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UPDATE 🔔LIVE TELECAST @ Paras Channel and Jinvaani Channel tomorrow:)🔔 प्रथम रविवारीय धर्मसभा* आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज* एवं संघ का मंगल चातुर्मास भोपाल नगर में चल रहा है। कलश स्थापना के बाद प्रथम रविवारीय धर्मसभा* (प्रवचन) 31 जुलाई को आयोजित किये जा रहे है। #vidyasagar #bhopal #Jainism
*रविवार* *31 जुलाई 2016* *दोपहर 2.30 बजे से* *सुभाष स्कूल ग्राउंड* 7 नंबर स्टॉप शिवाजी नगर हबीबगंज मंदिर के पास भोपाल!
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Exclusive #vidyasagar @ #bhopal:))
तेरे दरबार की गुरुवर अजब जलवागिरी देखी।
नही देते तुझे देखा मगर झोली भरी देखी।
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Special Sharing:) ✿ क्यों खास है आचार्य श्री जी द्वारा रचित कालजयी रचना “मूकमाटी” #VidyaSagar #Mookmati #मूकमाटी
@ आचार्य श्री विद्यासागर की कृति ‘मूक माटी’ मात्र कवि का काव्य नहीं है, यह एक दार्शनिक सन्त की आत्मा का संगीत है!!
@ मुख्य पात्र है मूक माटी और बात तो यह है कि माटी जैसी अकिंचिन, पद-दलित और तुच्छ वस्तु को महाकाव्य का विषय बनाने की कल्पना ही नितान्त अनोखी है!!
@ आचार्य श्री की कृतियों काव्य सृजन पर अनेकानेक शोध हो चुके है / हो रहे है, इनमें से अनेक शोध प्रबंध अब तक प्रकाशित होकर पाठक जगत को आचार्य प्रवर के मौलिक एवं नूतन भावों का परिचय करा रहे हैं!!
@ देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से अभी तक *4 डी-लिट्, 30 पी-एचडी, 8 एम.फिल, 2 एम.एड. तथा 6 एमए* के शोध प्रबंध लिखे जा चुके हैं!!
@ देश-विदेश के लगभग 300 जैन जैनेत्तर विद्वानों ने “मूकमाटी” पर समीक्षात्मक विचार लिखे हैं जो भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित ‘मूकमाटी मीमांसा’ के रूप में हैं!!
@ कालजयी हिन्दी महाकाव्य 'मूकमाटी' के अंग्रेजी रूपांतरण “The Silent Earth” का लोकार्पण समारोह में तत्कालीन “राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल” ने किया था । पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद 'द साइलेंट अर्थ' के नाम से लालचन्द्र जैन, ललितपुर (उप्र) ने किया है!!
@ महाकाव्य मूकमाटी अँग्रेजी में तीन बार, मराठी में तीन बार, कन्नड़ में दो बार पृथक-पृथक मनीषियों द्वारा अनुवादित हो चुका है तथा बांग्ला एवं गुजराती में भी अनुवादित होकर पाठकों में नूतन विचारों का संचार कर रहा है!!
@ भारत के कई महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल है महाकाव्य मूकमाटी
# छत्तीसगढ़ के पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर*
# उत्तर प्रदेश के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारस*
# महाराष्ट्र के राष्ट्रसंत तुकड़ोजी नागपुर विद्यापीठ नागपुर*
# गुजरात के सौराष्ट्र विश्विद्यालय राजकोट*
# मध्य प्रदेश के अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल*
सहित विभिन्न लौकिक पाठ्यक्रमों में इस कृति को शामिल किया गया है, और अन्य महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल होने की प्रिक्रिया चल रही है!!
@ मध्यप्रदेश_विधानसभा के पुस्तकालय में अध्ययन के लिए सुशोभित है!!
@ गुरुवर ने अपनी इस कृति के माध्यम से माटी की तुच्छता के चरम भव्यता के दर्शन करके उसकी विशुद्धता और उपक्रम को मुक्ति की मंगल-यात्रा के रूपक में ढालना कविता के अध्यात्म के साथ अ-भेद की स्थिति में पहुँचना है!!
@ मूकमाटी का लेखन शुरू हुआ पिसनहारी की मड़िया में 25 अप्रैल 1984 को एवं सिद्धक्षेत्र नैनागिरजी में 11 फरवरी 1987 को पूर्ण हुआ!!
