08.03.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 08.03.2016
Updated: 05.01.2017

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🚩🚩🚩आचार्य देशना🚩🚩🚩
🇮🇳"राष्ट्रहितचिंतक"जैन आचार्य 🇮🇳
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी, २५४२

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पड़ा लिखा औ
सुना समझाया पै
समझा नहीं

भावार्थ: आज तक हमने अध्यात्म के विषय में बहुत कुछ पड़ा, लिखा, सुना भी और समझाया भी किन्तु शायद स्वयं नहीं समझा । यदि सही से समझा होता, मनन किया होता तो शायद संसार में परिभ्रमण नहीं कर रहे होते । संसार से छुटकारा पाने के लिए आत्मा के विषय में नहीं आत्मा को जानना आवश्यक है । मात्र ज्ञान की नहीं, श्रद्धान की आवश्यकता है । ये बात तो सामान्य से कोई भी कह सकता है कि आत्मा अलग है और शरीर अलग है किन्तु इस बात पर प्रत्येक समय श्रद्धान रखने वाला ही सही मायने में इस बात को समझता है और उसकी सभी क्रियाओं में फिर वह अध्यात्म झलकता है । हम तत्व को सिर्फ पड़े लिखे और सुने समझाएं नहीं अपितु स्वयं समझें ।
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🚩🚩🚩आचार्य देशना🚩🚩🚩
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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या श्री सा गौ

भावार्थ: "या श्री सा गौ" - यह श्री धवला जी ग्रन्थ की उक्ति है जो आचार्य श्री अनेकों बार अपने प्रवचनों में उपयोग करते हैं । इसका अर्थ है संसार में जो भी श्री अर्थात लक्ष्मी (धन, संपत्ति) है वह गाय है । गौ आधारित अर्थव्यवस्था हो तो हम एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र बन सकते हैं ।

-> आगे के विचार गुरूजी के मुख से साक्षात तो नहीं निकले किन्तु जो अभी तक समझा वह प्रेषित कर रहे है

महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध कृषक सुभाष पालेकर जी का कहना है कि मात्र १ गाय के गोबर, गौमूत्र के आधार पर १ एकड़ में रसायन रहित (खाद - यूरिया आदि एवं कीटनाशक रहित) जीरो बजट खेती की जा सकती है । सही प्रबंधन के द्वारा एक दूध न देने वाली गाय भी मात्र अपने गोबर गौ मूत्र के द्वारा अपना भोजन (चारा, पानी) का खर्च निकाल सकती है । और उस प्रबंधन के द्वारा मानव को मिल सकती है - गोबर गैस आदि ईंधन(ऊर्जा), खेतों के लिए खाद, कीट नियंत्रक इत्यादि । इनका उपयोग करने से विदेश से तेल आयात कम किया जा सकता है । रासायनिक खेती जो की जमीन की उर्वरक क्षमता को काम करती है, हमारे शरीर को नष्ट करती है उससे बच कर प्राकृतिक खेती की जा सकती है । और गाय को काटने से बचाकर जीव दया का पालन भी किया जा सकता है । दयोदय महासंघ १०० से अधिक गौशालाओं का समूह है । आज के युवाओं को चाहिए कि कम से कम एक गौशाला से अवश्य जुड़ें । उस गौशाला में ऐसा प्रबंधन कर दें कि गौशाला आत्मनिर्भर हो जाए और किसी से दान के बिना ही उसकी व्यवस्था चलती रहे । इसी माध्यम से उनको कटने से बचा सकते हैं । जिसको भी गौशालाओं की सूची चाहिए कृपया बताएं हम प्रसारित कर सकते हैं ।
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संग्रह कहाँ
वस्तु विनिमय में
मूर्छा मिटती

भावार्थ: एक समय था जब अर्थ (मुद्रा) के स्थान पर वस्तु का विनिमय होता था । अर्थात बार्टर सिस्टम और बार्टर ट्रेड । इस प्रकार के विनिमय के साधन में किसी के भी पास जीवनोपयोगी खाद्य पदार्थ आदि का बहुतायत में संग्रह का विकल्प नहीं होता था । और लोग किसी भी वस्तु के अधिक मात्रा में होने पर उसे किसी दूसरी उपयोगी वस्तु से बदल लेते थे । न ज़्यादा परिग्रह, न ज़्यादा मूर्छा । अर्थ विनिमय में कागज़ के टुकड़ों को किसी भी वस्तु अथवा कार्य से ज़्यादा महत्व दिया जा रहा है । जो जितने ज़्यादा नोट छाप ले वह उतना ज्यादा धनी । अमीर, गरीब के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है । किसानो को ऋण लेकर खेती करनी पड रही है और ऋण न चुका पाने के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं । अन्नदाता ही अन्न को मोहताज़ हो रहा है । जमाखोरों, सूतखोरों की चांदी हो रही है । जम्भीरता और गहनता से विचार करने पर हम पाएंगे कि यह सब वास्तु विनिमय के अभाव के कारण ही हुआ है ।
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