30.05.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 30.05.2016
Updated: 05.01.2017

Update

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#Kundalpur #Vidyasagar ~~ छोटे बाबा और बड़े बड़े एक साथ!!

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❖ प्राणी व पानी का स्तर... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖ @ www.facebook.com/VidyasagarGmuniraaj

आज वर्तमान में प्राय: अधिकांश नगरों में पानी की जटिल समस्या बनी हुई है. कहीं-कहीं तो पानी १-२ कि.मी. दूर से लाना पड़ता है. कुएँ सभी सूखते चले जा रहे हैं, कुछ कुएँ तो पूर (बंद कर) दिये गये है. नल की व्यवस्था आ गयी है जिसके कारण पानी के स्रोत सूखते जा रहे हैं.

एक दिन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने बताया कि - पानी का स्तर क्यों नीचे गिरता जा रहा है क्योंकि, मानी व्यक्ति पानी-पानी नहीं हो पा रहा है इसलिए पानी का स्तर नीचे जा रहा है और पानी की समस्या बन गई है. दुसरे के दु:ख को देखकर आज व्यक्ति की आँखों से आँसू नहीं आते. दया, करुणा, सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार के अभाव में प्रकृति पर गलत प्रभाव पड़ रहा है.

आचार्य श्री ने बताया - एक व्यक्ति के यहाँ कुआँ था, उसमें पानी भी बहुत था. लेकिन, वह व्यक्ति हृदय शून्य था, दया से हृदय भीगा नहीं था. लोग उसके कुएँ से पानी भरने जाते. एक बार उसने कह दिया मेरे कुएँ से आप लोग पानी नहीं भर सकते. दूसरे हि वर्ष में उसके कुएँ का पानी गायब हो गया, कुआँ सुख गया और दूसरे कुओं में पानी लबालब भर गया.

ध्यान रखना - भाव, दुर्भाव होने से स्वभाव की गति भी नीचे की और जाती है. भूकंप के पीछे कारण क्या है? शोध कर्ताओं ने बताया कि - हजारों पशुओं का वध और वनों की कटाई से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया इसलिए भूकंप आ रहें हैं. वेदना का अतिरेक होने पर प्रलय होने में देर नहीं लगती. कषाय, वेदना, समुदघात में शक्ति एकत्रित की जाती है, जैसे बादलों के संघर्ष से वर्षा होने लगती है. आप लोगों का कलेजा नहीं काँप रहा है इसलिए धरति काँप रही है. दुसरे के दु:ख को देखकर जिसका ह्रुद कंपित हो उठे उसे सम्यग्दृष्टि कहते हैं.

प्रकृति के साथ सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार है पानी का अपव्यय न करना. पानी खर्च करिये लेकिन उसके अपव्यय से बचिये.

note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.

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शंका समाधान:

भगवानजी की प्रतिमा की तरफ पीठ क्यूँ नहीं करनी चाहिये?

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शंका समाधान
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१. अभिषेक के धोती - दुपट्टा अखण्ड होना उत्तम है! यदि अनुकूलता नहीं है तब सिले हुए धोती - दुपट्टा प्रयोग कर लें!

२. वेदी में प्रत्येक भगवान जी के मार्जन के लिए अगल अलग कपडे होने चाहिए! एक ही कपडे से सभी भगवान जी का मार्जन करना शिथिलता का प्रतीक है! जब आप खुद किसी और के गमछे से खुद का शरीर नहीं पौंछ सकते तो फिर चिंतन करिये की भगवान के लिए ऐसा क्यों?

३. अपने मोह के शमन के लिए त्यागियों की संगती अपना लीजिए! खरबूजे को देखके ही खरबूजे रंग बदलता है!

४. रात्रि विवाह कु-प्रथा है, भयंकर दोष का बंध है! दुष्परिणाम निश्चित भोगने पड़ेंगे!

५. व्रत - उपवास करके समाज को भोजन कराना कु-प्रथा है!

६. जब अपने भीतर डूबो तो अपने को अकेला समझो और जब अपने से बाहर आओ तो सारे संसार को अपना लो, मैत्री भाव रखो!

