17.08.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 17.08.2016
Updated: 05.01.2017

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#RakshaBandhan -रक्षा बंधन की स्टोरी तो आपने बहुत बार पढली होगी इस बार आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य क्षुल्लक ध्यानसागर जी के प्रवचन से ये पढ़े कुछ हटके:) रक्षा बंधन के Celibration में छुपा हैं 'साधू लोगो को आहार देने से Related एक गजब Logic' अगर आप भी ऐसी भावना से आहार देंगे तो आपका पुण्य भी डबल और आनंद भी डबल:)) MUST READ BEFORE CELIBRATE RAKSHA BANDHAN THIS TIME:)

अगर कभी देव-शास्त्र-गुरु पर कभी कोई संकट आये और उस भक्त में क्षमता है तो अपनी विवेक बुद्धि के अनुसार कदाचित रक्षा कर सकता है! अगर आप देव-शास्त्र-गुरु की रक्षा करेंगे तो आपकी रक्षा होगी संसार सागर से डूबने से बचने में! जैन ग्रंथो की अनुसार आहार दान की विधि अलग है, "मेरे यहाँ जो आहार बने वो ऐसा भोजन हो जिसमे से मैं साधु को दे सकू" ऐसी भावना श्रावक के है तो वो महान पुण्य कमा लेता है, और यदि श्रावक की ये भावना है की आज मैं स्पेशल महाराज जी ने लिए तैयारी करू, तो महाराज जी के संकल्प से आप भोजन तैयार करते है तो उसमे आपको भी दोष लगेगा और महाराज जी को भी दोष लगेगा, क्योकि महाराज जी को संकल्पित भोजन लेने का निषेध है, सहज जो श्रावक ने अपने लिए भोजन बनाया है उसमे से अगर देता है तो वो तो स्वीकार है, अगर कोई हमसे पूछे आहार वाले दिन की ये आप क्या कर रहे है तो आप बोलते है आज महाराज जी का आहार है हम उनके लिए ये सब घी, दूध, की व्यवस्था कर रहे है जबकि आपका भाव होना चाहिए मैं भोजन ऐसा बनाऊ अगर महाराज जी आये तो वो भी लेसके नहीं तो मैं तो भोजन करूँगा ही, क्योकि साधु का दोष तो हो सकता है साधु तपस्या से ख़तम भी करदे, लेकिन सही पुण्य का जो उपार्जन होता है वो सिर्फ अपने विचारो का खेल है, साड़ी व्यवस्था दोनों के करते है एक का विचार है "महाराज के लिए" दुसरे का विचार है "इसमें से महाराज को दिया जा सके" जिनवाणी बोलती है पुण्य तब लगता है जब अपनी चीज़ आप दान दो, एक बार ऐसी भावना के साथ आहार दे कर देखो तब आपको पता चलेगा, क्योकि सारी बाते सुनने से अनुभव में नहीं आसकती है, इधर भावना है की अपने आहार में से मैं साधु को आहार दू और दूसरी तरफ भावना ये है की साधु के लिए मैं आहार बना रहा हूँ!

हमें यहाँ पर विवेक से भी कार्य करना चाहिए, क्योकि यहाँ पर सिर्फ वैसा ही मान लिया की "सहज जो श्रावक ने अपने लिए भोजन बनाया है उसमे से अगर देता है तो वो तो स्वीकार है" तो औषधिदान की व्यवस्था नहीं बन पायेगी क्योकि परिस्थिति के कारण हमें विवेक को प्रयोग करना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण विष्णुकुमार मुनि की कथा ही है, पूरी हस्तिनापुर नगरी में आहार के चोके लगे थे, सबको पता था यही मुनिराज आएंगे, और सबने वही खीर का आहार तैयार किया था...तो भी उनके कोई दोष नहीं था, फिर इसी तरह अगर कोई महाराज जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उनको उनके स्वास्थ्य के अनुकूल ही आहार देना चाहिए, और ऐसी भावना में तो मुनि के रत्न-त्रय के सुरक्षा की भावना ही है, तो इसमें उन् मुनिराज के निमित से औषधि को भोजन रूप में देने पर भी दोष नहीं लगेगा, फिर अगर कोई महाराज जी नमक नहीं लेते तो फिर कैसे होगा और सोचो अगर किसी मुनिराज को बुखार आगया तो हम उनके लिए औषधि के साथ उनके स्वास्थ्य के लिए संगत आहार तैयार करेंगे, तो दशा में उस आहार को भी दोषित मानना पड़ेगा क्योकि वो उन एक मुनिराज के लिए ही तैयार किया गया था लेकिन ऐसा नहीं होता.... तो इस तरह हमें विवेक से ही कार्य करना चाहिए!

