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तेरे व्यक्तित्व का वो जादू हैं.. तेरी ओर खिंचा आता हूँ.. जाना होता हैं ओर कही.. तेरी ओर चला आता हूँ... #vidyasagar #Digambara #Jainism Ideal LifeStyle:)
तेरी वैराग्यमयी मुस्कान.. उस पर तेरी चर्या की पहचान.. मुझे.. तेरी ओर खिच लाए..
चल पड़ते हैं तेरी ओर क़दम.. मैं रोक नई पाता हूँ:))
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ये कोनसा तीर्थ है और कहाँ पर स्थित है!??
#Jainism #Jain #Tirthankara
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Luck vs Your efforts #Luck #Jain #Mahavira
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परम पूज्य 108 मुनि श्री क्षमासागरजी महाराज का दीक्षा दिवस दिंनाक 20 अगस्त 2016 को मैत्री समूह जयपुर एवं सकल दिगम्बर जैन समाज जयपुर के तत्वाधान में अतिशय क्षेत्र पदमपुरा जी जयपुर में मनाया गया। समारोह का प्रारम्भ मुनिश्री के साहित्य व उनके दुर्लभ चित्रों को दर्शातीं प्रदर्शनी से हुआ।
तदुपरान्त हाल ही में भारतीय ज्ञान पीठ द्वारा मुनिश्री के काव्य संग्रह *और और अपना* तथा *एकीभाव स्त्रोत* पर आधारित प्रवचन संग्रह का विमोचन किया गया।
मुनिश्री की वाणी को सुलभता से सभी तक पहुचाने के उद्देश्य से मैत्री परिवार से जुड़े बच्चों द्वारा बनाई गई, मोबाइल एप्लीकेशन *मैत्री एप्प (Maitree)* का विमोचन भी किया गया। साथ साथ वृक्षारोपण भी किया गया।
कार्यक्रम में बम्बई, दिल्ली, नॉएडा, गुड़गाँव, छतरपुर, बीना, भोपाल, अजमेर, दमोह, कोटा, सागर, जबलपुर, अशोकनगर, झाँसी आदि शहरों के लोग भी संमिलित हुए। कार्यक्रम उपरान्त समूह की आगे की गतिविधियों पर चर्चा हुई और मुनिश्री की प्रेरणा से आयोजित होने वाले यंग जैना अवार्ड 2016 की रूपरेखा बनाई गयी।
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News in Hindi
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#bhopal Pravachan चिंतन को सहज बनाकर रखो, तभी उलझनों से बचे रहोगे -आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज:) #vidyasagar #Jainism #Dharma #Digambara
ज्ञान का महत्व तभी है, जब वह दूसरों की भलाई के काम में आए। संख्या में एक की अपेक्षा में नौ का अंक बड़ा है उसमें जीरो मिला दो तो दस हो जाता है, पर एक के बिना शून्य की गिनती नहीं है और हम आगे सैकड़ा और दशक की संख्या शून्य बढ़ा-बढ़ाकर कर करते रहते हैं पर ध्यान रखो, आत्मा तो एक ही है। शून्य के पीछे अंक होता है तभी उसका महत्व है शून्य अकेले का कोई महत्व नहीं है। शून्य ज्ञान के समान है और अंक के समान सम्यक दर्शन है। यह विचार आचार्यश्री विद्यासागर महाराज ने व्यक्त किए। वे मंगलवार को हबीबगंज जैन मंदिर में प्रवचन दे रहे थे।
उन्होंने कहा कि धर्म पर सच्ची श्रद्धा होना जरूरी है, ज्ञान का महत्व तभी होता है। मन में जो उजाला दिखता है वह इन्द्रियों के विराम लेने के बाद दिखता है, सारे लोग सांसारिक उलझनों के गुणा-भाग में लगे रहते हैं। बस यहीं गड़बड़ी हो जाती है। वे भूल जाते हैं कि हमारी आत्मा का सुख सांसारिक उपलब्धियों में नहीं है।
आचार्यश्री ने कहा कि हमेशा चिंतन को स्वच्छ और साफ रखो उलझे हुए न रहो। जिस व्यक्ति में साधर्मी भाईयों के प्रति करुणा वात्सल्य नहीं वह मात्र सम्यक दृष्टि होने का दंभ भर सकता है। जो व्यक्ति जितना सरल व सहज होगा, उसका चिंतन भी सकारात्मक होगा, उसके जीवन में कठिनाइयां भी कम आएंगी।
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बच्चो का खेल नही किसी प्रतिमा के प्राण और पत्थर को अलग करना, आप और हमे को दुष्प्रभाव झेलना पड़ सकता है!
मंदिर जीतना प्राचीन होगा उतना ही अतिशयकारी होगा,वहां उत्पन्न हुई सकारत्मक ऊर्जा का मन, चिंतन और समाज पर भी सकारत्मक प्रभाव पड़ता हैं! #Jain #Jainism #Tirthankara #Pramansagar
पत्थर में भी प्राण आते हैं उसके पूजने के बाद,धीरे धीरे प्रतिमा में प्राण का संचार होता जाता हैं,और देवी देवता अतिशय कर उस प्रतिमा को अतिशयकारी रूप दे देते हैं,जो प्रतिमा वर्षो से पूजी जा रही हो,या जिस स्थान पर पूजी जा रही हो वहां सकारात्मक ऊर्जा का पिंड या केंद्र स्थापित हो जाता हैं,उस सकारात्मक ऊर्जा या शक्ति को छोड़कर अगर उस प्रतिमा को और कही ले जाकर स्थापित कर दिया जाये,तो प्रतिमा के प्राण उस पुराने स्थान पर ही रह जाते हैं,फलस्वरूप वहां की (स्थान की) सकारत्मक ऊर्जा नकारत्मकता में परिवर्तित होने लगती हैं!
