26.12.2015 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 26.12.2015
Updated: 05.01.2017

Update

Source: © Facebook

हम अपने जीवन में अहिंसा धर्म का पालन करने की दिशा में अग्रसर रहते है, फिर भी जाने-अनजाने वश विभिन्न प्रकार की हिंसाओ से नहीं बच पाते है! इसी श्रंखला में,
हिंसा के कुछ छुए - अनछुए पहलु जिनको अनदेखा नहीं किया जा सकता है:
१) फैशन के नाम पर हिंसा:
सूती कपडे, प्लास्टिक-रेक्सीन की बेल्ट, पर्स, जूट के बैग्स आदि के स्थान पर रेशम और चमड़े से बनी वस्तुए प्रयोग करना!

२) उपकारिता के नाम पर हिंसा:
बिच्छु, सांप आदि जीवो को देखते ही डंडा उठाना,चाहे वे शांति से जा रहे हो या स्वयं हमसे भयभीत होकर भाग रहे हो! जहरीले जीवो को भी उनके जीवन की रक्षा करते हुए शांति से जीवन जीने देना चाहिए!

३) व्यापार के नाम पर हिंसा:
मांस, चमड़े आदि की वस्तुओ को खरीदना - बेचना, अभक्ष्य वस्तुओ को खरीदना - बेचना!

४) अहिंसा के नाम पर हिंसा: (Mercy Killing)
कुत्ता, बन्दर आदि जानवरों को गहरा ज़ख्म हो जाने पर, उसमे कीड़े पद गये हो, असहनीय दशा में हो, या पागल हो जाने पर उसका इलाज़ करने के स्थान पर, उसे उसकी पीड़ा से छुटाने के बहाने उसे मार देना या सोसाइटी से बाहर कही दूर फिकवा देना आदि.. (अब तो संविधान में इंसानों के लिए भी दया मृत्यु (Mercy Killing) का प्रावधान आ गया है!

५) सुधार के नाम पर हिंसा:
बड़ो का कहना है कि "नीयत के साथ बरकत होती है!", जब से हमने अनाज कि बचत के लिए चूहे, टिडडी आदि जीवो को मारने के लिए कीट नाशको का प्रयोग करना आरम्भ किया है, अनाज की अच्छी पैदावार (गुणवत्ता के आधार पर) होना ही बंद हो गयी है!

६) धर्म के नाम पर हिंसा:
देवी देवताओ के नाम पर जीवो की बलि देना, जीव हत्या से स्वार्थ सिद्धि होने जैसी दकियानूसी बातो को बढ़ावा देना आदि!

७) भोजन के नाम पर हिंसा:
नाना प्रकार के तर्क देकर मांसाहार करना, मांसाहार भोजन वाले स्थानों पर शाकाहारी भोजन करने पर भी खुद को शाकाहारी कहलाना, आदि!

८) विज्ञान और चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति के नाम पर हिंसा:
शरीर की संरचना, नसे - हड्डियां, अंग-प्रत्यंग को समझने के लिए असंख्यात निरीह जीवो जैसे चूहे, खरगोश, मेंढक आदि जीवो को प्रयोगशालाओ में चीर-फाड़ कर के मार देना, दवाओ के परिक्षण के लिए जीवो को शिकार बनाना आदि!

९) मनोरन्जन के नाम पर हिंसा:
जानवरों के आकार की बनी वस्तुओ को खाना, तितली आदि को पकड़ कर खेलना, जानवरों आदि को सर्कस आदि जगहों पर देख कर आनंद मानना आदि!!

!! अलं विस्तरेण!!

इस प्रकार अन्य और भी कई प्रकार से हम लोग अपने जीवन में हिंसा का पोषण कर रहे है, हमे उन सभी हिंसाओ से बचना चाहिए और अन्यो को भी ऐसा करने से रोकना चाहिए!!

* नोट: यहाँ विस्तार में उल्लेख न करते हुए संक्षिप्त में विवरण किया गया है, आप अपने विवेक से इसे और विस्तार से जाने!

