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❖ अब हमें थोडा सा सुग्रीव,सुतारा...और साहस गति के विषय में जान लेना चाहिए...क्योंकि साहस-गति से सम्बंधित आगे की कथायों में..की किस प्रकार श्री राम ने सुग्रीव की मदद की थी..जिसका अहसान सुग्रीव ने चुकाया...
ज्योति पुर नगर के राजा अग्निशिखा की पुत्री थी सुतारा कैसी हैं सुतारा अत्यंत रूपवान,..राजा चक्रांक का पुत्र साहस गति उस पर कामुक था..और राग की आग में जलता था..सुग्रीव भी सुतार से आकर्षित था..राजा दुविधा में पड़ गया की किस्से विवाह करवाए..महा ज्ञानी मुनिराज SE पुछा..मुनिराज ने कहा साहस गति की आयु अल्प है...राजा ने विवाह सुतार का सुग्रीव से करा दिया..उनके अंग और अंगद नाम के दो पुत्र हुए... साहस गति सुतारा के विवाह की बात जान अति क्रोधित हो गया..और विषम गुफा में रुप्परिवार्तनी विद्या सिद्ध करने चला गया
..इधर रावण ने अपनी दिग्विजय यात्रा में द्वीप में अंतरद्वीप के राजाओं को जीता..हर कोई आता रावण कोप्रणाम करते और रावण के साथ जुडजाते...सारे अंतरद्वीपों के राजाओं पे विजय पाकर रावण ने बहन चंद्रनखा के यहाँ रात्री में विश्राम किया..चंद्रनखा ने पति खरदूषण को जगाया..खरदूषण ने रावण के पास जाकर उनकी पूजा की...और अपनी साड़ी विद्याओं को और सेना को रावण ने दिखाया...रावण अति हर्षित हुए..और खरदूषण को अपना सेनापति बना लिया..दिन पर दिन रावण की सेना दूनी होती जा रही थी..दिग्विजय की यात्रा चल ही रही थी.रावण..रावण के मन में विचार आया की रथनुपुर के राजा इन्द्र को जीतेगा इसी भाव के साथ..वह आगे इन्द्र को भी जीतने के भाव LEKAR आगे बढ़ते जा रहे थे..एक बार वह नदी किनारे पहुंचे..तोह वहां पे महिष्मति नगर के राजा सहस्त्र-रश्मि(नाम प्रिंट नहीं हो पा रहा है)...अपनी रानियों के साथ क्रीडा कर रहे थे..वह रानियाँ अति रूपवान थीं..जैसे किसी ने पानी से अंजन धोया तोह नदी श्याम पद गयी..किसी ने चन्दन लगाकर नदी में स्नान किया तोह नदी का रंग स्वर्ण हो गया..और ऐसी रानियों के साथ भूमीगोचरी राजा सहस्त्र..क्रीडा कर रहे थे..किसी को स्पर्श करते..और तरह तरह की क्रीडा करते..वाहन रावण पहुंचे तोह..नदी के किनारे ही विशुद्ध भावों से जिनेन्द्र भगवन की महा द्रव्यों से पूजा करने लगे..रावण पूजा कर रहे थे..मंत्र बोल रहे थे..राजा सहस्त्र...की क्रीडा के कारण नदी का जल पूजा की सामिग्री के पास गिर गया...जिससे पूजा में अड़चन आई..रावण क्रोधी होकर बुला..की कौन है वह मूर्ख जो मुझे पूजा नहीं करने दे रहा है..सेनापति राजा सहस्त्र..के बारे में बताते हैं और उनके पराक्रम के बारे में बताते हैं..इससे रावण उस राजा को बुलाने के लिए कहते हैं...ऐसी बात सुन राजा सहस्त्र..अपने बड़े-बड़े योद्धाओं के साथ लड़ने के लिए आ जाते हैं..तब ही वहां देव वाणी होती है की कहाँ यह शक्तिशाली विद्या के धारी विद्याधर योद्धा और कहाँ यह भूमीगोचरी सेना..इनको तोह विद्याधर हाल ही जीत लेंगे..ऐसा कहकर बहुत से विद्याधर लज्जित हुए..और पीछे हट गए..लेकिन बहुत से लड़ने लगे...भूमीगोचरी राजा की सेना के योद्धाओं ने रावण की सेना को जीतने लगे..जिससे खबर रावण तक पहुंची रावण भी युद्ध करने आये..रावण ने हाल ही..सहस्त्र..को बाँध दिया...
