03.06.2016 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 03.06.2016
Updated: 09.01.2018

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04 जून का संकल्प

सामायिक में समता भाव व जप-स्वाध्याय का क्रम ।
ज्ञानोपार्जन व कर्म निर्जरण का है ये अच्छा उपक्रम ।।

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🌻"तेरापंथ संघ संवाद"🌻

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👉 संगठन समाचार (अणुव्रत महासमिति):-
गुवाहाटी: महासमिति पदाधिकारियों की "संगठन यात्रा"
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👉 दिल्ली: ममुक्षु "मंगल भावना" समारोह आयोजित
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👉 जोधपुर: रक्तदान शिविर के बैनर का लोकार्पण
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तिरुपुर: "मंगल भावना" समारोह आयोजित
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ईड़वा: साध्वी वृन्द का 1 माह के सुखद प्रवास के बाद "मंगल विहार"
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👉 सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति का संदेश देती "अहिंसा यात्रा" का आज का प्रवास *भिलगांव*
👉 पूज्यवर आज लगभग 9 किमी का विहार करके भिलगांव पहुंचे
👉 आज के विहार एवं प्रवचन के दृश्य

दिनांक:- 03-06-2016

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03 जून का संकल्प

प्रेक्षाध्यान साधना के नित्य प्रयोग ।
दूर रखे शारीरिक व मानसिक रोग ।।

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News in Hindi

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आचार्य तुलसी की कृति....."श्रावक संबोध"

गतांक से आगे......

📝 श्रृंखला-29 📝

लय - देव! तुम्हारे....
~~~~~~~~~~

27. जीव-कर्म का अन्योन्याश्रय-
जो सम्बंध, बंध संसार।
द्वंद्वहीन निर्बन्ध चेतना,
मोक्ष सिद्धि अपवर्ग उदार।।

अर्थ - जीव और कर्मवर्गणा के पुद्गलों का एक दूसरे के साथ जो गहरा सम्बंध है, उसका नाम बंध है। यह बंध संसार-भ्रमण का कारण है, इस दृष्टि से इसी को संसार माना गया है।

जीव और कर्म के द्वंद्व से मुक्त बंधन रहित चेतना का नाम मोक्ष है। इसे सिद्धि और अपवर्ग भी कहा जाता है।

भाष्य - जीव और कर्म के सम्बन्ध का नाम बंध है। प्रश्न ये होता है कि जीव के साथ कर्म का सम्बंध होता है या कर्म के साथ जीव का?
इस प्रश्न का सीधा उत्तर षड्दर्शन समुच्चय में मिलता है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने नव तत्त्वों को परिभाषित करते हुए बंध के संदर्भ में लिखा है -

बन्धो जीवस्य कर्मणः।
अन्योन्यानुगमात्मा तु यः सम्बंधो द्वयोरपि।।

जीव के प्रदेश और कर्मवर्गणा के पुद्गलों का दूध-पानी की तरह परस्पर एकीभाव होना बंध है। दूध और पानी का मेल उभयात्मक है। न तो दूध में पानी मिलता और न पानी में दूध, किंतु दोनो परस्पर एकमेक हो जाते हैं। इसी प्रकार न तो जीव के प्रदेशों से कर्मपुद्गलों का सम्बंध होता है और न कर्मपुद्गलों से आत्मप्रदेश सम्बंधित होते हैं। आत्मप्रदेश और कर्मपरमाणु - दोनों आपस में घुलमिल जाते हैं। इनके एकीभाव का नाम ही बंध है।

चेतना की निर्बन्ध अवस्था का नाम है मोक्ष। बंध वहां है, जहां दो हैं। कर्मपरमाणु और चेतना - इन दोनों का योग द्वंद्व है। जब तक द्वंद्व है, तब तक बंधन है। जिस दिन आत्मा कर्मपरमाणुओं से सर्वथा मुक्त होकर अकेली हो जाती है, द्वंद्वहीन बन जाती है, उसके बाद आत्मा और कर्म का सम्बंध नहीं हो सकता, सम्बंध तब तक है, जब तक आत्मा सकर्म है। कर्म का सम्बंध छूटा, आत्मा निर्द्वन्द्व बना, चेतना बंधन मुक्त हुई, यही मोक्ष है। सिद्धि, अपवर्ग आदि मोक्ष के पर्यायवाची नाम हैं।
क्रमशः....... कल

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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  1. आचार्य
  2. आचार्य तुलसी
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