ये लेख - क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज के शिष्य) के प्रवचनों से लिखा गया है! -Nipun Jain:)

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*मांसाहारी बनने से बचे* नॉनवेज होतीं हैं ज्यादातर आइसक्रीम। #Nonveg #Icecream

अगर आप यह समझते हैं कि सारी आइसक्रीम शुद्ध वेजिटेरियन होती हैं, तो संभल जाइए। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी कही जाने वाली सिटी जबलपुर में विशेषज्ञों ने खुलासा किया है कि बड़े-बड़े ब्रांड की आइसक्रीम में जानवरों की हड्डियां यानी जिलेटिन का उपयोग होता है।

विशेषज्ञों के अलावा जबलपुर के एक आइसक्रीम निर्माता का भी स्पष्ट कहना है कि बिना जिलेटिन आइसक्रीम बन ही नहीं सकती। हालांकि कुछ आइसक्रीम निर्माताओं का दावा है कि उनके सभी फ्लेवर नॉनवेज नहीं हैं। उनका कहना है कि कई फ्लेवर वेज भी हैं, लेकिन आइसक्रीम खाने वाले कभी वेज या नॉनवेज के नाम से आइसक्रीम नहीं मांगते, बल्कि पसंद का फ्लेवर बताते हैं। ऐसे में केवल स्वाद के फेर और जानकारी के अभाव में लोग मांसाहारी बन रहे हैं

कई फ्लेवर ऐसे भी हैं, जिनमें अण्डा मिक्स होता है। सरकार को भी पता है कि आइसक्रीम में नॉनवेज का उपयोग होता है, इसलिए आइसक्रीम निर्माताओं को निर्देश दिए गए कि आइसक्रीम पैकिंग पर शाकाहारी होने पर ग्रीन निशान और मांसाहारी होने पर लाल निशान बनाएं, लेकिन स्वाद के फेर में शायद ही कोई हो जो आइसक्रीम पैकिंग पर निशान देखता हो।

स्ट्रॉबेरी, मैंगो, वनीला जैसे आइसक्रीम फ्लेवर को सॉफ्ट बनाए रखने के लिए जिलेटिन का यूज होता है। जिलेटिन से तैयार होने वाली आइसक्रीम नॉन-वेजिटेरियन कैटेगरी में शामिल है।

पुराने ब्राण्ड ज्यादा नॉनवेज - कई पुराने ब्रांड हैं, जिनकी आइसक्रीम लोग सबसे ज्यादा खाना पसंद करते हैं। सर्च करने पर पता चला कि वही पुराने ब्राण्ड नॉनवेजिटेरियन हैं।

कैंसर का भी है खतरा- कंपनियां मिक्स कलर के साथ आइसक्रीम को खूबसूरत बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ती हैं, लेकिन जिन कलर से आइसक्रीम को बनाया जाता है उन रंगों में कैंसर का खतरा होता है। रंगों को एरोमेटिक अमीन से बनाते हैं इसमें पाई जाने वाली इम्पोरियटीज से बॉडी में कैंसर होने का खतरा ज्यादा होता है।