उधर सहस्त्र..के पिता शतबाहू जो विरक्त होकर मुनि दीक्षा ली थी..उन्हें जंघा-चारण ऋद्धि प्राप्त हुई..इस तरह से सहस्त्र..की खबर सुन रावण को संबोधित करने वहां पहुंचे..रावण ने बड़ा आदर किया...अति हर्षित हुआ..अपने आपको धन्य माना और तरह-तरह से स्तुति की...मुनिराज ने शलाका पुरुष जानकार कहा की आप अत्यंत वैभव के धारी हैं आप शलाका पुरुष हैं इन राजाओं को हाल जी जीत सकते हैं..इसलिए महान राजाओं का कर्त्तव्य होता है की शत्रु को जीतकर छोड़ दे..बंधन में न रखे...रावण ऐसा सुनकर कहते हैं हे राजा मैं रथनुपुर के राजा इन्द्र से युद्ध करने जा रहा हूँ..उनसे मेरा द्वेष है क्योंकि उन्होंने मेरे दादा जी के भाई राजा माली का बध किया था..इसलिए मेरा उनसे द्वेष..मैं रास्ते में सरोवर के किनारे कुछ रुका हुआ था..और जिनेन्द्र भगवन की पूजा कर रहा था तब इसने पूजा में अड़चन डाल दी...मुनि के कहने पे रावण सहस्त्र-रश्मि राजा को छोड़ने का आदेश देते हैं..और वह राजा पिता जो मुनिराज हैं उनके चरणों में आते हैं..रावण उनसे कहते हैं..की aajse ham teen भाई the tum चौथे भाई हो..लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद विरक्त हो जाते हैं और धिक्कारते हैं खुद को..की मैं कितना मूर्ख हूँ..जो इन्ही में पड़ा हुआ था..यह विषय कषय क्षणभंगुर हैं और प्रकट दुःख हैं..और मुनि दीक्षा लेते हैं..मुनि दीक्षा लेने से पहले मित्र राजा अरण्य को भी दीक्षा का सन्देश भेजते हैं(दोनों राजाओं ने एक दुसरे से वादा किया था..की अगर वह मुनि दीक्षा लेंगे..तोह वह उन्हें खबर करेंगे..और अगर राजा अरण्य मुनि दीक्षा लेंगे तोह उन्हें खबर सुनकर)..मित्र की खबर सुन राजा अरण्य अनुमोदना हैं..सच्चे मित्र की मिसाल देते हैं..कहते हैं की सच्चे मित्र वह ही हैं जो संसार से तारें और उन्हें शत्रु सामान जानो..जो संसार बढ़ाने में सहाई हों..रावण राजा सहस्त्र-रश्मि के मित्र सामान nikle..क्योंकि उन्ही के कारण उन्हें वैराग्य हुआ....ऐसा जानकार राजा अरण्य भी भोगों से विरक्त हो कर मुनि हुए..और व्रतों को धारण किया.
इस प्रकार यह सुग्रीव और सुतार,राजा सहस्त्र-रश्मि और राजा अरण्य की विरक्ति का कथन हुआ..
संसार में विषय भोग-अस्थिर हैं.आग के सामान जलाते हैं...दुःख का कारण है..जो जिनेन्द्र dev के द्वारा बताये हुए मोक्ष मार्ग को स्वीकार करते हैं वह आठो कर्मों को भस्म करके निराकुल आनंद सुख को प्राप्त होते हैं
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❖ Ram... Laxman.. PadamPuran se...
