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आचार्य देशना
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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डांट के बिना
शिष्य और शीशी का
भविष्य ही क्या
भावार्थ: इत्र की शीशी में यदि डांट (ढक्कन) न लगायी जाए तो उस शीशी में कुछ समय बाद हवा के अलावा कुछ शेष नहीं रहता उसी प्रकार गुरु यदि शिष्य को डांट लगाकर अर्थात अनुशासन में न रखें तो शिष्य में गुणों का विकास नहीं हो सकता । शिष्य और शीशी दोनों का ही भविष्य डांट के बिना अंधकारमय रहता है । जो गुरु शिष्य के परांगमुख हो जाने के डर से शिष्य को डांट न लगाये वह गुरु नहीं । मनुष्य के सबसे पहले गुरु उसके माता पिता होते हैं और आजकल माता पिता अपनी संतान पर स्वयं ध्यान देने के बजाय आया के हाथ में सौंप देते हैं । तथाकथित लिविंग स्टैण्डर्ड बढ़ाने के लिए पति पत्नी दोनों अपने दोनों हाथों से धन अर्जित करने में लगे हैं । और संतान का भविष्य डे केयर के हवाले कर दिया है । और जो स्वयं भी करते हैं तो अपनी संतान की हर इच्छा पूरी करने की चाहत में बच्चे को उद्दंड एवं अनुशासनहीन बना देते है । सच्चे गुरु के प्रति समर्पित जन इस अंधी दौड़ में सम्मिलित न हों ।
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आचार्य श्री के सूत्र
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✿ आचार्य श्री ने तेरादेहि मंदिर को शांतिधाम का नाम दिया हैं! ✿ आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का कहना है कि हमारे बच्चे प्रतिभाशाली हैं, उन्हें विदेश भेजना, देश से प्रतिभा का निर्यात करना है। ✿
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✿'जब अहिंसा स्थल पर फहराया तिरंगा' (धर्मस्थल में राष्ट्रीय पर्व मनाने की मुहिम ने दिखलाया रंग) ✿ Ahinsa Sthal, New Delhi @ 26th January, 2016
भगवान् महावीर की जन्मभूमि ‘वैशाली’ पूरे विश्व का सबसे प्राचीन गणतंत्र माना जाता है |दुनिया ने लोकतंत्र और गणतंत्र यहीं से सीखा है |भगवान् महावीर के सिर्फ राज्य में ही गणतंत्र नहीं था बल्कि उनके धर्म में भी जनतंत्र के स्वर प्रधान थे,उन्होंने वर्ण व्यवस्था,जाति और सम्प्रदाओं की सीमा से ऊपर उठ कर मनुष्य को उसकी स्वाभाविक भाषा ‘प्राकृत’ में कल्याण का मार्ग बताया और प्राणी मात्र के प्रति जियो और जीने दो का सन्देश दिया |भगवान् महावीर और जैन धर्म ने हमेशा अपनी मातभूमि और राष्ट्र के प्रति सम्मान और समर्पण की भावना का विकास किया है और यही कारण है कि इतिहास के पृष्ठों पर जैन समाज की राष्ट्र भक्ति की हज़ारों अमर गाथाएं अंकित हैं |
गणतंत्र दिवस से कुछ दिनों पूर्व सर्वोदय विश्व भारती प्रतिष्ठान की अध्यक्ष श्रीमती डॉ इंदु जैन जी के मन में एक विचार अंकुरित हुआ कि राष्ट्र निर्माण में धर्म इतनी अधिक भूमिका निभाता है और राष्ट्र भौतिक रूप में धर्म को सुरक्षा तथा पनाह भी देता है फिर क्या कारण है कि राष्ट्रपर्व पर तिरंगा सिर्फ सरकारी इमारतों पर ही लहराया जाता है?धर्मस्थलों पर क्यूँ नहीं?विचारों ने करवट ली और खुली आँखों से एक स्वप्न दिखने लग गया कि कितना अच्छा हो कि राष्ट्रीय पर्व के दिन हर मंदिर,मस्जिद,चर्च,गुरूद्वारे तिरंगे फहराएँ और राष्ट्र के प्रति अपना सम्मान और समर्पण व्यक्त करें |
मगर क्या भारत में ऐसे दिन आ पायेंगे?