!! अहिंसामयी विश्वधर्म की जय!!
!! जय जिनेन्द्र!!
!! मिच्छामी दुक्खदं!!

Update

Source: © Facebook

एक-कहानी-मुनि-क्षमा-सागर-जी-के-द्वारा.

एक-व्यक्ति-जैन-साहब-पूरी-दुनिया-मानती-है,की-पूरी-दुनिया-मानती-है-की-संसार-का-कोई-करता-है,आप-क्यों-नहीं-मानते?

जैन-साहब-हम-मानते-हैं,इश्वर-बहुत-शक्तिशाली-हैं,पूज्य-हैं,परम,विशुद्ध-हैं..लेकिन-करता-धर्ता-हैं..यह-नहीं-मानते

आप-ही-सोचो..एक-गृहस्थी-चलने-में-इतनी-आकुलता-व्याकुलता...तोह-पूरे-संसार-को-चलने-में-कितनी-आकुलता.???

वह-व्यक्ति-कहता-है...नहीं-इश्वर-के-पास-तोह-अनंत-शक्ति-है

जैन-साहब-अनंत-शक्ति-है,तोह-किसी-को-दुखी-,किसी-को-अमीर,गरीब,क्यों..करता-है,सबको-सुखी-क्यों-कर-रहा-है???

वह-व्यक्ति-नहीं--यह-तोह-अपने-कर्मों-का-फल-है

जैन-साहब-जब-कर्मों-का-फल-है...तोह-इसमें-इश्वर-दे-रहा...इश्वर-को-बीच-में-क्यों-ला-रहे-हो

इसके-बाद-भी-उस-व्यक्ति-को-संतुष्टि-नहीं-हुई..एक-बार-उस-व्यक्ति-ने-जैन-साहब-को-खाने-पे-बुलाया

और-कहा..देखो-जैन-साहब-हमारी-इतनी-किडनी-खराब-थी.डॉक्टर-ने-कह-दिया..अब-नहीं-बचेगी....लेकिन-इश्वर-की-कृपा-ही-तोह-हुई-जो-बच-गयी..अब-तोह-मानते-हो

जैन-साहब-कुछ-नहीं-बोलने

वह-व्यक्ति-इसका-मतलब-आपने-मान-लिया..

जैन-साहब-मैं-यह-सोच-रहा-था-की-इश्वर-को-इतने-उपद्रव-सूझते-ही-क्यों-हैं??...तब-खराब-ही-करनी-थी-तोह-सही-क्यों-करी.?..इतने-उपद्रव-क्यों-करता-है...अगर-ठीक-ही-करनी-थी-तोह-खराब-क्यों-करी???

इस-बात-से-यह-साबित-है-की-इश्वर-करता-धर्ता-नहीं-है.

News in Hindi

Source: © Facebook

क्षमासागर जी मुनिराज तो बोलते है बिना गलती किये भी क्षमा मांग लो क्या फर्क पड़ता है? क्या पता उसका तुम्हारे प्रति कषाय और बदले की भावना या जो थोडा मन मुटाव हो गया है वो समाप्त हो जाए, ये प्रवचन के बात सुनकर मैंने practical करके देखा और seriously its work:)
नासा द्रष्टि 1. नासा = न+आशा [आशा नही है जिनके]
2. नासा = नाक पर द्रष्टि मतलब संसार की कोई और चीज़ ना देखकर..
3. नासा = मतलब अपनी आत्मा को देखने का प्रयास करना...भगवान् ने ऑंखें बंद नही की मतलब जो हो रहा है उसको देखते तो जाना पर उसमे डूबना है...ये सबसे मुश्किल है लेकिन जिनेन्द्र देव ऐसे ही है...की देखते हुए भी ज्ञाता व् द्रष्टा भाव रखना....

Sources
Share this page on:
Page glossary
Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
  1. भाव
Page statistics
This page has been viewed 485 times.
© 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
Home
About
Contact us
Disclaimer
Social Networking

HN4U Deutsche Version
Today's Counter: