28.05.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 28.05.2016
Updated: 05.01.2017

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✿ परपलवल मथुरा में भूगर्भ से निकली 1008 भगवान श्री परसनाथजी अदभुत प्रतिमाजी के दर्शन:)

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✿ पूज्य आचार्य श्री विशुद्धसागरजी महाराजजी ससंग के मंगल दर्शन.

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❖ सादगी का प्रभाव... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖ @ www.facebook.com/VidyasagarGmuniraaj

सादा जीवन उच्च विचार (Simple Living High Thinking) ही जीवन जीने की सही कला है. जिसके जीवन में सादगी नहीं है वह बड़ा ज्ञानी-विज्ञानी भी हो तो भी सम्मान का पात्र नहीं बन पाता. क्योंकि वही उपदेश प्रभावी होता है - जो वाणी से नहीं आचरण से अभिव्यक्त होता है. इसीलिए वाणी से वक्ता की पहचान नहीं होती बल्कि, वक्ता की प्रामाणिकता से वाणी की प्रामाणिकता होती है.

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी कहते हैं - जो आप दूसरों को उपदेश देना चाहते हो वह अपने आपके जीवन में पहले उतार लो. फिर जो आपका जीवन बोलेगा वही औरों को प्रभावित करेगा, वही उपदेश सार्थक होगा. जिसका जीवन सादगीपूर्ण होता है वह हर जगह सम्मान पाता है एंव उसके विचारों में अपने आप उत्कृष्टता आती जाती है. जब वह अपने विचार औरों के सामने रखता है तो सभी उन विचारों पर अमल करते हैं और उसका सम्मान भी करते हैं. लेकिन जो व्यक्ति, सात्विक जीवन नहीं जीता और मात्र उपदेश देखर सम्मान की चाह रखता है वह मंच, माला और माइक तक ही सीमित रह जाता है. जीवन में कभी भी अपना उत्थान नहीं कर पाता एवं आत्म गौरव कायम नहीं रख पाता.

आचार्य गुरुदेव ने एक दिन धर्म प्रभावना की चर्चा करते हुए कहा - यदि आज त्यागी व्रती सादगी से समाज में रहतें हैं तो समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है. एक द्वितीय प्रतिमा वाला व्रती श्रावक भी समाज में में धर्म का डंका बजा सकता है. धर्म की प्रभावना कर सकता है यदि वह मंच, माला, माईक और पैसो से बचा रहता है तो. इसलिए आज के साधको को चाहिए कि वे संपदा, सत्ता और संस्था के मोहजाल से बचें एवं सादगी से जीवन यापन करें

आज सबसे ज्यादा इस बात की कमी आती जा रही है कि - व्यक्ति अपने उद्देश को भूलता जा रहा है एवं मात्र जीवन निर्वाह की बात सोचता है, जीवन निर्माण की बात नहीं सोचता और नहीं उस दिशां में कदम बढाता है.

note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.

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शंका समाधान
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१. लड़कियों को लड़की होने के लिए, हीन भावना रखने के लिए कोई जरूरत नहीं है! लड़कियां को उभयकुल वर्धिनी तो कहा ही है साथ ही उनको मंगल भी कहा गया है!

२. बड़े लोग अगर डांटते है तो बच्चों को बुरा नहीं मानना चाहिए क्योंकि माँ-बाप हमेशा बच्चों के हित की ही बात करते हैं!

३. रात्रि भोजन करना अपने जैनत्व को खंडित करना है!

४. अगर इस धरती का हर इंसान धर्म को follow करने लगे तो कानून की जरूरत ही ना पड़े!

५. माँ-बाप को बच्चों की इच्छा का ध्यान रखना चाहिए उनका career decide करने के लिए!

- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज

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❖ हे जिनेन्द्र स्वामी, तुमको देखा तो भाव कुछ इस तरह उमड़ आया..
हे सर्वज्ञ, तुम्हारे वीतरागी स्वरुप में मैं अपना भविष्य आज पाया...