राजा सूर्यरज और यक्षराज रावण के द्वारा प्रदान किये हुए नगरों में राज्य करते हैं..वहां सूर्यरज,रानी चन्द्र माला के यहाँ पुत्र रत्न हुआ पुत्र का नाम बाली हुआ..देखते ही देखते बाली बड़े हो गए कैसे हैं बाली? सम्यक दृष्टी,धार्मिक,विनय वान..ऐसे बड़े कम मनुष्य हैं जो ढाईद्वीप के सारे जिनालयों के दर्शन करते...बाली तीनों काल जम्बुद्वीप के जिन मंदिर के दर्शन करते..कैसे हैं जिनमन्दिर...सम्यक दर्शन की प्राप्ति के कारण..इस प्रकार राजा सूर्यरज के दुसरे पुत्र हुए सुग्रीव..कैसे हैं सुग्रीव-धर्मवान,विनय वान...और तीसरी पुत्री हुई श्रीप्रभा.सूर्यरज राजा के भाई रक्षरज के भी दो पुत्र हुए नल और नील..दोनों राजाओ के पुत्र अत्यंत गुणवान..देखते ही देखते यौवनावस्था आ गयी पुत्रों की..राजा सूर्यरज इस प्रकार यौवन को देखकर और इन्द्रिय सुखों को क्षणिक जानकार भोगों से विरक्त हुए...और मुनि हुए..कैसे हैं सूर्यरज मुनि?तपवान-क्षमा के धारी,मोक्ष के अविलाशी,विषय कषायों से विरक्त...अब राज्य का भार बाली संभाल रहे थे..रजा बाली की कई रानियाँ हुईं..उनमें से प्रमुख ध्रुवा नाम की रानी हुईं इधर रावण की बहन चंद्रनखा को रावण की अनुपस्तिथि में खरदूषण उठा ले गया..चंद्रनखा की बात सुन कुम्भकरण वगरह लड़ने जा रहे थे लेकिन खरदूषण की शक्ति को देख रुक गए जब रावण आये तोह बहन के हरण की खबर सुन क्रोधित हुआ..और अकेली खडग लेकर लड़ने जाने लगा तब मंदोदरी ने हाथ जोड़कर विनती की खरदूषण १४००० विद्या धरों का स्वामी है..और हजारों विद्या जानता है.,पाताल लंका में चंद्रोदर विद्याधर को निकालकर राजा सूर्यरज के मुनि बनने के बाद रह रहा है.और तोह और उसने आपकी बहन को उठाया है...जिससे उसका विवाह और किसे से नहीं होगा..और खरदूषण को मारने से विधवा हो जायेगी...और आपको दोष लगेगा मंदोदरी की बातें सुन रावण शांत हुए और कहा की वह वह बहन को विधवा नहीं देख सकते...इसलिए उसे क्षमा कर देते हैं.
चंद्रोदर विद्याधर विद्याधर कर्म योग से मृत्यु को प्राप्त होता है...उसकी पत्नी और पुत्र जंगले में जीवन व्यतीत करते हैं...पत्नी अनुराधा..का पुत्र होता है उसका नाम विराधित होता है क्योंकि जब से विराधित हुआ है जब तक उन्हें कहीं भी विनय नहीं मिली,कहीं भी मान-सम्मान नहीं मिला..जहाँ जहाँ जाता अविनय को ही सहन करता..और अपमान ही सहता..इसलिए उसका नाम विराधित रख दिया गया.
