21.06.2016 ►STGJG Udaipur ►News

Published: 21.06.2016
Updated: 22.06.2016

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जैन ने बनाया रेकॉर्ड, बगैर रुके कथक के 1500 चक्कर लगाए
इंदौर: Jun 21, 2016,
मुस्कान जैन ने बगैर रुके 25 मिनट में कथक के 1,500 चक्कर लगाकर यहां वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाया है। इस कारनामे को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स ने आधिकारिक मान्यता दी है।
विश्व रेकॉर्ड के कार्यक्रम का आयोजन करने वाली स्थानीय संस्था 'नृत्यांजलि' की संचालक प्रतिमा झालानी ने बताया कि 15 साल की मुस्कान ने बुधवार तो यहां प्रस्तुति के दौरान कथक के लगातार 1,500 चक्कर लगाये। इसमें उसे तकरीबन 25 मिनट लगे।
उन्होंने बताया कि उसके कारनामे को कथक के बगैर रुके सबसे ज्यादा चक्कर लगाने के विश्व कीर्तिमान के रूप में मान्यता दी गई है।

मुनि की गोद में जा बैठा बंदर, केले खाए, आशीर्वाद लिया तब गया बाहर

ग्वालियर। शहर में आए जैन मुनि के एक अनुयायी के घर में आसन पर बैठते ही बाहर से एक बंदर आया और उनकी गोद में बैठ गया। लोगों के कौतूहल का विषय़ बने इस बंदर से इलाके के लोग बहुत त्रस्त हैं क्यूंकि ये किसी को भी काट देता था लेकिन मुनिश्री की गोद में वो बहुत शांत भाव से बैठा रहा। उन्होंने उसे दुलारा, गोद में बैठाकर केला खिलाया और आशीर्वाद दिया, तब बंदर वहां से रवाना हुआ। ऐसे अचानक आया कमरे के अंदर....
- ग्वालियर यात्रा पर आए जैन मुनि विहर्ष सागर एक अनुयायी के घर भोजन के बाद आसन पर बैठे ही थे कि अचानक एक बंदर बाहर से दौड़ता हुआ आया, और उनके पास आकर बैठ गया ।
- थोड़ी सी देर बाद वो उनकी गोद में बैठ गया।
- मुनिश्री ने उसे खूब दुलार किया और बंदर शांत भाव से बैठा रहा।
- उन्होंने उसे केले खिलाए और आशीर्वाद दिया।
- मुनिश्री का दिया प्रसाद खाने और आशीर्वाद लेने के तुरंत बाद बंदर उनकी गोद से उतरा और बाहर चला गया।
- बंदर के इस तरह अचानक आने और मुनिश्री की गोद में बैठ कर प्रसाद और आशीर्वाद लेने के बाद ही वापस जाने की घटना चर्चा का विषय बनी रही।
Jun 21, 2016,

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भावभरा निमंत्रण
#भीलवाड़ा

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भारत के प्रत्येक नागरिकों से अपील:-
इस साल मानसून #भारत में सही समय पर दस्तक दे चुका है, सही समय है आप सभी #पौधारोपन के लिए तैयार हो जाये एवं अपने एरिया में अधिक से अधिक #पौधे लगाये एवं अन्य लोगों को भी पोधारोपन हेतु प्रेरित करें, आपके द्वारा लगाएँ गये पौधे आने वाली पीढ़ीयो के लिए वरदान साबित होंगे ।
आप सभी भाइयों एवं बहनों से मेरा अनुरोध है की सभी अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य के (1 सदस्य -1 #पौधा) अनुसार पौधारोपन करने का प्रण (शपथ) अवश्य ले एवं पौधों को एक बच्चे की तरह देखभाल अवश्य करें ।