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भोपाल शहर में रहने वाले अन्य समाज के वो लोग जो आचार्य भगवंत को नहीं जानते उनके पीछे चलने वाले श्रद्धालुओं के अथाह समूह को देख भारी अचरज में पड़ जाते हैं कि ऐसा क्या है इस संत के पास,,
यह संत जो बिना वस्त्रों के हैं कोई ठाट-बाट भी साथ नहीं है भोग उपयोग का कोई साधन भी नहीं है केवल एक मयूर पिच्छी और एक कमंडल हाथ में है उसके बाद भी इतनी जनता दीवानों की तरह उनके पीछे चल रही है और उतने ही भक्तगण आगे नतमस्तक खड़े हैं आचार्य भगवंत जहां भी निकल पड़ते हैं लोग केवल एक झलक पाने को बेताब है और उस झलक को पाते ही अपने आप को धन्य मानने लगते हैं ।।
तो आइए जाने क्या है उस संत के पास,,
जेनेश्वरी दीक्षा प्रदान करने वाली सम्यक गुरु परंपरा के गुरु आचार्य ज्ञान सागर जी महामुनिराज का आशीर्वाद,,
अखंड ब्रह्मचर्य को धारण करने वाले चिरकाल तक धर्म की ध्वजा को उठाए रखने वाले निर्ग्रंथ मुनिराजों सहित चतुर्बिध संघ,,
संयम सौरभ साधना जिन को करें प्रणाम त्याग तपस्या लीन यति विद्यासागर नाम
अथार्थ, कठिन तप और त्याग को अपनाते हुए अरुचिकर भोजन आदि को ग्रहण करते हुए भी संयम रूपी तप को करने वाले मुनि मुनि आचार्य गुरु विद्यासागर जी हैं जिनकी आगम वर्णित चर्या को देख कर ही भक्तगण स्वयं ही उनके पीछे चल देते हैं।।
ऐसे गुरु भगवंत आचार्य विद्यासागर जी महाराज जयवंत हो
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गुरुदेव द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को महाकाव्य मूकमाटी प्रदान किया गया लाइब्रेरी में रखने:)) #vidyasagar #vidhansabha #mookmati #ShivrajSingh
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Acarya VidyaSagar @ VidhanSabha exclusive Click:) ek share to banta hain.. MUST READ ✿ धर्मं क्या हैं आओ जाने आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रवचनों से..
आचार्य श्री ने यहाँ ‘सत्त्वान’ कहा, अकेला ‘जैनान’ नहीं कहा। इससे सिद्ध होता है कि धर्म किसी सम्प्रदाय विशेष से संबन्धित नहीं है। धर्म निर्बन्ध है, निस्सीम है, सूर्य के प्रकाश की तरह। सूर्य के प्रकाश को हम बंधन युक्त कर लेते हैं दीवारें खींच कर, दरवाजे बना कर, खिडकियाँ लगाकर। इसी तरह आज धर्म के चारों ओर भी सम्प्रदायों की दीवारें/सीमाएं खींच दी गयी हैं।
आचार्य कुंदकुंद के रहते हुए भी आचार्य समंतभद्र का महत्व एवं लोकोपकार किसी प्रकार कम नहीं है। हमारे लिये आचार्य कुंदकुंद पिता तुल्य हैं और आचार्य समंतभद्र करुणामयी मां के समान हैं। वहीं समंतभद्र आचार्य कहते हैं कि ‘देशयमी समीचीन धर्मम् कर्मनिवर्हणम्, संसार दुखतः सत्त्वान् यो धरत्युत्त्मे सुखे’। अर्थात मैं समीचीन धर्म का उपदेश करुंगा। यह समीचीन धर्म कैसा है? ‘कर्मनिवर्हनम्’ अर्थात कर्मों का निर्मूलन करने वाला है और ‘सत्त्वान’ प्राणियों को संसार के दुःखों से उबार कर उत्तम सुख में पहुँचाने वाला है।
गंगा नदी हिमालय से प्रारम्भ हो कर निर्बाध गति से समुद्र की ओर प्रवाहित होती है। उसके जल में अगणित प्राणी किलोलें करते हैं, उसके जल से आचमन करते हैं, उसमें स्नान करते हैं, उसका जल पी कर जीवन रक्षा करते हैं, अपने पेड-पौधों को पानी देते हैं, खेतों को हरियाली से सजा लेते हैं। इस प्रकार गंगा नदी किसी एक प्राणी, जाति अथवा सम्प्रदाय की नहीं है, वह सभी की है। यदि कोई उसे अपना बताये तो गंगा का इसमें क्या दोष? ऐसे ही भगवान ऋषभदेव अथवा भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित धर्म पर किसी जाति विशेष का आधिपत्य संभव नहीं है। यदि कोई आधिपत्य रखता है तो यह उसकी अज्ञानता है।
धर्म और धर्म को प्रतिपादित करने वाले महापुरुष सम्पूर्ण लोक की अक्षय निधि हैं। महावीर भगवान की सभा में क्या केवल जैन ही बैठते थे? नहीं, उनकी धर्म सभा में देव, देवी, मनुष्य, स्त्रियाँ, पशु-पक्षी सभी को स्थान मिला हुआ था। अतः धर्म किसी परिधि से बन्धा हुआ नहीं है। उसका क्षेत्र प्राणी मात्र तक विस्तृत है।