राजा बलि बड़े सुख से राज कर रहे होते हैं..लेकिन वह रावण की आज्ञा के अनुरूप नहीं चलते हैं..जिसे जानकार रावण बलि के पास दूत भेजते हैं..और कहलवाते हैं..की यम से आपके पिता सूर्यरज और यक्षरज को हमने ही बचाया था..इसलिए आपका हमारे पास एहसान है...आपके पिताजी हमारा बड़ा आदर करते थे..इसलिए आपका हमारी बात नहीं मानना अनुरूप नहीं होगा...इसलिए आकर हमें प्रणाम करें.और बहन श्रीप्रभा का विवाह हमसे kardein...बाली को रावण की सारी बातें सही लगीं सिर्फ प्रणाम वाली..क्योंकि वाली सच्चे देव-शास्त्र गुरु के अलावा किसी को प्रणाम नहीं करते थे..फिर आगे दूत कहता है की या तोह प्रणाम करो..या धनुष उठाओ..या तोह सर झुकाओ या युद्ध के लिए तैयार हो जायो..बाली दूत से मनाह कर देते हैं...दूत सारी बात रावण को बता देता है...रावण क्रोधित होता है और युद्ध के लिए वार करने आ जाते हैं....तब बलि युद्ध पे जाने से पहले सोचते हैं की यह सारी राज्य सम्पदा क्षणिक है..मंत्री कहते हैं की इस से बढ़िया प्रणाम कर लो..रावण अत्यंत शक्तिशाली हैं..लेकिन बाली कहते हैं..की इस राज्य सम्पदा के लिए क्षणिक इन्द्रिय भोगों के लिए क्या लडूं..इन्द्रिय भोग तोह प्रकट रूप से विष हैं..इनको पुष्ट करके यह जीव नरक ही जाता है..ऐसे भोगों के लिए क्या लड़ना..और ऐसे दुखों से मुक्ति सिर्फ जिनेन्द्र भगवन के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है..इसलिए संसार से विरक्त हो कर बाली मुनि बन जाते हैं और सुग्रीव को राज्य देकर कह गए की जो करना है करो..बाली मुनि बन जाते हैं..और सुग्रीव श्रीप्रभा का विवाह रावण से करते हैं....कैसे हैं बाली मुनि महा तपस्वी...मोक्ष के अभिलाषी..इस प्रकार निरंतर तरह-तरह की विध्यायों को पाया..और निरंतर गुण-स्थान बढ़ाते रहे.
एक बार रावण नित्यपुर के राजा नित्यापुर की पुत्री से विवाह करके लौट रहे थे...पुष्पक विमान से...तभी कैलाश पर्वत के ऊपर से विमान निकल रहा था..तभी विमान रुक गया..कैसा है विमान मन की गति से भी तेज..रावण आश्चर्य चकित हुए..मंत्री मारीच से पूछते हैं....की यह विमान कैसे रुक गया..तब मारीच बताते हैं की यहाँ पे कायोत्सर्ग मुद्रा में दिगंबर मुद्रा में तप कर रहे हैं...इसलिए आप नीचे उतारकर उन्हें प्रणाम करें..रावण नीचे उतारते हैं..और कैलाश पर्वत पर जाकर देखते हैं..देखते हैं की नग्न शांत मुद्रा में मुनि-तप कर रहे हैं..मुनि बाली मुनि थे...रावण पूर्व बातों का स्मरण करके कहते हैं की मुनि व्रत के बाद भी क्षमा नहीं किया..अभी भी विमान रोक दिया...वीतराग मुद्रा को धारण करके ऐसा क्यों कर रहे हो..बाली मुनि समता भाव रखते हैं..रावण क्रोधित होकर पातळ में धस जाते हैं..और विद्या का प्रयोग करते हैं...विद्या के स्मरण मात्र से विद्याओं के देव प्रकट हो जाते हैं..और इस प्रकार पूरे कैलाश पर्वत को हिलाने की सोचते हैं..पूरा कैलाश कम्पायमान हो जाता है..पशुपक्षी घबराते हैं..देव भी आश्चर्य चकित हो जाते हैं..बाली मुनि समता भाव रखते हैं..लेकिन इस बात का चिंतन करते हैं की रावण इस पहाड़ को हिला रहे हैं..इस पहाड़ पे कितने भारत चक्रवती के द्वारा बनाये हुए जिन मंदिर हैं..जहाँ देव और मनुष्य दोनों दर्शन करने जाते हैं...इस बात से बाली मुनि जरा सा अंगूठा हिला देते हैं...जिससे पहाड़ वापिस अपनी जगह पर आ जाता है..जिससे रावण के जंघाएँ क्षिल जाती हैं..और पसीना पसीना हो जाए हैं..देव पुष्प वर्षा करते हैं