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राजस्थान के प्रथम शहीद

बीकानेर निवासी दानवीर सेठ अमरचन्द बांठिया भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में राजस्थान के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी तथा प्रथम शहीद थे। उनकी योग्यता, ईमानदारी, न्यायप्रियता और सुयष से प्रभावित होकर तत्कालीन ग्वालियर रियासत के राजा जयाजीराव सिंधिया ने उनको समृद्ध ‘गंगाजली’ कोष का खजांची नियुक्त कर दिया। इस कोष पर हमे सषस्त्र सिपाहियों का पहरा रहता था।
उन्हीं दिनों भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन का सूत्रपात हो गया था। गंगाजली के कोषाध्यक्ष होने के कारण राज्य और सेना के उच्च पदस्थ व्यक्तियों से उनका परिचय बढ़ने लगा था। अधिकारियों तथा अन्य लोगों से उन्हें अंग्रजों के द्वारा भारतवासियों पर किये जा रहे अत्याचारों के समाचार मिलते रहते थे। भारतवासियों पर अत्याचार की खबरें सुनकर उनके मन में भारत को स्वतंत्र कराने की भावना प्रबल हो उठती थी।
उस समय जहाँ कहीं युद्ध होता तो अंग्रेज भारतीय सैनिकों को युद्ध की आग में झोंक देते थे। भारतीय सैनिकों को जब गाय-बैल की चर्बी और पषु चर्बी लगे कारतूस मुँह से खोलने का आदेष दिया जाता तो वे मना कर देते। इसी प्रकार गौवंष के प्रति विषेष आदर के कारण एक बार बंगाली सैनिकों ने बैलों की पीठ पर बैठने के लिए मना कर दिया। कहते हैं, इस प्रकार की मनाही पर अंग्रेजों ने सात सौ बंगाली सैनिकों को गोलियों से भूनकर मौत के घाट उतार दिया। यह सुनकर बांठियाजी की आत्मा मातृभूमि की रक्षार्थ तड़प उठी। उन्होंने ठान लिया कि भारतमाता के लिए सर्वस्व समर्पित करना है।
इधर, रानी लक्ष्मीबाई के सैनिक और क्रांतिकारी देष की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने लगे। लेकिन उन्हें भयावह आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा था। उन्हें कई महीनों से वेतन नहीं मिल रहा था। राषन-पानी के अभाव में उनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय हो रही थी। ऐसे विकट समय में देषभक्त अमरचन्द बांठिया ने क्रांतिकारियों की आर्थिक मदद शुरू कर दी। देषभक्तों के लिए उन्होंने अपना निजी धन दिया और राजकोष भी खोल दिया। पुष्करवाणी ग्रुप ने जानकारी देते हुए बताया कि यह धनराशि उन्होंने 8 जून 1858 को उपलब्ध कराई।
उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे और क्रांतिकारियों को देष के लिए संघर्ष करने हेतु मुक्त आर्थिक सहयोग किया। नाना साहेब पेषवा के भाई रावसाहेब के जरिये वे आर्थिक सहयोग भिजवाते थे। वे हर प्रकार से देषभक्तों की मदद करते थे। उनके नियोजित और समयोचित सहयोग के फलस्वरूप वीरांगना लक्ष्मीबाई दुष्मनों के छक्के छुड़ाने में सफल रहीं।
ब्रिटिष शासन ने देषभक्त अमरचन्द बांठिया के सहयोग को राजद्रोह माना। फिरंगियों (अंग्रेजों) ने बांठियाजी को तरह-तरह की बर्बर यातनाएँ दीं। क्रूर ब्रिटिष शासकों ने खौफ पैदा करने के लिए बांठियाजी के दस वर्षीय पुत्र को तोप से उड़ा दिया। सोलहवीं सदी में वीर माता श्राविका पन्नाधाय ने कर्Ÿाव्य की बलिवेदी पर अपने पुत्र का बलिदान अपने सामने देखा। उन्नीसवीं सदी में वीर पिता श्रावक अमरचन्द बांठिया ने भारतमाता की सेवार्थ अपने पुत्र का बलिदान अपने सामने देखा। अपने प्राणप्यारे मासूम पुत्र के बलिदान का दारूण कष्ट भी बांठियाजी को धर्म और राष्ट्रधर्म से नहीं डिगा पाया। परिणामस्वरूप फिरंगियों ने बांठियाजी को मौत की सजा सुनाई।
फिरंगियों ने बांठियाजी पर दोहरा देषद्रोह का आरोप लगाया। पहला यह कि उन्होंने गंगाजली कोष का बहुत सारा धन रानी लक्ष्मीबाई के सिपाहियों को बाँटा, जो कि ग्वालियर स्टेट के विरुद्ध अपराध है। दूसरा - ब्रिटिष शासन का विरोध करने वाले ‘देषद्रोहियों’ को धन दिया। बांठियाजी ने जवाब दिया कि जब कोष से धन दिया गया, तब कोष रानी के ही नियंत्रण में था। अतः उनका वैसा करना ग्वालियर स्टेट के विरुद्ध कदम नहीं था। दूसरे आरोप के जवाब में बांठियाजी ने कहा कि फिरंगी हमारे देष के दुष्मन हैं। देष और देष की आजादी के लिए मर मिटने वालों की मदद करना देषद्रोह नहीं है। क्रूर फिरंगियों ने बांठियाजी के न्यायोचित निर्भीक उŸार को सुनकर भी अनसुना कर दिया।
फिरंगियों की क्रूरता तब भी कम नहीं हुई। उन्होंने लोगों में खौफ बनाये रखने के लिए ग्वालियर में सर्राफा बाजार स्थित उनके घर के सामने ही नीम के पेड़ की शाखा से लटकाकर खुले में बांठियाजी को फाँसी देने का फैसला किया। फाँसी से पहले भगवान महावीर के वीर उपासक बांठियाजी मन ही मन नवकार महामंत्र का स्मरण कर रहे थे। इस दौरान उनका फन्दा कई बार टूट गया। इससे हैरान होकर फाँसी देने वाले ब्रिगेडियर नैपियर ने अमरचन्दजी से उनकी अन्तिम इच्छा के लिए पूछा। धर्मनिष्ठ श्रावक बांठियाजी ने सामायिक करने की इच्छा जताई। देष के लिए समभावपूर्वक मृत्यु का वरण करने से पहले उन्होंने सामायिक की और 22 जून 1858 को वे फाँसी के फन्दे पर झूलकर देष के लिए मर मिट गये। उनकी इस शहादत के चार दिन पूर्व ही रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुई थीं।
फिरंगियों की बर्बरता तब तक भी कम नहीं हुई थी। उन्होंने अमर शहीद बांठियाजी के शव को तीन दिन तक नीम के पेड़ पर ही लटकाये रखने का आदेष दिया। परिजनों ने अंत्येष्टी के लिए पार्थिव शरीर मांगा, लेकिन फिरंगियों ने उनकी मांग ठुकरा दी। फिरंगियों के सिपाही नीम के पेड़ पर लकटते उस पार्थिव शरीर पर पहरा लगा रहे थे। उन तीन दिनों तक, अंत्येष्टी होने तक, उस खौफनाक एवं दुःखद माहौल में बांठियाजी के परिजनों, रिष्तेदारों और देषभक्तों ने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया।
स्वतंत्रता सेनानी अमरचन्द बांठिया को इतिहासकारों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजस्थान का प्रथम शहीद माना। उस ऐतिहासिक शहादत का साक्षी वह नीम का पेड़ कुछ समय पूर्व तक विद्यमान था। वर्तमान में वहाँ अमर शहीद अमरचन्द बांठिया की प्रतिमा लगी हुई है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जैन धर्मावलम्बियों का भी तन, मन, धन से सहयोग रहा। इतिहास की किताबों और पाठ्य पुस्तकों में उन्हें भी उचित सम्मान मिलना चाहिये।
- डॉ. दिलीप धींग, एडवोकेट
(निदेशक: अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र)