खाने में एक जैसा स्वाद

आइसक्रीम वेज हो या फिर नॉनवेज, दोनों बनते तो अलग-अलग तरीके से हैं, लेकिन इसके स्वाद में जरा भी फर्क नहीं होता। आइसक्रीम खाते वक्त यह पहचानना मुश्किल हो जाता है कि वेजिटेरियन है या फिर नॉनवेजिटेरियन।

जिलेटिन, इमरती फायर का उपयोग

कुछ आइसक्रीम कंपनी वाले कस्टर्ड के साथ जिलेटिन एनीमल फैक्ट्स (जीव-जंतुओं के हड्डियों का पाउडर) मिलाकर आइसक्रीम तैयार करते हैं। वहीं कुछ ब्रांड्स का दावा है कि इमरती फायर (समुद्र के अंदर पाए जाने वाले पेड़-पौधों से बना पाउडर) का उपयोग कर आइसक्रीम तैयार की जाती है।
वर्तमान में तैयार हो रही आइसक्रीम पूर्णत: वेजिटेरियन नहीं है। आइसक्रीम बनाने के लिए जिलेटिन का उपयोग काफी सालों से किया जा रहा है। आइसक्रीम को गाढ़ा जिलेटिन से ही किया जाता है।

-प्रो. केके वर्मा, रिटायर्ड एचओडी, केमेस्ट्री डिपार्टमेंट, रादुविवि

नॉन वेजिटेरियन है

जिलेटिन जानवरों की हड्डियों से तैयार होता है। इस प्रकार आइसक्रीम में कैल्शियम फास्फेट मिला होता है जो कि नॉन-वेजिटेरियन है। प्रयोगशाला में कैल्शियम धनायन और फास्फेट ऋणायन का परीक्षण कर आइसक्रीम की जांच की जा सकती है।

-प्रो. एचबी पालन, रिटायर्ड प्रोफेसर
आइसक्रीम में निश्चित ही जिलेटिन का उपयोग किया जाता है। इस आधार पर इसे नॉनवेजिटेरियन कहा जा सकता है। हां, इतना जरूर है कि ग्रीन माक्र्ड आइसक्रीम हर्बल प्रोडक्ट से बनती हैं, जो शाकाहार की श्रेणी में शामिल किए जाते हैं।

-प्रो. राजलक्ष्मी त्रिपाठी, सहायक अध्यापक आहार एवं पोषण, होमसाइंस कॉले

ये बात सच है कि आइसक्रीम में जिलेटिन यूज किया जाता है, परंतु ऐसा नहीं है कि सारी आइसक्रीम जिलेटिन से बनती हैं।

-प्रियदर्शनी शुक्ला, वाडीलाल आइसक्रीम पार्लर संचालक

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👏👋👏👋👏👋👏👋👏👋 परम पूज्य मुनि 108 श्री क्षमा सागरजी महाराज को विनयांजलि समर्पित करने का विशेष अवसर 👋👋👋👋👋👋👋👋👋👋 दिंनाक 20 अगस्त 2016 को मुनिश्री क्षमा सागरजी महाराज की दीक्षा जयंती है। इस बार दीक्षा दिवस समारोह श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पदमपुरा जयपुर में आयोजित किया जा रहा है। समारोह में पूज्य मुनिश्री द्वारा रचित साहित्य व उनके दुर्लभ चित्रों की प्रदर्शनी लगेगी और हाल ही में भारतीय ज्ञान पीठ द्वारा जो पुस्तकें प्रकाशित करवाई हैं उनका विमोचन होगा तथा एक नया एप्प बनाया गया है उसका लोकार्पण होगा। 🎁🎁🎁🎁🎁🎁🎁🎁🎁 आप से अनुरोध है कि समारोह में दोपहर 1 बजे सपरिवार व इष्ठ मित्रों सहित अवश्य पधारें। आयोजक: मैत्री समूह एवं सकल दिगम्बर जैन समाज जयपुर।

