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🌍आज की प्रेरणा 🌍प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - रामायण के प्रसंग
प्रवचनस्थल - विराटनगर,१८.११.१५
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --
जो साधुत्व में रम जाए उसके लिए साधु जीवन का सुख देवताओं के समान और जिसका मन साधुत्व में न रमे उसके लिए साधु जीवन नरक के सामान| राजा दशरथ ने साधुत्व से पहले उत्तराधिकारी की व्यवस्था की| राम, लक्षमण और सीता बनवास में चले गए| इधर भरत राज्य के लिए तैयार नहीं और उधर दशरथ जल्दी दीक्षा लेने के लिए लालायित| मंत्री व सामंत वन में जाकर राम से वापिस अयोध्या लौट कर राज्य भार सँभालने के लिए बार बार अनुरोध कर रहें है, पर राम उसके लिए तैयार नहीं| राम ने मंत्रियों को यह कह वापिस भेज दिया - माता पिता को प्रणाम कहना व भाई भरत से कहना कि सब कुशल क्षेम है| तुम सब भरत को राम मानकर चलना| यह सुन मंत्रियों व सामंतों के अश्रुधारा बह चली| आगे वे तीनों वनवासी गहरी नदी पार कर दुसरे किनारे पर पहुंचे और मंत्री तब तक उन्हें देखते रहे जब तक वे आँखों से ओझल न हो गए | राम के सारे संवाद अयोध्या पहुंचे, लेकिन भरत राजा बनने के लिए तैयार नहीं| कैकयी को अपने गलती का अहसास हुआ और भरत तथा मंत्रीगण को लेकर राम के पास पहुंची | राम ने प्रणाम किया और वह वत्स वत्स बोलते हुए राम से लिपट गई| गीली आँखों से उसने कहा माँ की बात को मानकर तुम्हें वापिस चलना पड़ेगा, सारी गलती मेरी है, तुम मुझे माफ़ कर दो| भरत ने भी राम को प्रणाम किया व बोले - मैंने कौनसा गुनाह किया है, जो आप मुझे छोड़कर चले गए| राम ने कहा - पिताजी ने जो निर्देश दिया है उसका पालन होना चाहिए| तुम्हें पिताजी व मेरे दोनो के निर्देशानुसार काम कर राज्य भार ग्रहण करना चाहिए | सीता ने जल का घड़ा भरत पर उंडेला व राम ने उसका अभिषेक कर उसे अयोध्या का राजा घोषित कर दिया |
दिनांक - १९ नवम्बर, २०१५
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