15.06.2016 ►STGJG Udaipur ►News

Published: 15.06.2016
Updated: 16.06.2016

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आचार्य श्री शिवमुनि जी म. सा के साथ पूज्य श्री जिनेंद्र मुनि जी म. सा एवं प्रवर्तक पूज्य श्री राजेंद्र मुनि जी म. सा

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‘जिस नेता के घर में बेटी न हो, उसे नहींं मिलना चाहिए चुनाव लड़ने का अधिकार’
साहा के दीनारपुर में मंगलवार को अपने कड़वे प्रवचनों के लिए प्रख्यात जैन मुनिश्री तरुण सागर ने जहां सामाजिक विसंगतियों पर कटाक्ष किया वहीं प्रदेश के सुलगते मुद्दों पर होने वाली सियासत और राजनीति के मौजूदा चेहरे पर भी तंज कसने से पीछे नहीं रहे।

वे दीनारपुर स्थित एक शिक्षण संस्थान के प्रांगण में श्रद्धालुओं को संबाेधित कर रहे थे। तरुण सागर जी महाराज ने कहा कि जिस घर में किसी न किसी रूप में काेई बेटी न हो, ऐसे नेता को विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए। जिस घर में बेटी न हो, उस घर में अपनी बेटी का रिश्ता न करें और उस घर की दहलीज पर साधु चढ़ना छोड़ दें तो देश में बेटियों को गर्भ में ही मार देने का सिलसिला बंद हो जाएगा। समाज खुशहाल और समृद्ध हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि जिस इंसान को ये पता लग गया कि क्या और कब सुनना, कहना और समझना है समझ लो, उसने दुनिया जीत ली आैर वह तमाम विवादों और दुखों से पार पा गया। दुनिया काम धंधों में बहुत व्यस्त हो गई है जिससे इंसान के लिए अपने लिए भी वक्त नहीं रहा। लोग नौकर चाकरों पर ज्यादा निर्भर हो गए हैं। रोजाना घर में गृहणियों को खुद झाड़ू लगाना चाहिए अपने जूठे बर्तन खुद धोने चाहिए। इससे अहंकार टूटता है। जिन घरों में गृहणियां खुद खाना बनाकर परोसती हैं, वहां कभी भी प्यार की कमी नहीं होती। युवतियाें को तो खाना बनाना ही आना चाहिए। तरुण सागर जी महाराज ने कहा कि आज के दौर में युवाओं में सहनशक्ति की कमी हो रही है। मां- बाप या बड़े भलाई के लिए कुछ कहते हैं तो वह बुरा मान जाते हैं जिससे उनका नुकसान हो जाता है। दीनारपुर स्थित ग्लेक्सी ग्लोबल ऑफ इंस्टीट्यूशन के एमडी विनोद गोयल ने महाराजश्री का आशीर्वाद लिया।
राजनीति: संतों के पास भीड़ पैसे में नहीं आती
मुनि तरुण सागर ने कहा कि नेताओं की सभा में आना फ्री, जाना फ्री। खाना फ्री और वापस लौटने पर मिलते हैं रुपए नाइनटी थ्री। संतों के प्रवचन किसी लालच को लेकर भीड़ नहीं आती।
नारी शक्ति: देवियां आगे
समाज में बोलबाला महिलाओं का ही है। सीता-राम में सीता पहले, राधे-श्याम में राधे का नाम पहले पुकारा जाता है। पैसा चाहिए तो लक्ष्मी पूजा, शक्ति चाहिए तो दुर्गा पूजा और ज्ञान चाहिए तो सरस्वती की ही पूजा होती है। मुनि ने व्यंग्य करते हुए कहा कि पिछले प्रधानमंत्री कौन थे यह सबको पता है, लेकिन उन्हें चलाने वाली देवी ही थीं।
गृहस्थी: बहू को समझें बेटी
महिलाओं की चार कमियां हैं। झगड़ना, झगड़े में हारने पर रोना, रोने पर थकी तो सोना और फिर उठी तो बाेलती हैं मायके चली जाऊंगी। बेटी मायके में खाना खाए तो मां कहती है कम खाया। ससुराल में बहू कम भी खाती है तो सास बोलती है बहू खाती रहती है। सास बहू को बेटी समझे तो आधे विवाद खत्म हो जाएं। मुनिश्री ने घरेलू कलह में चुप रहने की सीख दी।
सेवा: मां-बाप की देखरेख खुद करना बेहतर
तरुण सागर जी महाराज ने कहा कि मां- बाप और औलाद अमूल्य संपति हैं। मां- बाप की सेवा खुद करें और औलाद पर पूरी नजर रखें। नौकरों और संसाधनों के भरोसे इन्हें छोड़ने का नुकसान हो सकता है।

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सत्यपाल जैन विधि आयोग के सदस्य बने

अपर महा सालिसिटर एवं चंडीगढ़ के पूर्व सांसद सत्य पाल जैन को भारत के 21 वें विधि आयोग का अंशकालिक (पार्ट-टाईम) सदस्य नियुक्त किया गया है। उनकी ये नियुक्ति उनके वर्तमान पद, भारत के अपर महा सालिसिटर के अतिरिक्त होगी और वे अब दोनों पदों पर काम करेंगे। गत वर्ष हुआ था आयोग का गठन...