७. सरस्वती (ज्ञान) का वाहन हंस (विवेक) और लक्ष्मी (धन) का वाहन उल्लू (अविवेक) है - ये इस बात का प्रतीक है की विवेकी व्यक्ति ज्ञान को सर पर रखता है और अविवेकी व्यक्ति धन को सर पर रखता है!

८. पूजा में विसर्जन के बाद थोने में पानी / चन्दन छोड़ने का कोई शास्त्रीय विधान नहीं है, ये एक क्रिया मात्र है!

९. आज के ज़माने का बढ़ता हुआ बुद्धि-वाद शुष्क / रुखा है और हम लोगो के एक ना हो पाने की सबसे बड़ी वजह है!

- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज

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✿ बड़े बाबा की अद्भुत चाक पर उकेरी गयी कृति @ कुण्डलपुर:) first time uploaded! this page has been crossing 38,000 (y)

Picture shared by Shubham Jain, Bangalore -loads thank him.

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❖ मिथ्यातम नासवे को, ज्ञान के प्रकासवे को, आपा-पर भासवे को, भानु-सी बखानी है ।
छहों द्रव्य जानवे को, बन्ध-विधि भानवे को, स्व-पर पिछानवे को, परम प्रमानी है ॥

अनुभव बतायवे को, जीव के जतायवे को, काहू न सतायवे को, भव्य उर आनी है ।
जहाँ-तहाँ तारवे को, पार के उतारवे को, सुख विस्तारवे को, ये ही जिनवाणी है ॥

हे जिनवाणी भारती, तोहि जपों दिन रैन, जो तेरी शरणा गहै, सो पावे सुख चैन ।
जा वाणी के ज्ञान तें, सूझे लोकालोक, सो वाणी मस्तक नवों, सदा देत हों ढोक ॥

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Update

***प्राचीन ग्रंथो का किया निरीक्षण वात्सल्य वारिधि एवम संघ द्वारा
झालरापाटन***
ऐलक श्री पन्नालाल दिगंबर जैन सरस्वती भवन जाकर वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री 108 वर्धमान सागर जी महाराज एवम संघ ने आज दुर्लभ जैन ग्रंथो को देखा इससे देख लगा की जैन धर्म कितना प्राचीन है अनेक प्रकार के साहित्य जिन्हे हस्तलिखित किया हुआ अनेक दशको शताब्दियों पुराने ग्रन्थ है इन्हे देख संघ गदगद भावो से भर गया प्राप्त जानकारी के अनुसार ये भवन अनेक शतको पुराना है इस ग्रंथालय को कभी कभी ही खोला जाता है ऐसे महान संतो के आगमन से ही हम इनका अवलोकन कर पाये गुरुवर के हम सदा सदा ऋणी रहेगे जिनके पुण्य आगमन से हम सभी को महान ग्रंथालय देखने को मिला जय हो जिनवानी माता
जय हो वात्सल्य मूर्ति
News:- अभिषेक जैन लुहाडिया रामगंजमंडी

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वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज की जय जय जय...

जय जय गुरुदेव...
"जय जिनेन्द्र"
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परम पूज्य अंकलीकर परंपरा के चतुर्थ पट्टाचार्यश्री सुनीलसागरजी गुरुदेव के चरणों में नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु...

जय जय गुरुदेव...

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✿ कलाकार सचिन संघे द्वारा चाक पर उकेरी गई पारस प्रभु की अद्भुत चाक कृति:) इस पेज के आज 38,000 LIKES हो गए हैं!!

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✿ #kundalpur #vidyasagar #exclusive आचार्य श्री विद्यासागर जी आहार को जाते हुए ओर भक्त मंगल गीत गाए हुए.. आओ आओ जी, अहा। आओ आओ जी आओ महाराज पधारो महारे आँगनिया:) आज इस पेज ने 38,000 LIKES पूरे कर लिए हैं!! आप सबका शुक्रिया इस पेज से पढ़ने तथा जिनवानी लोगों तक पहुँचाने के लिए:))

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wao.. modern way to spread Jainism to next class.. the growing kids

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✿ #kundalpur #vidyasagar सभी आतुर हैं उस घडी के जब बड़े बाबा के मुख पर जल की प्रथम धार गिरेगी एवं वह गंधोदक बन लाखों उपस्थित जैन समुदाय के मस्तक को सुशोभित करेगी:)

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