रावण विशुद्ध भावों से बाली मुनि की स्तुति करते हैं कहते हैं की मैंने आपको गलत समझा..धन्य हैं आप जो देव-शास्त्र-गुरु के अलावा किसी को प्रणाम नहीं करते हैं..आप पूजनीय हैं स्तुति के कारण है..मैं पापी मानी आप में दोष निकालने लगा..आप ने तोह कितनी सारी विध्यायों को मुनि मुद्रा में ऐसे ही प्राप्त कर लिया..मैंने जिन धर्म को इतना जाना लेकिन कभी यह नहीं सोचा...इस तरह से तरह तरह से बाली मुनि की स्तुति करते हैं..फिर कैलाश मंदिर स्थित जिनालयों के दर्शन करते हैं...और वहां शरीर से नस को तार बनाकर बीणा बजाते हैं और स्तुति करते हैं..तरह तरह से स्तुति करते है न्केहते हैं आप ही मोह के नाशक हैं...आप ही विषय भोगों से मुक्ति दिलाने वाले हैं..आप ही परम पूजनीय हैं..आपको सब नमस्कार करते हैं..और आप किसी को नमस्कार नहीं करते हैं..आप के जैसे गुण अन्य किसी में नहीं है.मैं ऋषभदेव अदि चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करता हूँ..जो हो चुके हैं और आंगे होंगे..उनको नमस्कार करता हूँ.तरह-तरह से विनती करते हैं..आपने अष्ट कर्मों का नाश किया हुआ है..आप हर प्रकार के दुखों से रहित हैं..इस प्रकार से स्तुति करते हैं..की धरेंद्र का आसान कम्पायमान हो जाता है..और प्रकट हो जाते हैं और रावण की कहते हैं की धन्य हैं आप और आप की जिन भक्ति..मैं तुझसे प्रसन्न हूँ मांग क्या मांगेगा?..रावण कहते हैं की जिन भक्ति से ज्यादा और क्या है इस संसार में..यह ही आकुलता रहित सुख को देने वाली है..और यह ही अनंत सुख को प्रदान कराती है..और मोक्ष से ज्यादा सुखदायी इस संसार में कुछ भी नहीं है..इसलिए मुझे कुछ नहीं चाहिए..धर्नेंद्र कहते हैं वह तोह तुने सही कहा लेकिन मैं आया हूँ तोह कुछ मांग रावण कुछ नहीं मांगते हैं..लेकिन धर्नेंद्र उन्हें ऐसी विद्या देते हैं जिससे रावण सर्व शत्रुओं को जीत सकते हैं..सब पे विजयी होते हैं.
वापिस आकर वह बाली मुनि के गुण गाकर वापिस चले जाते हैं...बाली मुनि भी अपने द्वारा की गयी शल्य का प्रायश्चित करते हैं..और ध्यान में लीं हो जाते हैं..ध्यान ही ध्यान में चारो घटिया फिर चारो अघतियाँ कर्मों को नाश करके निराकुल आनंद सुख को प्राप्त होते हैं..और अनंत दर्शन-ज्ञान-चरित्र-बल को प्राप्त करते हैं..
अगर मुझसे श्री बाली मुनि का निरूपण लिखने में कोई गलती हो...शब्द-अर्थ सम्बन्धी गलती हो..या और कोई गलती हो तोह क्षमा करें
यह बात पधार हमने यह बहुत अच्छे से जान लिया की रावण का पुतला जलाना कितना गलत है...और कितने पाप-बंध का कारण है..