-देश के राष्ट्रपति ने गत वर्ष 14 सितम्बर, 2015 को इस आयोग का गठन किया था। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ. बीएस चौहान इसके अध्यक्ष हैं।
-इसके अन्य मनोनीत सदस्यों में गुजरात उच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि आर त्रिपाठी, जीएनएलयू के निर्देशक डॉ. बिमल पटेल व सत्य पाल जैन शामिल है।
-भारत सरकार के कानून एवं न्याय मंत्रालय के सचिव, विधि कार्य विभाग एवं सचिव, विधायी विभाग इस आयोग के पदेन सदस्य के रूप में काम करते हैं।
-जैन ने कल दिल्ली में लॉ कमीशन के कार्यालय में जाकर अपना पद ग्रहण किया और उसके बाद आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डॉ. बीएस चौहान से भेंट करके लगभग एक घंटा आयोग के समक्ष लंबित मुद्दों पर चर्चा की।
-इस आयोग का गठन केन्द्र सरकार ने देश भर में न्यायिक सुधारों के संबंध में तथा अर्थहीन हो चुके कानूनों को निरस्त करने संबंधी विषयों पर अध्ययन करके भारत सरकार को अपने विस्तृत सुझाव देने के लिए किया है।
-जैन एक जाने-माने संविधान विशेषज्ञ हैं। वे लम्बे अरसे से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ एवं भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं।
-वह लगभग 40 वर्षों से पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट के सदस्य है तथा लॉ फैकल्टी के कई वर्षों तक डीन भी रह चुके है।
-जैन देश के कई महत्वपूर्ण मुद्दों में, जैसे विधान आयोग, लिब्रहान आयोग, राष्ट्रपति चुनाव याचिका, अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन तथा देश के कई जाने माने नेताओं की विभिन्न केसों में पैरवी कर चुके हैं।

धर्म हमें जोड़ना सिखाता है, तोड़ना नहीं - आचार्य लोकेश मुनि
सर्व धर्म संसद ने कैराना में शांति, अमन व भाईचारे का सन्देश दिया

कैराना उत्तर प्रदेश, 15 जून 2016: कैराना में नफरत की आंधियों के बीच अपनी जान जोखिम में डालकर शांति, अमन, प्रेम, एकता, भाईचारे व सद्भावना का सन्देश देते हुए सर्व धर्म संसद के शांतिदूत जैन धर्म से अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य डा. लोकेश मुनि, हिन्दू समुदाय से भृगु फाउंडेशन के गोस्वामी सुशील जी महाराज, मुस्लिम समुदाय से अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष इमाम उमर अहमद इलियासी जी, सिख समुदाय से बंगला साहिब गुरुद्वारा के अध्यक्ष परमजीत सिंह चंडौक जी और हिन्दू समुदाय से स्वामी दीपांकर जी ने विभिन्न जाति व समुदाय के लोगों से भेंट की|
अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य लोकेश मुनि जी ने अपने संबोधन में कहा देश के हर कोने में साम्प्रदायिक सद्भावना की स्थापना करना जरूरी है| उन्होंने कहा कि सर्वधर्म संत आज यह सन्देश देना चाहते है कि धर्म हमें जोड़ना सिखाता है तोड़ना नहीं| धर्म के मार्ग पर घृणा, हिंसा, नफरत, भय का कोई स्थान नहीं| उन्होंने भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार से अपील की कि जो लोग यहाँ से चले गए है वो अगर वापस आना चाहते है तो उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाये|
भृगु फाउंडेशन के गोस्वामी सुशील जी महाराज कहा कि धर्म के मार्ग पर चलकर किस प्रकार समाज का कल्याण और विकास हो सकता है इसपर विचार करना चाहिए| उन्होंने कहा कि देश को सांप्रदायिक सद्भावना की जरूरत है और संतों की जिम्मेदारी बनती है कि वे सभी एक साथ आये और हर स्तर पर समाज में शांति की स्थापना के प्रयास करें|
अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष इमाम उमर अहमद इलियासी जी ने कहा कि सभी धर्म मानवता के कल्याण और विश्व में शांति की स्थापना की शिक्षा देते है| धर्म का पालन हमारे मन, कर्म और आचरण में होना चाहिए| इन्सान पहले इन्सान है बाद में हिन्दू या मुस्लमान है|
बंगला साहिब गुरुद्वारा के अध्यक्ष परमजीत सिंह चंडौक जी ने कहा कि विकास के लिए एकता और शांति आवश्यक है | सभी धर्म, समुदाय, जाति एवं प्रान्त के लोग जब एकजुट होकर रहेंगे और काम करेंगे तभी समाज व देश का विकास हो सकता है|
प्रखर चिन्तक स्वामी दीपांकर जी महाराज ने कहा कि सभी मत, सम्प्रदाय, पंथ एक साथ बैठे हैं, यह बहुत ही सकारात्मक कदम है| हमें साथ बैठकर इस बात पर विचार करना चाहिये कि की प्रकार समाज के हर वर्ग का विकास हो सकता है| जब सभी वर्गों का विकास होगा तो आपसी मतभेद ख़त्म हो जायेंगे|