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#योग का इतिहास
वैदिक संहिताओं के अंतर्गत तपस्वियों (तपस) के बारे में ((कल | ब्राह्मण)) प्राचीन काल से वेदों में (९०० से ५०० बी सी ई) उल्लेख मिलता है, जब कि तापसिक साधनाओं का समावेश प्राचीन वैदिक टिप्पणियों में प्राप्त है।[1] कई मूर्तियाँ जो सामान्य योग या समाधि मुद्रा को प्रदर्शित करती है, सिंधु घाटी सभ्यता (सी.3300-1700 बी.सी. इ.) के स्थान पर प्राप्त हुईं है। पुरातत्त्वज्ञ ग्रेगरी पोस्सेह्ल के अनुसार," ये मूर्तियाँ योग के धार्मिक संस्कार" के योग से सम्बन्ध को संकेत करती है।[2] यद्यपि इस बात का निर्णयात्मक सबूत नहीं है फिर भी अनेक पंडितों की राय में सिंधु घाटी सभ्यता और योग-ध्यान में सम्बन्ध है।[3]

ध्यान में उच्च चैतन्य को प्राप्त करने कि रीतियों का विकास श्र्मानिक परम्पराओं द्वारा एवं उपनिषद् की परंपरा द्वारा विकसित हुआ था।[4]

बुद्ध के पूर्व एवं प्राचीन ब्रह्मिनिक ग्रंथों मे ध्यान के बारे मे कोई ठोस सबूत नहीं मिलता है, बुद्ध के दो शिक्षकों के ध्यान के लक्ष्यों के प्रति कहे वाक्यों के आधार पर वय्न्न यह तर्क करते है की निर्गुण ध्यान की पद्धति ब्रह्मिन परंपरा से निकली इसलिए उपनिषद् की सृष्टि के प्रति कहे कथनों में एवं ध्यान के लक्ष्यों के लिए कहे कथनों में समानता है।[5] यह संभावित हो भी सकता है, नहीं भी.[6]

उपनिषदों में ब्रह्माण्ड संबंधी बयानॉ के वैश्विक कथनों में किसी ध्यान की रीति की सम्भावना के प्रति तर्क देते हुए कहते है की नासदीय सूक्त किसी ध्यान की पद्धति की ओर ऋग वेद से पूर्व भी इशारा करते है।[7]

