कीर्तिधर का मानस बदला, उन्होंने शादी की | एक राजकुमार का जन्म भी हुआ लेकिन रानी ने यह सोचकर राजकुमार को छुपाकर रखा कि राजा को मालूम होने पर वे सन्यास ग्रहण कर लेंगे| प्राचीन काल में लोग कितने हलुकर्मी होते थे कि तुरंत वैराग्य जाग जाता व दीक्षा ग्रहण कर लेते|
दिनांक - ५ नवम्वर, २०१५

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