14.04.2016 ►Jahaj Mandir ►Navpad Oli

Published: 18.04.2016
Updated: 08.01.2018

navpad oli ओलीजी आराधना...उन पवित्र आत्माओं को सिद्ध कहा जाता है। जिन आत्माओ ने खुद के ऊपर लगे हुए सभी कर्मों का क्षय कर दिया हो। जो संसार के बंधन से मुक्त हो गए है। जो कभी जन्म नही लेंगे। जिनकी कभी मृत्यु नही होगी, जिनका कोई शरीर, मन नही है।

navpad oli 
आज नवपद ओलीजी का दूसरा दिन
सिद्ध पद की आराधना का दिन
9 पदों में किसी भी व्यक्ति विशेष को वंदना नही की गयी है।
जो जो आत्मा उन उन महान गुणों तक पहुँचे है उन सभी गुणीजनों को एक साथ वंदना की गयी है।
नमो सिद्धाणं।।।
सिद्ध प्रभु का परिचय
जिन आत्माओ ने खुद के ऊपर लगे हुए सभी कर्मों का क्षय कर दिया हो। जो संसार के बंधन से मुक्त हो गए है। जो कभी जन्म नही लेंगे।
जिनकी कभी मृत्यु नही होगी, जिनका कोई शरीर, मन नही है।
उन पवित्र आत्माओं को सिद्ध कहा जाता है।

