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🙏धन्य है ऐंसी चर्याएं🙏
आचार्य संघ अतिशय क्षेत्र कुण्डलगिरि कोनी जी में विराज मान है
आज सुबह जैसे ही आहार चर्या आरम्भ हुई पड़गा हन के लिए महराज निकलना चालू हुए...मुनि श्री निरीह सागर जी ने आहारो के लिए निकलते ही कोनी जी से पाटन की और रुख कर लिया... लगभग 5 km का वह रास्ता जो इस समय काफी पथरीला है उसे पार कर नगर पाटन पहुचे...
वंहा उनका पड़गा हन हुआ और पूर्ण नवधा भक्ति के साथ आहार चर्या संपन्न हुई..
धन्य है मुनिवर की आहार विधि
जय हो जय हो जय हो
ADMIN NOTE: saari acharya shri ji ki updates and pics Mr. Brajesh Jain dvara di jaati h, unka bahut shukriya!!!
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Gannur
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🙏🏻आचार्य भगवन् के संघस्थ मुनि श्री निरीहसागरजी ने आज कराया चतुर्थकाल की चर्या का आभास🙏🏻
वैसे तो पूज्य गुरुदेव का संघ चतुर्थकाल के श्रमणों की प्रतिकृति ही है 💦पर आज संघस्थ मुनिश्री निरीहसागरजी ने चतुर्थकाल के यतियों की तरह आहार क्रिया को सम्पन्न किया
पूज्य मुनिश्री ने मुद्रिका ली और सीधे पाटन गाँव के चौके में पड़गाए गए व कोनीजी से 6 किमी दूर पाटन गाँव में आहार के निमित्त गए🌅
आज महाराजश्री ने वह दृश्य बताया कि प्राचीन काल में कैसे श्रमण दूर-दूर के गाँवों में आहार के निमित्त जाया करते थे🙏🏻
✨✨धन्य है ऐसे निर्ग्रन्थ तपोधन व धन्य है उनकी चर्या ✨✨
🌟धन्य धन्य मुनिदेव -Brajesh Jain
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यह लेख मुनि प्रणम्य सागर जी द्वारा रचित स्तुतिपथ --- #TodayPic
जिसमे अपनी आत्मा की समाधी मुख्य है ऐसे श्रेष्ठ मूलसंघ श्री कुन्दकुन्द आचार्य की परंपरा में भव्य जीवो के बंधू आचार्य शान्तिसागर जी इस धरातल पर हुए है, जिन्होने भट्टारको के राज मार्ग को रोक दिया है
उनके पट्ट पर श्री वीरसागर आचार्य हुए जो स्यादवाद रत्नाकर थे, जो वीर भगवान के धर्मध्वजा को फहराने के लिए वायु के सामान थे और जिनके चरण कमल सभी के सेवा के योग्य थे | उनके पट्ट पर आगम के अर्थ में निपुण, सिद्धांतन्तिक तत्व को जानने वाले, श्री मान जिनेन्द्र देव के चरण युगल को सदा ध्याने वाले श्रेष्ठ आचार्य श्री शिवसागर हुए है
आचार्य शान्तिसागर जी की परंपरा में आचार्य श्री वीरसागर जी एवं आचार्य श्री शिवसागर जी हुए है| आचार्य श्री शिवसागर जी के प्रथम मुनि शिष्य श्री ज्ञानसागर जी हुए |आपने ब्रह्मचारी जीवन में ही अनेक महाकाव्यों की रचना करके साहित्य जगत में कालिदास और भास् की उच्च कोटि की ख्याति प्राप्त की| जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय ग्रन्थत्रयी के नाम से प्रसिद्ध है | अत्यंत निस्पृह और सरल स्वाभावि होना आपका सदा प्रमुख प्रभाव्त्मक गुण रहा | स्वयं अपने प्रथम शिष्य मुनि विद्यासागर जी को आचार्य पद देकर उनके चरणों में बैठकर सल्लेखना की बिनती करके आपने ज्ञात आचार्य परंपरा में एक प्रथक कीर्तिमान स्थापित किया है|
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