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दीक्षा दिवस मुनिश्री क्षमासागर जी
20 अगस्त 2016
पदमपुरा जी, राजस्थान
अभिषेक एवं पूजन
प्रातः ११ बजे से मुनिश्री के जीवन पर आधारित प्रदर्शनी और साहित्य विश्लेषण
दोपहर १ बजे से दीक्षा दिवस समारोह
मुनिश्री के जीवन पर आधारित डाक्यूमेंट्री का प्रदर्शन
मुनिश्री का जीवन दर्शन - विनयांजलि
मुनिश्री के नए साहित्य का विमोचन
मुनिश्री के प्रवचन
वृक्षारोपण
गऊशाला का शुभारम्भ
भजन संध्या
दीक्षा दिवस समारोह में आप सभी सादर आमंत्रित हैं ---- ----
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हम अपने मन के नौकर बन गए हैं और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। - आचार्य विद्यासागर today pravachan:))
आचार्यश्री ने कहा कि भारत अब 70 साल का हो चुका है। एक तरह से परिपक्व राष्ट्र हो चुका है। हमारे नेता आज भी भारत को विकासशील राष्ट्र कहते हैं। हम 70 साल से यही सुनते आ रहे हैं। कहा जाता है कि अमेरिका, जापान, रसिया, फ्रांस, जर्मनी विकसित हो चुके हैं और भारत विकासशील है। दरअसल हम इसलिए विकासशील हैं कि हम दूसरे राष्ट्रों को देखकर विकास की अवधारणा बना रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विकसित राष्ट्र है। हमने इस नीति से बाहर आना होगा।
आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि यदि शांति चाहिए तो चिंता और चिंतन से मुक्त हो जाओ जो चीजे अनादिकाल से है उन्हें समाप्त किया जा सकता है। जैसे राग, द्वेष अनादिकाल से है। हम इन्हें समाप्त कर सकते हैं। लेकिन इनके बारे में ज्यादा चिंता और चिंतन करने से सिर दर्द के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य का सारा पुरुषार्थ सिर्फ पेट के लिए नहीं है। वह मन के वश में है। एक तरह से मन का नौकर बन गया है और मन के पास पेट नहीं पेटी है जो कभी भरती नहीं है। मनुष्य मन की पेटी को भरने के लिए तमाम यतन करता है। मन की इच्छाओं को पूरा करने वह आशीर्वाद मांगने हमारे पास भी आता है। हम कहते हैं मन को मारने का पुरुषार्थ करो तो शांति स्वत: मिल जाएगी।
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❖ Union with Self Not Possible through Honours And Worship -Acarya VishudhaSagar G ❖
O, pure soul. You are availing/enjoying many respects and honors; but be mindful that it is not to last long? You are to get these honors and worshiping so long as you are unmindful of them. Whosoever has absorbed him in honorees and worshipping, has become devoid of honor and worshipping. O, wise and prudent soul, remembers that these honors and worshipping are not yours. The gems-trio is worshipped. Worshipping is not done that of bricks and mortar (with which temples are built), it is that of deity installed within it. A temple/Chaityalaya is like a body within which soul (Chaitya) studded with gems-trio is placed. It is so because the soul is adjoined with gems-trio is seated within the body. The temple/chaityalaya/house of lord becomes worship-able, the moment the lord-deity is installed there. The deity consists of gem-trio and the temple is its body. Wherever Gem-trio is worshipped, its body automatically gets worship-able.
O my consciousness, do not attempt to procure honors and worshipping. In that case, your would neither be worship-able, nor a worshipper. The worship-able, does not aspire for being worshipped. He, who worships, become worship-able,. Be noted that he who aspires for being worshipped, never become worship-able. Give up your ego, you will be worship-able.
O wise and prudent one! The union with self is not possible through physical honours and worshipping. They can be possible through meditation or union with self, but one can never attain union with self by being honoured or worshipped. Take note; in case you really aspire for worships and honors, you give your ego vanity; you shall thereby make yourself worship-able /object of worship. #VishuddhaSagar #Jainism
|| I bow disembodied pure souls (Siddhas) and all the five supreme beings ||
From: 'Shuddhatma Tarnggini'
Author: Aacharya Vishudha Sagarji Maharaj
English Translator: Darshan Jain, Prof. P. C. Jain
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हम अपने मन के नौकर बन गए हैं और यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है। - आचार्य विद्यासागर today pravachan:))
आचार्यश्री ने कहा कि भारत अब 70 साल का हो चुका है। एक तरह से परिपक्व राष्ट्र हो चुका है। हमारे नेता आज भी भारत को विकासशील राष्ट्र कहते हैं। हम 70 साल से यही सुनते आ रहे हैं। कहा जाता है कि अमेरिका, जापान, रसिया, फ्रांस, जर्मनी विकसित हो चुके हैं और भारत विकासशील है। दरअसल हम इसलिए विकासशील हैं कि हम दूसरे राष्ट्रों को देखकर विकास की अवधारणा बना रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विकसित राष्ट्र है। हमने इस नीति से बाहर आना होगा।
आचार्य विद्यासागर महाराज ने कहा कि यदि शांति चाहिए तो चिंता और चिंतन से मुक्त हो जाओ जो चीजे अनादिकाल से है उन्हें समाप्त किया जा सकता है। जैसे राग, द्वेष अनादिकाल से है। हम इन्हें समाप्त कर सकते हैं। लेकिन इनके बारे में ज्यादा चिंता और चिंतन करने से सिर दर्द के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि मनुष्य का सारा पुरुषार्थ सिर्फ पेट के लिए नहीं है। वह मन के वश में है। एक तरह से मन का नौकर बन गया है और मन के पास पेट नहीं पेटी है जो कभी भरती नहीं है। मनुष्य मन की पेटी को भरने के लिए तमाम यतन करता है। मन की इच्छाओं को पूरा करने वह आशीर्वाद मांगने हमारे पास भी आता है। हम कहते हैं मन को मारने का पुरुषार्थ करो तो शांति स्वत: मिल जाएगी।
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तेरी शरण में हमें रखना... #sudhasagar #Parshvanatha
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❖ सामज्जस्य... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖#Vidyasagar #Jainism
ये किसने कहा कि
भले में बुराई नहीं होती
और
बुरे में भलाई नहीं होती
देखो तो
चमकती हुई आग में
धुआं पैदा होता है
और गंदे कीचड़ में भी
कमल खिलता है
कुछ सामाजिक व्यवस्थाओं को लेकर चर्चा चल रही थी तब आचार्य महाराज विद्यासागर जी महाराज जी ने कहा, "छोटे-बड़े लोगों को मिलाना, उनमें एकता कराना सरल होता है. वे एक दुसरे के पूरक बनाकर कार्य करते है. एक-दुसरे से सलाह लेकर विचार-विमर्श करके कार्य करते है उनमें सामज्जस्य अच्छा बना रहता है लेकिन जो समकक्ष होते है, उनको मिलाना, उनमें एकता लाना बड़ा हि कठिन कार्य है. वह उसी प्रकार है जैसे रेल की पटरी या दो समान्तर रेखाओं को मिलाना"
note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.
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