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❖ ऑर्डर सो बोर्डर... मुनि कुन्थुसागर [ आचार्य विद्यासागर जी की जीवन से जुडी घटनाएं व् कहानिया ] ❖#Vidyasagar #Jainism

अभ्यास एक ऐसी वस्तु है जिसके माध्यम से हम शरीर रूपी मशीन को नियंत्रित कर सकते हैं. शारीर पहले से ही अभ्यास से सल्लेखना के लिए तैयार कर लेना चाहिए. 'बारह भावना' और 'णमोकार मंत्र' का अभ्यास अभी से अच्छे ढंग से कर लेना चाहिए अंत समय यही काम आवेगा जैसे - परीक्षा के समय कंठस्त विद्या ही काम आती है. सब कुछ मन से लिखना पड़ता है, अभ्यास पहले से किया है तभी कुछ लिख पाओगे. ठीक वैसे हि सल्लेखना के समय होता है.

जिनवाणी माँ पर विशवास रखिये उनके इशारे पर त्याग करते जाइये आपकी अच्छी सल्लेखना हो जायेगी क्योंकि परीक्षा के समय विद्यार्थी को अनिवार्य प्रश्न पहले हल करना होता है.

एक दिन आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने सल्लेखना के प्रकरण में बताया कि - उस समय आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज जी की सल्लेखना चल रही थी तब मुनि श्री सुपार्श्वसागर जी महाराज जी का एक आहार एक उपवास चल रहा था. उन्हें अचानक पेट में जलन हो गयी, उन्हें त्याग का अभ्यास पहले से ही था आखिर हुआ ऐसा कि आचार्य श्री ज्ञानसागर महाराज जी से पहले ही उनकी संलेखाना हो गयी. इसलिए साधकों को हमेशा अभ्यस्त और जाग्रत रहना चाहिए सल्लेखना के लिए. पता नहीं कब कौन से रोग से यह शरीर ग्रसित हो जावे और जीवन का उपसंहार करना पड़े.

साधकों को हमेशा तैयार रहना चाहिए - सैनिकों की भाँति "ऑर्डर सो बोर्डर". जब आदेश आता है तभी तैयार. इस नश्वर शरीर को कब त्याग करना पड़े भरोसा नहीं, इसलिए हमेशा इससे ममत्व भाव कम करते जाना चाहिए. भोजन-पानी के माध्येम से इसे बलिष्ट नहीं बनाना चाहिए, बल्कि कृष करते चले जाना चाहिए. फिर अंत में इस शरीर को छोडने में ज्यादा परेशानी नहीं आवेगी. यदि सल्लेखना विधि पूर्वक नहीं हो पायी तो जीवन की साधना अधूरी मानी जाती है. दूध से दही, दही से नवनीत निकालना, नवनीत को तपाकर घी बनाना, यदि घी नहीं बना तो समझना अधूरा कार्य हुआ है

note* अनुभूत रास्ता' यह किताब आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के परम शिष्य मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी की रचना है, इसमें मुनिश्री कुन्थुसागर जी महाराज जी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के अमूल्य विचार और शीक्षा को शब्दित किया है. इस ग्रुप में इसी किताब से रचनाए डालने का प्रयास है ताकि ज्यादा से ज्यादा श्रावक आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी के विचारों और शीक्षा का आनंद व लाभ ले सके -Samprada Jain -Loads thanks to her for typing and sharing these precious teachings.

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Note* #रक्षाबंधन #RakshaBandhan #Bhadva जैन धर्म का पवित्र महिना 'भादवा' 19th अगस्त से [ रक्षा बंधन के अगले दिन से ] शुरू हो रहा है।। आप क्या नियम ले रहे है।। नियम नियम होता है छोटा बड़ा नहीं! मैंने 1 घंटा जैन बुक पढना और रात के खाने के त्याग किया है और आपने???? अपना नियम या तो यहाँ बताये या मन में रखले.. बताने से सिर्फ लोगो को motivation मिले ये भावना हैं:)

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