जिनके सभी काम सिद्ध हो गए है। सिद्ध यानि अपना खुद का स्वरुप प्राप्त करना।
सिद्ध पद को प्राप्त करना ही आज के हर भव्य जीव का लक्ष्य है।
अरिहंत प्रभु के कुछ कर्म क्षय होना बाकी होता है।आयुष्य का बंधन भी होता है।
जबकि सिद्ध प्रभु की कोई बंधन नही होता है।
सिद्ध प्रभु के साथ जो आत्मा अपना मन लगा देता है उसका मोक्ष निश्चित हो जाता है।
सभी बंधन से रहित
सभी सिद्धि को प्राप्त
14 राजलोक के मुकुट समान भाग पर रहे हुए है।
सामान्य भाषा में कहे तो अपने ऊपर छत्र के समान वो बिराजित है।
हमारी आराधना
तपस्या
साधना
आदि का 1 ही लक्ष्य होना चाहिए कि
मै सिद्ध पद को प्राप्त करूँ।
बिना लक्ष्य के कोई भी आराधना सिद्ध पद को प्राप्त नही करा सकती।
बिना लक्ष्य की आराधना से पूण्य होगा
देवगति मिल सकती है
पर मोक्ष नही मिलता है।
मोक्ष में जाकर कुछ करना नही होता।
कुछ भी कार्य करना वहां जरुरी है जहा अपूर्णता है।
मोक्ष में कोई अपूर्णता नही होती
संसार में अपना आयुष्य पूरा हुआ
कि चलो।
मोक्ष में आयुष्य ही नही है।
शास्वत काल को स्थिरता वहा होती है
सामान्य नियम-
जब कभी इस संसार सागर से 1 आत्मा सिद्ध गति में जाती है
तब 1 आत्मा अव्यवहार राशि से निकल कर व्यवहार राशि में आती है।
हम भी तभी व्यवहार राशि में आये है जब कोई आत्मा सिद्ध गति में गयी थी।
इस लिए उन सिद्ध परमात्मा का हमारे ऊपर बोहत बड़ा उपकार है।
ऐसे अनंत उपकारी सिद्ध प्रभु को ह्रदय से वंदना
वो ही हमारे आदर्श है।
वो ही हमारे तारक है।
वो ही हमारे श्रद्धेय है।
वो ही हमारे आराध्य है।
उनसे ही मेरा नाता है।
सच्चा नाता है।
अटूट नाता है।
उन सिद्ध जीवों ने अपने आठ कर्मो का क्षय किया है।
वो ही कार्य मुझे भी करना है।
किसी कवि की कल्पना-
अरिहंत सिद्ध प्रभु हमसे कहते है -
जिस करणी से हम भये
अरिहंत सिद्ध भगवान्।
वो ही करनी तू करो
हम तुम एक सामान
उन सिद्ध प्रभु के 8 गन होते है-
वो आठ गुण आठ कर्मो के क्षय से प्रकट होते है
पहला कर्म ज्ञानावरणीय ।
उसके क्षय से
अनंत ज्ञान
यह गुण प्राप्त होता है।
जिस ज्ञान से आत्मा सभी जीव
पुद्गल परमाणु
सभी पर्याय
सभी काल
को 1 ही समय में देख सकते है।
उनसे छिपा हुआ जगत में कोई कार्य नही होता
दूसरा कर्म
दर्शनावरणीय ।
उसके क्षय से
अनंत दर्शन
यह गुण आत्मा में प्रकट होता है
जो आत्मा का सहज गुण है।
जिससे हम सभी पदार्थों का सामान्य ज्ञान प्राप्त करते है।
3rd कर्म
वेदनीय।
उसके क्षय से आत्मा में
अव्याबाध सुख
यह गुण प्रकट होता है।
प्रकट होना mins-
सभी गुण आत्मा में उपस्थित है।
उन गुणों पर कर्मों का पर्दा आ गया है।
जैसे ही वह पर्दा हटता है-क्षय होता है।
उसी समय गुण आत्मा में पूर्ण रूप से प्रकट ही जाता है।
अव्याबाध सुख से अनंत काल तक उन्हें कोई पीड़ा नही होगी।
हम संसार में कितनी साड़ी पीड़ाओं को सहन कर रहे है।
4th कर्म
मोहनीय।
उसके क्षय से आतमा में अनंत चारित्र यह गुण प्रकट होता है।
जैसे संसार में जीव मिठाई को खाकर खुश होता है
वैसे ही उससे भी ज्यादा सुख की अनुभूति सहजानंद अवस्था में सिद्ध के जीवों को होती है।
5 th कर्म
आयुष्य।
उसके क्षय से आत्मा में अक्षय स्थिति
ये गुण प्रकट होता है
जिससे जन्म मृत्यु
बुढ़ापा आदि सभी दुखदायी अवस्था का नाश हो जाता है।
संसार में आयुष्य पूरा होते ही निकलना पड़ता है।
आयुष्य पूरा होने का भी इन्तजार किया जाता है।
मोक्ष में कोई आयुष्य नही है।
जिससे वहां कोई दुःख नही है।
6th नाम कर्म ।
उसके क्षय से अरुपी गुण प्रकट होता है।
संसार में शरीर के कारण कोई सुंदर,
कोई भद्दा हो सकता है।
मगर सिद्ध गति में शरीर ही नही होता।
वो उनकी आत्मा निजानंद में रमण करता है।
7th कर्म
गोत्र कर्म।
उसके क्षय से आत्मा में अगुरुलघु गुण प्रकट होता है
जिससे सिद्ध गति में सभी जीव समान हो जाते है।
संसार कोई बड़ा
कोई छोटा
कोई खानदानी
कोई फुटपाथी।
सिद्ध पद सभी आत्मा को एक समान बना देता है
8th कर्म
अंतराय
उसके क्षय से आत्मा में अनंतवीर्य गुण प्रकट होता है।
जिसके द्वारा जगत के सभी जीवो को अभयदान दिया जाता है।
संसार में
भोग उपभोग
दान लाभ
आदि सभी कार्य में अंतराय कर्म बाधा बनता है।
सिद्ध प्रभु उस कर्म को नष्ट कर देते है
जिससे उन्हें कोई बाधा नही रहती।
ऐसे घाती और अघाती कर्मो का क्षय करने वाले
14 राजलोक के अग्र भाग में स्थित
स्फटिक की तरह निर्मल
है आत्मा जिनकी
ऐसे महा उपकारी सिद्ध प्रभु को
हमारे शरीर के हर रोम रोम से
खून के हर कण कण से
नमन।।।
वंदन।।।
परमात्मा की आज्ञा के विरुद्ध कुछ कहा हो तो मिच्छामि दुक्कडं।।
Sources

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