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जय जिनेद्र
चातुर्मास में बदलेगा जीवन
जैन धर्म में चातुर्मास का अत्याधिक महत्व है। चातुर्मास काल सदैव अध्यात्मिक वातावरण और अच्छे विचार परिवर्तन का अवसर प्रदान करते है। जिस प्रकार बादल की सार्थकता बरसने में है, पुष्प की सुगंध में तथा सूर्य की सार्थकता रौशनी में है उसी प्रकार चातुर्मास की सार्थकता परिवर्तन में है। इस चातुर्मास के दौरान संत और साध्वी के साथ लोग व्रत, तप व साधना करेंगे। वे धर्मावलंबियों को नियमित सत्य, अहिंसा और संयम का मार्ग बताएँगे। उनके प्रवचन का लाभ जैन समाज सहित अन्य लोग भी ले सकेंगे।
चातुर्मास में तो संत प्रवचन देते है इसके बावजूद यदि आपके जीवन में परिवर्तन की सफलता ना मिले तो उसका कारण अपने अंदर खोजना होगा! यह तलाश हम सभी अपने अंदर करे की गडबडी कहा हुई। प्रवचन केवल समय बिताने का माध्यम नही बल्कि भगवान महावीर -- आचार्य भगवन्तो का पवित्र संदेश विस्तार है! सभी चारित्रिक आत्माए भगवान महावीर का संदेश आप तक पहुचाने पग-पग चलकर आपके पास आये है! प्रवचनों में खास तौर पर सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, व्यसन मुक्ति, जीवन विज्ञान, ब्रह्मचर्य आदि को जीवन में अपनाने के उपाय बताए जाएँगे। भारत की भूमि धर्म के लिहाज से बहुत ही उर्वर है...और मुझे उम्मीद है हम सभी जैन, सच्चे अनुयायी की तरह चातुर्मास काल का लाभ लेकर परिवर्तन के मार्ग पर अग्रसर होंगे।
संध्या के समय प्रतिक्रमण होगा। इसमें श्रद्धालु हिंसात्मक कर्मों के लिए ईश्वर से क्षमा याचना करते हैं। जैन धर्म के अनुसार जब व्यक्ति अपनी दिनचर्या के दौरान भावना या कर्म से किसी के अधिकारों का अतिक्रमण कर लेता है तो शाम को वह क्षमा याचना करता है, जिसे प्रतिक्रमण कहा जाता है। कठिन तपस्या करके जैन समाज के लोग चातुर्मास काल में अपने द्वारा जीवनमें किए गए भूलों को सुधार कर जीवन को मोक्ष प्राप्ति की ओर ले जाएँगे।
परिवर्तन किसका? परिवर्तन करना है बुराई का अच्छाई में, नफरत का प्रेम में, अधर्म का धर्म, हिंसा, का अहिंसा, झूठ का सत्य में, हमे निर्जरा करनी है। हमे सत्य का लोप करना है, मोह-माया को त्याग यह चार महीना कुछ धर्म कर्म कमा ले मनवा... सुखी हो जाएगा।
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महावीर स्वामी की यह प्रतिमा जीवित महावीर स्वामी के नाम से विख्यात हे इस प्रतिमा का निर्माण महावीर स्वामी के जीवनकाल में ही हो गयी था। ये प्रतिमा जी राजस्थान के नांदिया में हे सिरोही के पास।
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