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❖ भीमवन में जा विध्यासाधन अदि का करना. ---------
जिस प्रकार मुनि तप साधना करते हैं उसी प्रकार विद्याधर विद्याएं सिद्ध करते हैं..इसी प्रकार रावण,कुम्भकरण और विभीषण भीम वन नाम के वन में vidhya सिद्ध करने चले गए..तीनों ने शुद्ध श्वेत वस्त्र पहनकर अति भयानक वन..जिसमें देव भी भ्रमण नहीं करते हैं...व्यन्तरों के समूह जहाँ रहते हैं..बड़े स्थिर रूप से तीनों विद्या सिद्ध करने बैठे..उसी समय जम्बू-द्वीप का अधिपति अनावृति नाम का देव..कई देवियों के साथ उनको तप करते हुए देखा..देवियाँ सुन्दर रूप से आकर्षित होकर..तरह के तरह के धर्म से डिगाने वालें उपदेश देती रही..ऐसा कहने लगी उन तीनों से "की क्या इसमें समय बर्बाद कर रहे हो,कहाँ यह जवानी,कहाँ भोग-विलास,तुम चित्र हो गए हो..अभी भी मौका है" लेकिन तीनों बिलकुल भी चलायमान नहीं हुए...अनावृति देव ने कहा की इस जम्बू-द्वीप का अनाधिपति देव तोह मैं हूँ..तोह तुम मेरे अलावा किस को पूज रहे हो"..ऐसा देखकर उसने तरह -तरह के उपसर्ग किये..किन्नर देवों की सेना बुलाई...पहाड़ों को फेकने का दृश्य बनाया..डरावना काल जैसा माहोल बनाया..भयंकर दिखने वाले अस्त्र-शस्त्र फेकें..लेकिन तीनों भाई तस से मस अपने ध्यान में डिगे रहे..फिर देव ने माया रची रत्नश्रवा का सर काट कर ले आये..व्याकुल करने की कोशिस की..माया से भीलों की सेना उत्पन्न करी..और केकसी को ले आये..केकसी को कहलवाया की पुत्र तुम तोह कहते थे की तुम राज्य दिल्वाओगे..दोनों श्रेणी के बल को अकेले जीतोगे..तुम जैसे कायर हो,बहन चन्द्रनखा को यह भील उठाकर ले जा रहे हैं...लेकिन रावण तस से मस नहीं हुए..विभीषण और कुम्भकरण थोड़े व्याकुल हुए..जिसके कारण रावण को सहस्त्र रिद्धि मंत्र-उच्चारण से पहले ही मिल गयीं..यह सब पुण्य का प्रभाव होता है (कपिल ब्रहमचारी जी ने लिखा की यह वीरंतराय कर्म के क्षयोप्सम से होता है)...रावण को खूब सारी ऋद्धि मिली (मद नासनी,काम-दायिनी,काम गामिनी,दुर्निवार,अनिमा,लगिमा अदि अनेक ऋद्धिया मिलीं).कुम्भकरण को पांच ऋद्धियाँ सिद्ध हुई..और विभीषण को चार ऋद्धियाँ सिद्ध हुईं).रावण ने जितना उपसर्ग सहन किया अगर उतना उपसर्ग कोई महामुनि सहन करते तोह अष्टकर्म को स्वाहा करके भव बंधन से मुक्त होते)..रावण की तपस्या को देख अनावृति देव ने रावण की स्तुति की..और प्रसन्न हुआ और कहा की"तुम बहुत महान हो,तुम मुझे तब बुलाओगे मैं स्मरण मात्र में ही आ जाऊंगा)..यह जिन-वंदना का प्रभाव था..इस प्रकार रावण वापिस महल में आये थे तोह सब बहुत हर्षित हुए...दादा जी सुमाली अदि हर्षित हुए....पिता ने गले लगाया..माता से गल्रे मिला..प्रणाम किया..सारे विद्याधर खुश हुए,सेवकों का सम्मान किया...वानर वंशी बधाई देने आये...सुमाली ने कहा की कैलाश पर्वत पर चारण ऋद्धि धारियों से पुछा था की हमें लंका कब होगी तब उन्होंने यह ही कहा था की जो पुत्र से पुत्र होगा..वह तीनखंड का राजा होगा..इस तरह से बोला था) सबको एक नयी आस बांध गयी लंका को वापिस मिलने की..सब रावण से ही आस लगा रहे थे की यह ही लंका को वापिस दिलाएगा..राजा मेघवाहन के वंश के समय की लंका नगरी अब हमें हमारे पास वापिस आ जाएगी.)..