आचार्य महाराज अगले श्लोक में धर्म की परिभाषा का विवेचन करते हैं। वे लिखते हैं को ‘सद्दृष्टि ज्ञान वृत्तानि धर्मं, धर्मेश्वरा विदुः। यदीयप्रत्यनीकानि भवंति भवपद्धति’॥ अर्थात (धर्मेश्वरा) गणधर परमेष्ठि (सद्दृष्टि ज्ञानवृत्तानि) समीचीन दृष्टि, ज्ञान और सद्आचरण के समंवित रूप को धर्म कहते हैं। इसके विपरीत अर्थात मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचरित्र संसार-पद्धति को बढाने वाले हैं।
सम्यग्दर्शन अकेला मोक्ष मार्ग नहीं है, किंतु सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चरित्र का समंवित रूप ही मोक्षमार्ग है। वही धर्म है। औषधि पर आस्था, औषधि का ज्ञान और औषधि को पीने से ही रोग मुक्ति सम्भव है। इतना अवश्य है कि जैनाचार्यों ने सद्दृष्टि पर सर्वाधिक बल दिया है। यदि दृष्टि में विकार है तो निर्दिष्ट लक्ष्य को प्राप्त करना असम्भव ही है।
मोटर कार चाहे कितनी अच्छी हो, वह आज ही फैक्ट्री से बन कर बाहर क्यों ना आयी हो, किंतु उसका चालक मदहोश है तो वह गंतव्य तक नहीं पहुँच पायेगा। वह कार को कहीं भी टकरा कर चकनाचूर कर देगा। चालक का होश ठीक होना अनिवार्य है, तभी मंजिल तक पहुँचा जा सकता है। इसी प्रकार मोक्षमार्ग का पथिक जब तक होश में नहीं है, जबतक उसकी मोह की नींद का उपशमन नहीं हुआ तबतक लक्ष्य की सिद्धि अर्थात मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती।
मिथ्यात्व रूपी विकार, दृष्टि से निकालना चाहिये तभी दृष्टि समीचीन बनेगी और तभी ज्ञान भी सुज्ञान बन पायेगा। फिर रागद्वेष की निवृति के लिये चारित्र-मोहनीय कर्म के उपशमन से आचरण भी परिवर्तित करना होगा, तब मोक्षमार्ग की यात्रा निर्बाध पूरी होगी।
ज्ञान-रहित आचरण लाभदायक न होकर हानिकारक सिद्ध होता है। रोगी की परिचर्या करने वाला यदि यह नहीं जानता कि रोगी को औषधि का सेवन कैसे कराया जाए तो रोगी का जीवन ही समाप्त हो जायेगा। अतः समीचीन दृष्टि, समीचीन ज्ञान और समीचीन आचरण का समंवित रूप ही धर्म है। यही मोक्ष मार्ग है। #vidyasagar #Dharma #Jainism #ShivrajSingh #Vidhansabha
picture shared by Mr. Ritesh Jain, Bhopal -Loads thank him!
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✿ मुनि पुंगव सुधासागर जी का चातुर्मास ब्यावर में हुआ हैं! इस अवसर पर मुनिराज का चरण प्रक्षाल किया गया:) ✿ #Sudhasagar
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Surprising UPDATE must read n share ✿ आचार्यश्री सुनिलसागरजी मुनिराज के वर्षायोग स्थापना कार्यक्रम में एक वाक्या हुआ ✿ #Sunilsagar #Proud
जब वर्षायोग कलश की बोली लग रही थी तब एक भक्त द्वारा मंगल कलश की बोली 24 लाख की बोली गयी तब बोली लगवा रहे संचालनकर्ता ने अपनी मर्जी से ही बोला की आचार्यश्री की इच्छा हे की जिस महानुभाव ने 24 लाख की रकम बोली हे वो ही 25 लाख कर दे......
ऐसा सुनते ही आचार्यश्री मंच संचालक को रोकते/टोकते हुए उससे बड़ी मधुरता से बोले
की श्रीमान पहले आप अपने वचनो पर सत्यता विराजमान करो......क्या आपने जो अभी कहा वह सत्य हे....???
बोली एक रुपये में जाए या दस लाख में या पचास लाख.... में हमे इससे क्या मतलब
हमारी तो बोली में कोई इच्छा अपेक्षा नही हे,
ये तो आप समाजजनों का मतलब है....
बल्कि में तो चाहता हु ये बोली जितनी अभी तक हुई हे उसमें भी दस-बीस लाख कम जाए तो भी अच्छा है, क्या करना हे इतने पैसो का...???
क्या कोई गरीब परिवार को सहायता कर रहे हो.....??? या
क्या कोई कोई स्कुल या चिकित्सालय खोल रहे है......????
नही....तो फिर क्या मतलब....??
हमारे लिए तो स्वाध्याय जैसी क्रियाओ को छोड़कर इन बोलियो में एक मिनिट भी बैठना अनुचित है....
इसलिये ये बोली कितने में भी जाए इससे हमारा कोई सरोकार नही है..
हम अपने पास ऐसा कोई प्रपंच नही रखते जिससे हमे धन की आवश्यकता पडे...!!
इतना सुनते ही संचालक महोदय ने सार्वजनिक रूप से अपनी गलती पर माफ़ी मांगी और बोली 24 लाख में ही 1...2...3... कर दिया.....!!
आचार्यश्री सुनीलसागरजी के नेक एवं अति उत्तम विचारो को सुनकर हजारो की संख्या में मौजूद भक्त गदगद हो गए....!!!
१०८ आचार्यश्री सुनिलसागरजी के पावन चरणों में कोटि-कोटि नमन्....
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