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🚩🚩🚩आचार्य देशना🚩🚩🚩
🇮🇳"राष्ट्रहितचिंतक"जैन आचार्य 🇮🇳
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: फाल्गुन शुक्ल नवमी, २५४२
फाल्गुन अष्टान्हिका पर्व द्वितीय दिवस
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स्वात्मोपलब्धि
ही सही सिद्धि है सो
अन्य सिद्धि न
भावार्थ: जगत में सभी लोग अपने इष्ट मनोरथ पूर्ण करने के लिए प्रयासरत रहते हैं । किन्तु लोगों के सभी मनोरथ कभी सिद्ध नहीं होते । कदाचित हो भी जाएँ तो मृत्यु के साथ ही नष्ट हो जाते हैं । एक सामान्य व्यक्ति सेठ की ओर दृष्टि रखकर सोचता है फलाना सेठ कितना धनी है, सेठ राजा के वैभव को देखकर, राजा महामण्डलीक राजा की ओर देखता है, महामण्डलीक राजा चक्रवर्ती के वैभव को, चक्रवर्ती देवों के वैभव को, देव इंद्र के वैभव को, और इंद्र तीर्थंकर के केवलज्ञान रुपी लक्ष्मी को देखकर सोचते हैं कि मैं कब इसको प्राप्त करूँ । क्या तीर्थंकर भी किसी की ओर देखते हैं । हाँ, तीर्थंकर अपने आत्मतत्व की ओर दृष्टि लगाये हुए हैं । कहने का तात्पर्य ये है कि जगत में सबसे वैभवशाली अथवा सही सिद्धि जो है वह हमारे अपने आत्मतत्व की प्राप्ति ही है । इसी में आनंद है । इसके अलावा संसार में अन्य कोई सिद्धि सही सिद्धि नहीं है । रूप तुम्हारा सबसों न्यारा भेद ज्ञान करना, ज्यों लो पौरुष थके न तौलों उद्यम सों चरना ।
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आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ अभी कटंगी, जबलपुर के समीप विराजमान हैं ।
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"राष्ट्र हित चिंतक"आचार्य श्री के सूत्र
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❖ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर महाराज का जीवन चरित्र तथा संस्मरण - ये नहीं पढ़ा तो क्या पढ़ा!! ❖
जगतमोहन लाल शास्त्री जी जो थे वो अचानक कटनी से गायब हो गए, तो गाँव वालो ने सोचा कही आया होगा पंडित जी को बुलावा तो वो चले गए, क्योकि वो बहुत सुन्दर व्याख्यान करते थे, किसी भी किसी भी विषय पर बोलते सकते थे वो एक बार वो अजमेर में मुसलमानों की दरगाह पर गए, और वह जाकर ऐसा व्याख्यान दिया तथा पांच हजार मुस्लिम लोगो ने सुना वो, अगले दिन सारे अख़बार उस प्रभावना से भर गए थे की जैन विद्वान् ने क्या सुन्दर व्याख्यान दिया!
फिर लोगो ने सोचा की महाराज जी इलाहाबाद से कटनी विहार कर रहे है तो और लोग भी चलते है महाराज जी को लेने तो उन्होंने देखा की जगनमोहन पंडित जी तो यही पर है, तो लोग बोले अरे पंडित जी आप यहाँ उसी समय पंडित जी महाराज जी को नमोस्तु कर रहे थे, तो तुम पंडित हो कभी बताया नहीं तुमने, ये तो काफी दिनों से हमारे साथ है, तभी एक व्यक्ति बोले महाराज जी ये पंडित जगनमोहन लाल शास्त्री है, तो महाराज जी बोले अरे तुम जगनमोहन कटनी वाले, तो पंडित जी बोले हा लेकिन मैं यहाँ कुछ और इरादे से आया था की जिनका चोमासा हमारे यहाँ हो रहा है वो ठीक है या नहीं, क्योकि अखबारों में तो मैंने बहुत कुछ पढ़ा आपके बारे में की आप इतना बड़ा परिग्रह लेकर शिखर जी की यात्रा के लिए निकले है, इतने सारे गाडी, घोडा, तम्बू बगैरह, सब साथ चलते है आपके, तो मैं देखना चाहता था की ऐसे परिग्राही साधु का चोमासा करा कर तो श्रावक भी डूबेंगे, फिर महाराज जी बोले की फिर तुमने नमोस्तु क्यों किया, इतने परिग्राही साधु को, फिर पंडित जी बोले मैं आठ दिन से आपकी चर्या देख रहा हू, की ये सब आपके पीछे चल रहे है जैसे तीर्थंकर के समवशरण के पीछे सारा ठाठ चलता है, लेकिन तीर्थंकर को उनके प्रति कोई राग नहीं होता, मैएँ बहुत बारीकी देखा है आपका इससे कोई लेना देना नहीं है, और मैंने ये देखा है की आप नमोस्तु के पात्र है तथा मैं आपको हृदय से नमोस्तु करता हू, तब शान्तिसागर जी महाराज बोले अच्छा किया तुमने जो परीक्षा करके गुरु बनाया!