हे आदिश्वर, आपकी जीवंत प्रतिकृति को भक्तामर में पाया, तो भाव ये आया...
आज लधु-नंदन के रूप में, तीर्थंकर मुद्रा का साक्षात् प्रतिरूप झलक आया...

हे महावीर स्वामी, नयन पथ गामी की वाणी से धर्मं का मर्म अब मैं कुछ समझ पाया....
तब भाव ये आया, तुम्हारे सिवा हितोपदेशी अपना और कोई कहा, ऐसा हमने पाया...

हे जिन स्वामी, ज़ब आपके वीतराग स्वरुप को मन में ध्याया को फुला नहीं समाया...
तब ख़याल ये आया, अभी तब कहा मैं तेरे चरणों में तेरे जैसा होने को आया?

अब क्या कहू? 'इस बार फिजा कुछ अलग ही है, लग रहा अब मेरा मोक्ष निकट ही है'!

composition by: I must call it 'भावो की अभिव्यक्ति - the expression of inner feelings' –Nipun Jain

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इस समय के दो धर्म धुरंदर आचार्य अलग अलग समय में कुण्डलपुर के बड़े बाबा श्री आदिनाथ भगवान के दर्शन करते हुए...
पूज्य आचार्य श्री वर्धमान सागरजी महाराज की जय जय जय...
पूज्य आचार्य श्री विद्या सागरजी महाराज की जय जय जय..

जय जय गुरुदेव...
"जय जिनेन्द्र"
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चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान के मस्तकाभिषेक का मंगलकारी द्रश्य...

जय हो जय हो जय हो...
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Update

सभी को सादर जय जिनेंद्र। शनिवार २८ मई २०१६ ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी।
आज का विचार: दूसरों में दोष देखना हमारी स्वयं की कमज़ोरी को दर्शाता है। यदि किसी साधर्मी में कोई दोष दिखे भी तो उसे प्रेम पूर्वक परिमार्जित करने का प्रयास करना चाहिए और यदि ऐसा ना कर सकें तो कम से कम उस दोष को ढाँक कर रखना चाहिए ताकि धर्म की अप्रभावना ना हो। हम अपने दोषों के परिमार्जन के लिए प्रयासरत रहें और जहाँ देखें गुणवत्ता को ही देखें, यही प्रेरणा मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज के आज के प्रवचन अंश से हमें लेनी चाहिए।
हम Whatsapp के माध्यम से मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज के प्रवचनों के अंश को नियमित रूप से आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे है| अगर आप भी इन संदेशो को नियमित रूप से प्राप्त करना चाहते है तो हमारा नंबर 9827440301 अपने फ़ोन में save करें एवं इस नंबर पर " Join MS" का मैसेज भेजे।

Thought of the day: Looking into other's faults is a reflection of our own weaknesses. When we see faults in others, we must try to help them with love and compassion to improve on those. If we can't do so, then we should at least try not to expose their faults so that the path of Dharma is not maligned. Munishri Kshamasagarji inspires us to continually improve on our own faults and look only for the good qualities in others.

मैत्री समूह
9827440301


https://soundcloud.com/user-289993/zcurebuttp0u

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मुनिश्री क्षमासागर जी महाराज - दोषों के परिमार्जन - शनिवार २८ मई २०१६ ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी
सभी को सादर जय जिनेंद्र। शनिवार २८ मई २०१६ ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी। आज का विचार: दूसरों में दोष देखना हमारी स्वयं की कमज़ोरी को दर्शाता है। यदि किसी साधर्मी में कोई दोष दिखे भी तो उसे प्रेम पूर्वक परिमार

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✿जय जय प्रभु ऋषभदेव
जय जय माँ ज्ञानमती... --- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

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✿ #कुण्डलपुर_महामहोत्सव || 4 से 30 जून 2016

कुण्डलपुर बड़े बाबा का मंदिर रात के समय के लिए रंगबिरंगी रौशनी से सजाया गया है मानो दीवाली आ गई है!

|| सभी जानकारी के लिए पेज से अवश्य जुडें ||

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