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मूक प्राणियों पर रहम करें मोदी सरकार

केन्द्र सरकार का पर्यावरण मंत्रालय पर्यावरण सुधारने के नाम पर पर्यावरण बिगाड़ने पर लगा है। जो जीव वनों की शोभा और पर्यावरण के रक्षक कहलाते हैं, उन जीवों को यह मंत्रालय बर्बर तरीकों से मार डालने के आदेश दे रहा है। बाड़ ही खेत को खा रही है। 10 जून 2016 को अखबारों में प्रकाशित खबरों के अनुसार बिहार में मोकामा में सरकार के आदेश पर तीन दिनों में ढाई सौ से ज्यादा निरीह नील गायों की हत्या कर दी गई है। मृग प्रजाति के इस शाकाहारी प्राणी को लोक भाषा में ‘गाय की बहिन’ भी कहा जाता है। केन्द्रीय महिला एवं बाल-विकास मंत्री मेनका गांधी के अनुसार पश्चिम बंगाल में हाथी मारे गये, हिमाचल प्रदेश में बन्दरों को मारा गया, महाराष्ट्र में सुअर मारे गये, गोवा में राष्ट्रीय पक्षी मोर मारे गये और अब पूरे देश में नील गायों को मारा जा रहा है। यह अनुचित और शर्मनाक है। देश के वन विभाग को दयालु और संवेदनशील बनाना बेहद जरूरी है।
एक तरफ खूंखार वन्य जीवों के संरक्षण की करोड़ों की योजनाएँ बनती है। दूसरी ओर देश का पर्यावरण मंत्रालय ही मूक प्राणियों को थोक में मारने का आदेश दे रहा है। ‘किसान हित’ और ‘फसल-रक्षा’ के नाम पर पर्यावरण मंत्री इसे ‘साइंटिफिक मैनेजमेंट’ कह रहे हैं! सच्चा वैज्ञानिक प्रबंधन तो मानवीय होना चाहिये, जो इन मूक प्राणियों को बिना मारे नियंत्रित कर सके; साथ ही किसानों और फसलों का भी नुकसान नहीं हो। जब खंूखार जानवरों को भी मानवीय तरीकों से नियंत्रित किया जाता है तो इन शाकाहारी प्राणियों को गोलियों से भून डालना अमानवीय, अतार्किक, अव्यावहारिक और क्रूरतापूर्ण है।
जानवरों को नियंत्रित करने के लिए आदमी के द्वारा अंधाधुंध हत्या का जंगली रास्ता अपनाना किसी सभ्य समाज का लक्षण नहीं है। कानून को संवेदनशील होना चाहिये। कई बार न्यायालय ने भी जानवरों को मानवीय तरीकों से नियंत्रित करने की बात कही है। भारतीय वन सेवा के सेवानिवृŸा अधिकारी वी. के. सलवान लिखते हैं - ‘‘नील गायों की संख्या नियंत्रित करने के लिए उन्हें गोली मारना उपाय नहीं है। यही उपाय होता तो मानव जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए भी ऐसे ही तर्क दिये जाते। हमें जानवरों की खाद्य शंृखला को समझना चाहिये। यदि यह शंृखला कहीं से भी बिखरती है तो उसका असर अन्य जानवरों पर पड़ता है।’’
आमतौर पर भारत के लोग इस तरह जानवरों की हत्या के पक्ष में नहीं है। राजस्थान में सरपंचों और किसानों ने नील गायों को मारने से मना कर दिया। उधर, गुजरात में पिछले 10 साल से नील गाय मारने की इजाजत है, लेकिन एक भी नील गाय नहीं मारी गई। जबकि गुजरात में 1.86 लाख नील गायें हैं। निष्कर्ष यह है कि राजस्थान सहित जिन राज्यों में नीलगायों और अन्य जानवरों को मारने की कानूनी इजाजत दी गई है, उसे खत्म किया जाना चाहिये। गौशालाएँ और अभयारण्य की तर्ज पर इन निरीह जानवरों के लिए भी सरकार अभयारण्य बनाएँ। इसके अलावा यदि जंगल ही हरे-भरे और आबाद होंगे तो ये जानवर खेतों और बस्तियों की ओर आयेंगे ही नहीं।
- डॉ. दिलीप धींग
(निदेशक: आई.सी.पी.एस.आर., चेन्नई)

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