भारत में एक कानून बनने जा रहा था की जैन मंदिर में किसी का भी प्रवेश निषेध नहीं होगा तथा सब लोग अधिकार से प्रवेश कर सकेंगे, इसके विरोध में आचार्य शान्तिसागर जी महाराज ने अन्नशन आन्दोलन यानि 1106 दिन का अन्न त्याग कर दिया था, फिर आखिरी फैसला होने वाला था मुंबई कोर्ट में तो पहले ज़ज़ ने ये प्रश्न रखा कि वो क्यों प्रवेश करना चाहते है क्योकि कुछ लोग अधिकार पूर्वक प्रवेश चाहते थे मंदिर में, तो उन्होंने पूछा कि वो जैन धर्मं को मानने वाले है क्या, या किस धर्म को मानते है, तो जबाब मिला कि वो जैन धर्मं को नहीं मानते अपने धर्म को ही मानते है तो फिर ज़ज़ ने पूछा कि फिर जैन मंदिर में प्रवेश का अधिकार क्यों मांगते हो और ज़ज़ ने बोला कि नहीं मिलेगा अधिकार! और ये फैसला सुनाने वाले वो ज़ज़ जैनेत्तर थे, तो ज़ज़ ने बोला की जिसको जैन धर्मं के प्रति श्रद्धा नहीं है उसको हम जैन मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार नहीं दे सकते!
फिर इसके विपक्ष ने एक आन्दोलन और चल रहा था की सबको प्रवेश मिलना चाहिए, श्री जिनेन्द्र वर्णी जी चाहते थे की सबको अधिकार मिलना चाहिए उनका भाव आचार्य शान्तिसागर जी के भाव से अलग था "जब तिर्यंच भी जिनेन्द्र भगवान के दर्शन से सम्यक द्रष्टि बन जाता है " तो फिर किसी को रोका क्यों जाये, लेकिन इस मामले में पंडित जगतमोहन लाल शाष्त्री जी शान्तिसागर जी के पक्ष में थे, और जब मुख्य मंत्री रविशंकर शुक्ल जी जो उस समय के मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री थे, वो पंडित जगतमोहन लाल शाष्त्री के मित्र थे तो उन्होंने बोला की ये तुम्हारे जैन समाज में ये कैसा झगडा चल रहा है, उन्होंने पूछा की प्रवेश करने क्यों नहीं देते तब पंडित जी ने बोला की हमारे मंदिर में माताये बेधड़क आकर धर्म ध्यान करती है, हमारे मंदिर में कभी भी अश्लील वातावरण नहीं होता, हमारे मंदिर की एक अनोखी अलोकिक पवित्रता है, आप किसी भी जैन मंदिर देखिये, हम उस पवित्रता को खंडित नहीं होने देना चाहते, हमारा विरोध नहीं है की कोई हमारे मंदिर में प्रवेश न करे, हम ये चाहते है की प्रवेश करना हो तो व्यसनों का त्याग करके प्रवेश करो, श्रद्धालु बनकर प्रवेश करो, भगवान् का भक्त बनकर प्रवेश करो, लेकिन वो ऐसा नहीं करना चाहते, इसलिए हम ये आन्दोलन कर रहे है, फिर मंत्री जी ने कहा ठीक है तुम्हारा आन्दोलन!
* ये जीवन चरित्र तथा संस्मरण क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज से दीक्षित शिष्य) के प्रवचनों के आधार पर लिखा गया है! टाइप करने में मुझसे कही कोई गलती हो गई हो उसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ! –Nipun Jain
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