15.12.2015 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 15.12.2015
Updated: 21.05.2021

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✿ जैनदर्शन" ध्यान को आध्यात्मिकता प्रदान करते गोम्मटेश बाहुबली @ नवभारत टाइम्स ✿ read more worthy write-ups ➽ Jainism -the Philosophy ✿

कर्नाटक की राजधानी बेंगलूर से करीब 185 किलोमीटर दूर श्रवणबेलगोल नगर में विन्ध्यगिरि पहाड़ी पर भगवान गोम्मटेश बाहुबली की प्रतिमा पिछले 1027 वर्षों से अविचल खड़ी है। अपनी भव्यता और सौम्यता में यह प्रतिमा अनुपम और अद्वितीय है। हिमालय के पर्वत-शिखर जैसी ऊँचाई, पिरामिडों जैसी भव्यता और ताजमहल जैसी सुन्दरता को अभिव्यक्त करते भगवान बाहुबली का यह बिंब संसार के अद्भुत आश्चर्यों में एक माना जा सकता है। एक हजार वर्ष से अधिक समय से यह प्रतिमा खुले आकाश में प्रचंड धूप, धूल, हवा, तूफान, वर्षा के थपेड़े सहन करती हुई अडिग खड़ी है। समुद्र स्तर से 3288फीट तथा जमीन से 438 फीट ऊँचे पर्वत पर स्थित इस प्रतिमा के ऊपरी भाग को 15 किलोमीटर दूर से देखा जा सकता है। चेहरे का बालसुलभ भोलापन, झुकी हुई आत्मीय पलकें, मोहक मुस्कान और किसी योगी जैसी प्रशान्तता धारण किएयह प्रतिमा किसी भी व्यक्ति के ध्यान को आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए प्रेरित करती है। पर्वत का अभिन्न अंग होने के कारण यह प्रतिमा सजीव प्रतीत होती है। वैसे तो इससे विशाल प्रतिमाएं संसार में और भी हैं, किन्तु एक समूचे ग्रेनाइटके शिलाखंड से निर्मित और बिना किसी सहारे के खड़ी ऐसी दिव्य प्रतिमा दुनियामें केवल गोम्मटेश बाहुबली की ही है। अफगानिस्तान में बमियान की बुद्ध प्रतिमाएं 120 और 175 फीट ऊँची अवश्य थीं, किन्तु वे एक ही शिलाखंड से नहीं बनाई गई थीं। मिस की रयाम्सीज-2 वमेम्नान की प्रतिमा तथा स्फिंक्स या तो एक ही पाषाण खंड से नहीं बने हैंअथवा बिना किसी आधार के नहीं खड़े हैं। बाहुबली की प्रतिमा इतनी समानुपातिक है कि देखने के बाद किसी को भी उसकी विशालता का बोध नहीं होता। श्रवणबेलगोल की इस प्रतिमा जैसा सामंजस्य संसार में अन्यत्र देखने को नहीं मिलता। बालक, युवा, वृद्ध, स्त्री, पुरुष, कलाकार, विचारक, दार्शनिक तथा संन्यासी सभी अपनी-अपनी रुचि के अनुसार इसके चुंबकीय आकर्षण से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते।

गोम्मटेश बाहुबली की यह दिगम्बर प्रतिमा भारतीय श्रमण संस्कृति और दिगम्बर जैन परम्परा का प्रतीक है। यह प्रतिमा सभी बाहरी अलंकरणों और आयुधों (शस्त्र आदि) से रहित है। दिगम्बर जैन प्रतिमाएं वीतराग ध्यानस्थ मुदा में ही स्थित होती हैं। कुछ लोग ऐसा सोच सकते हैं कि वस्त्र रहित होना भद्देपनका सूचक है, किंतु यह नग्नता तो बालकों जैसी निश्छलता और पवित्रता की प्रतीक है। वस्त्र उतारनेमें वासना की बू आ सकती है, किंतु नग्न रहना पूर्णत्याग और अपरिग्रह का द्योतक है। पूर्ण अपरिग्रह (आंतरिक और बाह्य) दिगम्बर जैन दर्शन, संस्कृति तथा जीवन शैली का प्रतिबिम्ब है। गोम्मटेश बाहुबली का यह बिम्ब ध्यानारूढ़ अवस्था में आत्मावलोकन की उस स्थिति में है, जहाँ उन्हें अपने शरीर का भान ही समाप्त हो गया है। बेलें (लताएं) शरीर के ऊपरचढ़ गई हैं। जीव जन्तुओं ने अपने बिल बना लिए हैं। फिर भी भगवान अडिग और शरीरसे बाहर होने वाली गतिविधियों से अनभिज्ञ, आत्मचिंतन में स्थित परम पुरुषार्थ की साधना में निमग्न हैं। इस प्रतिमा का निर्माण और स्थापना गंग वंश के नरेश राचमल्ल के चौथे सेनापति और प्रधानमंत्री चामुण्डराय ने कराई थी। हालांकि इसकी स्थापना की तिथि और समय को लेकर विद्वानों में मतभेद रहे हैं। बहरहाल, यहाँ इतना हीजानना पर्याप्त है कि विद्वानों ने काफी विचार-विमर्श के बाद और 'बाहुबलीचरित' में दिए हुए नक्षत्रीय संकेतों को ध्यान में रखते हुए श्रवणबेलगोल में प्रतिमा की प्रतिष्ठा के लिए 13 मार्च, 981 की तिथि को सर्वाधिक अनुकूल माना। इसी आधार पर सन 1981 में सहस्त्राब्दि महामस्ताभिषेक सम्पन्न हुआ था। तब से यही समय प्रामाणिक माना जा रहा है। श्रवणबेलगोल का 'श्रवण' शब्द स्पष्ट रूप से 'श्रमण' यानी भगवान बाहुबली (जो स्वयं महाश्रमण थे) से सम्बन्धित है। कन्नड़ में'बेल' और 'गोल' शब्दों का अर्थ है 'श्वेत सरोवर' अथवा 'धवल सरोवर।' नगर के मध्य कल्याणी तालाब मूल 'श्वेत सरोवर' की जगह स्थित माना जाता है। एक महत्वपूर्ण शिलालेख में केवल 'बेलगोल' शब्द का उल्लेख है, 'श्रवणबेलगोल' का नहीं। अत: नगर का नाम 'श्रवणबेलगोल' अवश्य ही श्रमण भगवान् बाहुबली की प्रतिमा की स्थापना के बाद ही प्रसिद्ध हुआ है। (' अनेकान्त' से साभार) by नवभारत टाइम्स

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