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चातुर्मास:जैन धर्म में इसे सामूहिक वर्षायोग तथा चातुर्मास के रूप में जाना जाता है.. जैन धर्म में संन्यासियों, जैसे भटक भिक्षुओं का मानना था कि बारिश के मौसम के दौरान, अनगिनत कीड़े, कीड़े और छोटे जीव को नग्न आंखों में नहीं देखा जा सकता है तथा वर्षा के मौसम के दौरान जीवो की उत्त्पति भी सर्वाधिक होती है.चलन-हिलन की ज्यादा क्रियाये इन मासूम जीवो को ज्यादा परेशान करेगी. अन्य प्राणियों को साधुओ के निमित से कम हिंसा ह़ो तथा उन जीवो को ज्यादा अभयदान मिले उसके द्रष्टिगोचर कम से कम तो वे चार महीने के लिए एक गांव या एक ठिकाने में रहने के लिए अर्थात विशेष परिस्थितिओं के अलावा एक ही जगह पर रह कर स्वकल्याण के उधेश्य से ज्यादा से ज्यादा स्वाध्याय,संवर,पोषद,प्रतिक्रमण,तप,प्रवचन तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्व देते है
यह सर्व विदित ही कि साधुओ का कोई स्थायी ठोर-ठिकाना नहीं होता तथा जन कल्याण की भावना संजोये वे वर्ष भर एक ठिकाने से दुसरे ठिकाने तक पैदल चल चल कर श्रावक-श्राविकाओ को अहिंसा,सत्य,ब्रम्हचर्यका विशेष ज्ञान बांटते रहते है तथा पुरे चातुर्मास अर्थात 4 महीने तक एक क्षेत्र की मर्यादा में स्थाई रूप से निवासित रहते हुए जैन दर्शन के अनुसार मौन-साधना,ध्यान,उपवास, स्व अवलोकन की प्रक्रिया,सामयिक ओर प्रतिक्रमण की विशेष साधना,धार्मिक उदबोधन,संस्कार शिविरों से हर शक्श के मन मंदिर में जन-कल्याण की भावना जाग्रत करने का सुप्रयास जारी रहता है.. तिर्थंकरो ओर सिद्ध पुरुषों की जीवनियो से अवगत कराने की प्रक्रिया इस पुरे वर्षावास के दरम्यान निरंतर गतिमान रहती है तथा परिणिति सुश्रवाको तथा सुश्रविकाओ के द्वारा अनगिनत उपकार कार्यो के रूप में होती है..एक सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार पर्युषण पर्व की आराधना भी इसी दौरान होती है..पर्युषण के दिनों में जैनी की गतिविधि विशेष रहती है तथा जो जैनी वर्ष भर या पुरे चार माह तक कतिपय कारणों से जैन दर्शन में ज्यादा समय नहीं प्रदान कर पाते वे इन पर्युषण के ८ दिनों में अवश्य ही रात्रि भोजन का त्याग,ब्रम्हचर्य,ज्यादा स्वाध्याय,मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधू-संतो की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगल भावना दर्शाते है..
चातुर्मास का सही मूल्यांकन श्रावको ओर श्राविकाओ के द्वारा लिए गए स्थायी संकल्पों एवं व्रत प्रत्याखानो से होता है..यह समय आध्यात्मिक क्षेत्र में लगात्तर नई ऊँचाइयों को छुने हेतु प्रेरित करने के लिए है..अध्यात्म जीवन विकास की वह पगडण्डी है जिस पर अग्रसर होकर हम अपने आत्स्वरूप को पहचानने की चेष्टा कर सकते है.. साधू-साध्वियो के भरसक सकारात्मक प्रयांसो की बदोलत कई युवा धर्म की ओर उन्मुख होकर नया ज्ञान-ध्यान सीखकर स्वयं के साथ दूसरों के कल्याण की सोच हासिल करते है..कई सुश्रावक-सुश्रविका पारंगत होकर स्वाध्यायी बनकर जिन क्षेत्रो में साधू-साध्वी विचरण नहीं कर रहे है,वहां जाकर स्वाध्याय तथा जन कल्याण की भावना का प्रचार प्रसार कर अपना जीवन संवार लेते है..सेकंडो जिज्ञासाओ को शांत करने का सुअवसर है,चातुर्मास..स्वधर्मी के कल्याण की अलख जगाता है,चातुर्मास..जीवदया की ओर उन्मुख करता है चातुर्मास..तपस्वी तथा आचार्या भगवन्तो के पावन दर्शन से लाभान्वित होने का मार्ग है चातुर्मास..साहित्य की पुस्तकों से रूबरू होने का जरिया है,चातुर्मास..उपवास से कर्म निर्जरा का सन्मार्ग दिखाता है चातुर्मास..सम्यग ज्ञान,दर्शन ओर चरित्र की पाटी पढ़ाता है,चातुर्मास..कई धार्मिक.शेक्षणिक शिविरों क़ी जन्मदात्री है,चातुर्मास..कई राहत कार्यों के आयोजनों का निर्माता है चातुर्मास..जन से जैन बने,प्रेरणा दाई है चातुर्मास.
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जैन पद्धति अनुसार सुबह कैसे उठना?
१. सर्वप्रथम हाथों 👐 के दर्शन करना ।
चन्द्रमा 🌙 रुपी सिद्धशिला के ऊपर
विराजमान २४ तीर्थकरों की
कल्पना कर उन्हें नमस्कार 👏 करना ।
२. परमात्मा की तरह हमारे भी
कर्म क्षय (ख़त्म) हों, इस
भावना से 8 नवकार मन्त्र गिनना ।
३. नाक 👃 की जिस नली
(Right or left) से श्वास
अधिक आता हो, वह (right या left) पैर
ज़मीन पर पहले रखना ।
४. घर में इस प्रकार व्यवस्था
करनी की सुबह उठते साथ कभी झाड़ू और जूते-चप्पल 👡👠👞
के दर्शन न हों ।
५. भगवान की प्रतिमा/फ़ोटो के आगे
णमो जिणाणं कहकर गुरु की
प्रतिमा / फ़ोटो के आगे विनयपूर्वक मत्थएण वंदामि 🙏
कहना ।
६. अपने माता पिता 👩👨 के चरण
स्पर्श करना अथवा उनकी
फ़ोटो के आगे शीश झुकाना ।
७. नवकारसी का पच्चक्खान
अवश्य करना । सूर्योदय से 48
मिनट तक कुछ न खाना पीना
ही नवकारसी है जो बहुत ही
आसानी से किया जा सकता है ।