विचारों और ख्वाबों की एक लम्बी श्रृंखला ने जन्म ले लिया | किन्तु महज विचारों से क्या होगा जब वह यथार्थ का रूप न बने?और फिर यह विचार किया गया कि कम से कम जैन समाज से यह मुहिम प्रारम्भ की जाए |इंदु जी के फ़ोन के छोटे से सन्देश ने हजारों लोगों के दिल को छू लिया |देश विदेश की जैन समाज के लोगों ने संकल्प व्यक्त किया कि हम जैन मंदिर /स्थानकों में २६ जनवरी के दिन तिरंगा फहराएंगे |
एक छोटी सी मुहिम,लोग जुड़ते गए,कारवां बनता गया,शुरुआत में इस कार्यक्रम का केंद्र दिल्ली में महरौली स्थित अहिंसा स्थल रखा गया |वहां के पदाधिकारियों ने उत्साह दिखाया |
२६ जनवरी २०१६ प्रातः भगवान् महावीर की उन्मुक्त आकाश में विराजित भव्य प्रतिमा के समक्ष दो ध्वज लगाये गए एक राष्ट्र ध्वज तिरंगा और एक धर्म ध्वज पचरंगा |अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मल जी सेठी,तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री सुरेश जैन जी,श्री अशोक जैन जी,विद्वत्परिषद के संयुक्त मंत्री डॉ अनेकांत जैन जी,AIIMS के श्री सुदेश जी, सर्वोदय विश्व भारती प्रतिष्ठान की अध्यक्ष श्रीमती डॉ इंदु जैन एवं श्री राकेश जैन जी,अहिंसा चैनल के पत्रकार बंधू आदि ने तिरंगे झंडे को फहराया तथा उपस्थित अन्य अनेक गणमान्य लोगों ने तालियों की ताल से स्वागत किया |अंत में सभी ने राष्ट्र गान भी किया |इस अवसर पर सभी लोगों ने क्रमशः एक तिरंगा हाथ में लेकर स्वयं की यादगार तस्वीरें भी खिचवायीं |अहिंसाचैनल ने इसका टेलीकास्ट करके अपना बहुत बड़ा सहयोग दिया |
इस प्रकार के कार्यक्रम की सूचना/फोटो अन्य अनेक स्थानों से प्राप्त हो रही है |वास्तव में यह एक छोटी सी शुरुआत अन्य धर्मों के लिए भी एक प्रेरणा का काम करेगी |जय जिनेन्द्र,जय भारत,जय महावीर |
Article written & sharing by Dr. Anekant Kumar Jain.
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News in Hindi
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आचार्य देशना
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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घडी जैसी हो
गति परिणामो की
तीव्र मंद ना
भावार्थ: जिस प्रकार घड़ी के कांटो की गति उतरते समय भी वैसी ही रहती है जैसी चढ़ते समय । वैसे ही जीव के परिणाम भी सुख दुःख में एक जैसे रहने चाहिए । हमारे जीवन में कभी हम बहुत सुख सम्पन्नता अथवा सफलता को प्राप्त करते जाते हैं जैसे घडी का काँटा ६ से १२ तक पहुँचता है और कभी सफलता की ऊंचाइयों से गिरकर जमीन पर भी आ सकते हैं जैसे घडी के कांटे में १२ से ६ । चढ़ने और गिरने के इस फेर में काँटा कभी आकुल व्याकुल नहीं होता और सामान रूप से गति करता है । वैसे ही हमे सुख में ज़्यादा फूलना नहीं चाहिए और दुःख में ज़्यादा आकुल व्याकुल नहीं होना चाहिए । परिणाम स्थिर रखने चाहिए
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