रावण को जो कुछ भी मिला पूर्व उपाजित कर्मों की वजह से था..नया कुछ भी नहीं था...सब कुछ शुब-अशुभ फल के उदय से मिला..न ही किसी देवता ने उन्हें कुछ दिया...आयु कम हो या ज्यादा यह मायने नहीं रखती...मनुष्य योनी,सुकुल और जिनवाणी सुनने,पढने का मौका नहीं गवाना चाहिए..क्योंकि यह मौका एक बार छूट गया तोह वापुस ठीक उसी प्रकार नहीं मिलेगा जिस प्रजार समुद्र में गिरी हुई मणि वापिस बड़ी दुर्लभता से मिलती.इस तरह से रावण का जन्म और विद्या साधन अदि का वर्णन हुआ.
अभी तक हमने जाना की रावण राक्षश वंश के थे,माता का नाम केकसी,पिता का नाम रत्नश्रवा था..उनकी बहन थीं चन्द्रनखा..भाई थे कुम्भकरण और विभीषण..जो की जिनधर्मी थे..यह भी जाना रावण ने भीम-वन में विद्या सिद्ध की...और बड़ा सम्मान पाया...अब रावण का पहला विवाह जो हुआ वह राजा मय की पुत्री मंदोदरी से हुआ..जो असुर-संगीत नगर की राज्य-पुत्री थी...फिर रावण मेघवर पर्वत पे इकठ्ठा ६००० स्त्रियों से विवाह करता हैं,कुम्भकरण की पत्नी का नाम तडिन्नमाला था और विभीषण की पत्नी का नाम राजीव-सरसी था...राजा रावण के पुत्र हुए जिनमें से कुछ के नाम थे इन्द्रजीत,मेघनाथ थे..अब हम यह जानेंगे की किस प्रकार..रावण ने लंका को वापिस जीता..,किस प्रकार उन्होंने त्रैलोक्यमंडल हाथी को पाया,और पुष्पक विमान अदि के बारे में जानते हैं..
वैश्रवण,जो की राजा इन्द्र के लोकपाल थे,और लंका की निगरानी करते थे,वह जिन-जिन नगरियों में राज्य करता था..वहां से कुम्भकरण सारा माल स्वयंप्रभ नगर में ले आते थे...एक बार वैश्रवण ने एक दूत राजा सुमाली (रावण के दादा) के पास भेजा और कहा की आप लोकनीति को जाने वाले ज्ञाता हो..यह बातें शोभा नहीं देती की आप के पुत्र हमारी नगरियों में से माल-चुराकर ले जाते हैं...आप राजा इन्द्र को नहीं जानते हैं..क्या आप अपने भाई माली की मौत के बारे में भूल गए...धीरे-धीरे पाताल लंका से सरक-सरक कर यहाँ पहुंचे हो..?इस तरह से तरह की अभिमानजनक बातें कहता है..राजा इन्द्र की ताकत का वर्णन करता है...जिससे रावण में क्रोध रुपी ज्वाला उत्पन्न होती हैं..और कहता है कौनसा है राजा इन्द्र जिसमें इतनी शक्ति है..कि हमारा कुछ बिगाड़ सके..यह शायद रावण कि ताकत को नहीं जानता है"...तलवार से दूत पे वार करने ही वाला होता है तभी विभीषण उन्हें समझा कर कहते हैं "कि यह नीति नहीं है..कि दूत को मारा जाए..दूत तोह राजा कि भाषा बोलता है..यह शूरवीरों को शोभा नहीं देता है..कि दूत कि हिंसा करें"..