नकारात्मक ऊर्जा आखिर हैं क्या??
ब्रह्माण्ड में कही भी वातावरण के प्रतिकूल परिस्थिति में स्थान और ऊर्जा का टकराव होना, किसी स्थान विशेष पर अविनय होना, किसी वस्तु विशेष शक्ति का स्थान पर अपमान होना ही नकारात्मक ऊर्जा को जन्म देती हैं! शुभ कार्य शुभ ऊर्जा देते हैं और अशुभ कार्य अशुभ ऊर्जा..
कई वर्षों से जहाँ देव स्थान रहा हो,या वो भूमि जहाँ ईष्ट देव को पूजा गया हो वहां पर देव प्रतिमा विस्थापित करने के पश्चात देव भूमि पर चलना फिरना या फिर उस पवित्र स्थान पर अपवित्रता या अशुद्धि होना ही उस सकरात्मक पुंज का अविनय हैं!
*देव भूमि पर किया गया कई वर्षों का जप तप और विधान पूजा द्वारा एक विशेष स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा का पिंड विराजमान हो जाता हैं जो दिखाई नही देता परंतु मंदिर में प्रतिदिन दर्शन पूजन करने वालो की रक्षार्थ सदैव उनके साथ रहता हैं और मंदिर को अतिशय युक्त बनाता है,अतः जहाँ तक हो हमें ऐसे स्थान का विनय श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए!*
उस भूमि पर स्थान का अविनय हो और वायु मण्डल में नकारत्मकता का वास होना ही नकारात्मक ऊर्जा हैं,_
*यही नकारात्मक ऊर्जा होती हैं,जो सोचा नही वह भी घटित होता हैं,अनहोनी का सूचक हैं नकारात्मक ऊर्जा...*
अगर आप किसी अन्य देवता के (स्थान) पर चप्पल पहन कर चढ़ जाते है,प्रतिक्रिया में वो आपको उठाकर पटक देते हैं या फिर आपके जीवन में हलचल पैदा कर देते हैं,क्योंकि उस जगह पर भेरू देवता को पूजा जा रहा हैं, तो क्या हमारे वीतरागी देव जिनको जिस स्थान पर सालो से पूजा जा रहा हो,उस स्थान पर कोई जूता चप्पल पहन कर चल सकता हैं क्या? कतई नही....
इसका परिणाम आप और हम लोगो को किसी भी रूप में भुगतना पड़ सकता हैं और ऐसा ही हो रहा हैं जब से प्रतिमा अन्य जगह विस्थापित हुई हैं,समाज में अनहोनी बहुत हो रही हैं,चाहे वो अनहोनी किसी रूप में हो भुगतान हम सबको करना हैं!
मुनिश्री मुनिसागर महाराज के अनुसार:-
प्रतिदिन मंदिर जी में णमोकार मन्त्र की जाप अवश्य करे! इससे कर्मो का क्षय होता हैं विघ्न टलते हैं,जो होना हैं वो तो होना ही है,बस अपने कर्मो का क्षय करके विघ्नों को टाल सकते हो या कम कर सकते हो,इसलिए मंदिर जी में णमोकार मन्त्र की माला अवश्य करे इससे अनुकूल स्थिति और सकारात्मकता उत्पन्न होती हैं!
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_परम् विदुषी आर्यिका माँ ने कहाँ हैं जितना हो सके,भक्ताम्बर जी का विधान सतत करे,श्री भक्ताम्बर जी का पाठ करे,णमो कार मन्त्र की जितनी जाप हो सके करे,यही सब विघ्न को हरने वाले हैं!_
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_कई वर्षों पूजित प्रतिमा सिर्फ और सिर्फ मुनिराज ही अन्य जगह विस्थापित कर सकते हैं कोई विधानाचार्य या साधारण मनुष्य आदि नही,जब प्रतिमा का विराजमान प्राणमन्त्र मुनि पढ़ते हैं तो उन्हें वहां से विस्थापित करकेे अन्य जगह विराजमान करने का मन्त्र सूत्र भी उन्ही _मुनि द्वारा ही होना चाहिए,वरना नगर समाज और सभी लोगो के लिए हानि और अनहोनी का सूचक हैं!_
*मन्दिर जी में शुद्धि का ध्यान रखे*
*शूद्धि रखने से पूजा फल दस गुना मिलता हैं,जीवन पर्यन्त सुख शांति प्राप्त होती हैं!*
_मंदिर जी सोला सुद्धि का विशेष ध्यान रखे,विशेष पुरुष वर्ग अपने घर के_ _आंतरिक वस्त्र पूजा में उपयोग न करे,_
_बिना स्नान मंदिर जी न जावे!_
_वर्षा काल में पूजा वस्त्र घर से पहन कर न जावें, सड़क पर अशुद्धि गन्दगी और कीचड़ सब मिल जाता हैं,और उसके पश्चात् अभिषेक करना भगवन को स्पर्श करना महापाप हैं!_
_किसी के दर्शन करते वक़्त सामने से निकल कर या खड़े होकर बाधा उत्पन्न न करे,_ _इसमें सर्वाधिक दोष लगता हैं,_
_जितना हो सके विनय से पूर्वक प्रभु का प्रक्षाल या अभिषेक करे!
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