यह बौद्ध ग्रंथ शायद सबसे प्राचीन ग्रंथ है जिन में ध्यान तकनीकों का वर्णन प्राप्त होता है।[8] वे ध्यान की प्रथाओं और अवस्थाओं का वर्णन करते है जो बुद्ध से पहले अस्तित्व में थीं और साथ ही उन प्रथाओं का वर्णन करते है जो पहले बौद्ध धर्म के भीतर
🌺i: यह बौद्ध ग्रंथ शायद सबसे प्राचीन ग्रंथ है जिन में ध्यान तकनीकों का वर्णन प्राप्त होता है।[8] वे ध्यान की प्रथाओं और अवस्थाओं का वर्णन करते है जो बुद्ध से पहले अस्तित्व में थीं और साथ ही उन प्रथाओं का वर्णन करते है जो पहले बौद्ध धर्म के भीतर विकसित हुईं.[9] हिंदु वांग्मय में,"योग" शब्द पहले कथा उपानिषद में प्रस्तुत हुआ जहाँ ज्ञानेन्द्रियों का नियंत्रण और मानसिक गतिविधि के निवारण के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है जो उच्चतम स्तिथि प्रदान करने वाला मन गया है।[10] महत्वपूर्ण ग्रन्थ जो योग की अवधारणा से सम्बंधित है वे मध्य कालीन उपनिषद्, महाभारत,भगवद गीता 200 BCE) एवं पथांजलि के योग सूत्र है। (ca. 400 BCE)
🌺जैन धर्म संपादित करें🌺

तीर्थंकर पार्स्व यौगिक ध्यान में कयोत्सर्गा मुद्रा में.

महावीर के केवल ज्ञान मुलाबंधासना मुद्रा में
दूसरी शताब्दी के सी इ जैन पाठ तत्त्वार्थसूत्र, के अनुसार मन, वाणी और शरीर सभी गतिविधियों का कुल योग है। [48] उमास्वती कहते है कि अस्रावा या कार्मिक प्रवाह का कारण योग है[49] साथ ही- सम्यक चरित्र - मुक्ति के मार्ग मे यह बेहद आवश्यक है।

[50] अपनी नियामसरा में, आचार्य कुंडाकुण्डने योग भक्ति का वर्णन- भक्ति से मुक्ति का मार्ग - भक्ति के सर्वोच्च रूप के रूप मे किया है।[51] आचार्य हरिभद्र और आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार पाँच प्रमुख उल्लेख संन्यासियों और 12 समाजिक लघु प्रतिज्ञाओं योग के अंतर्गत शामिल है। इस विचार के वजह से कही इन्डोलोज़िस्ट्स जैसे प्रो रॉबर्ट जे ज़्यीडेन्बोस ने जैन धर्म के बारे मे यह कहा कि यह अनिवार्य रूप से योग सोच का एक योजना है जो एक पूर्ण धर्म के रूप मे बढ़ी हो गयी।

[52] डॉ॰ हेंरीच ज़िम्मर संतुष्ट किया कि योग प्रणाली को पूर्व आर्यन का मूल था, जिसने वेदों की सत्ता को स्वीकार नहीं किया और इसलिए जैन धर्म के समान उसे एक विधर्मिक सिद्धांतों के रूप में माना गया था

[53] #जैन शास्त्र, जैन तीर्थंकरों को ध्यान मे #पद्मासना या #कयोत्सर्गा योग मुद्रा में दर्शाया है। ऐसा कहा गया है कि #महावीर को मुलाबंधासना स्थिति में बैठे केवला ज्ञान "आत्मज्ञान" प्राप्त हुआ जो #अचरंगा सूत्र मे और बाद में #कल्पसूत्र मे पहली साहित्यिक उल्लेख के रूप मे पाया गया है।[

#राजस्थान सरकार की website: state portal #government of #rajasthan के होम पेज पर #राणकपुर #जैन #मंदिर

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अंतर्राष्ट्रीय #योग दिवस पर आप सभी को हार्द्दिक शुभकामनाएँ।
नियमित #योग साधना से अपने मन और तन दोनों को स्वस्थ व प्रफुल्लित बनाएँ।
प्राचीन काल से हमारे ऋषि मुनियों द्वारा प्रद्दत इस अनूठी साधना व व्यायाम पद्दति को "#सर्व जन हिताय, #सर्व जन सुखाय" के विशुद्ध उद्देश्य से सम्पूर्ण विश्व के समक्ष लाने वाले सभी महान पुरुषों को नमन।
आप सभी का जीवन #योग साधना से लाभान्वित हो यही शुभ कामना।

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