यह बात तोह राजा ने बोली है न..इस तरह से तरह-तरह कि बातें करके क्रोध-रुपी ज्वाला को शांत कर देते हैं..जब दूत सन्देश लेकर वैश्रवण राजा तक जाता है..वैश्रवण राजा क्रोधित होता है..उधर रावण अदि सब लोग क्रोधित होते हैं..और युद्ध के लिए जाते हैं..रावण के सर पर सफ़ेद छत्र होता है...महाबलशाली रावण शत्रु की सेना को परस्त कर देते हैं..तभी वैश्रवण विरक्त हो जाते हैं और पछताते हैं रावण से कहते हैं के हे भरता यह सारे भौतिक सुख,इन्द्रियजन्य सुख क्षणिक हैं...दुःख के कारण हैं..नरक का कारण हैं..इसलिए हम मैत्री करे..लेकिन रावण कहते हैं की ऐसा है तोह अपनी हार स्वीकार कर लो..लेकिन वैश्रवण नहीं करते हैं..और रावण वैश्रवण को मूर्छित कर देते हैं..वैश्रवण को वापिस ले जाया जाता है.रावण जीत जाते हैं..और वैश्रवण को तब होश आता है...तोह वह मुनि दीक्षा ले लेते हैं..इधर रावण लंका को जीत जाते हैं..और पुरे परिवार कुम्भकरण,विभीषण,इन्द्रजीत,मेघनाथ सबके साथ लंका नगरी पर आते हैं..रावण किसी से कुछ नहीं लेते हैं सिर्फ वैश्रवण के पास जो पुष्पक विमान था..उसे छोड़ कर...इस प्रकार अब लंका नगरी वापिस आ जाती है..राक्षश वंशी रावण जिसे पाकर सुमाली बड़े हर्षित होते हैं..एक बार रावण सुमाली से पूछते हैं की इस पहाड़ के ऊपर सरोवर भी नहीं है तब भी कमल खिल रहे हैं..और कमल तोह चंचल होते हैं..यह तोह चंचल भी नहीं हैं तभी दादा सुमाली "ॐ नमः सिद्धेभ्य" ऐसा बोलकर कहते हैं की यह कमल नहीं हैं यह तोह हरीषेण चक्रवती द्वारा बंबाये हुए जिन मंदिर हैं..और वह रावण से निचे उतारकर नमस्कार करने के लिए कहते हैं..जिससे रावण ऐसा ही करते हैं..रावण फिर दादा सुमाली से हरीषेण चक्रवती की कथा सुनते हैं..और सुमाली पूरी कथा कहते हैं..और अति हर्षित होते हैं रावण ऐसे चक्रवती की कथा सुनकर..कुछ समय बाद सब लोग दरबार में बैठे होते हैं तभी अजीब सी गर्जना होती हैं.जिससे सब डर जाते हैं..सिपाही चुप जाते हैं..हाथी रस्सी खीचने लगते हैं..तब रावण सेनापति को देखने के लिए बोलते हैं..तब सेनापति रावण को देखकर बताते हैं की अति शक्तिशाली सौन्दर्यवान हाथी है..जिसे राजा इन्द्र भी नहीं पकड़ पाया..तब रावण कहते हैं की यह बहुत आसान है और हाथी को पकड़ने के लिए जाते हैं..और बड़ी आसानी से हाथी को पकड़ लेते हैं..और उस हाथी का नाम त्रैलोक्यमंडन रखते हैं..इस प्रकार रावण उस हाथी के साथ प्रवेश करते हैं..और सब अति हर्षित होते हैं..
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