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इन्द्रिया और मन को पूर्ण विराम देने का नाम ही है साधना: आचार्य विद्यासागर जी #vidyasagar #digambara #Jainism #Tirthankara #Dharma #Bhopal
उन्होंने कहा कि जब इन्द्रियां पूरी तरह विराम ले लेती हैं, तब साधना प्रारंभ होती है। जब कोई व्यक्ति विचारों की गहराई में जाता है तो आंखें बंद कर मनन करता है, तब उसे अपनी समस्या के समाधान की राह दिखाई पड़ने लगती है। हमें इन्द्रिय और मन को वश में रखना चाहिए क्योंकि संयम के अभाव में विवेक नहीं रहता। संयम तभी रहेगा जब हम इन पर काबू रखेंगे।
आचार्यश्री ने कहा कि जो भी कार्य हम करें उसमें मात्र हमारी इन्द्रियां सक्रिय रहें, मन नहीं, तो इन्द्रियां अपने आप शांत हो जाएंगी। इन्द्रियों के मन से जुड़ते ही प्रत्येक घटना में राग द्वेष होता है। कर्म निर्जरा करने वाला साधक महान है, वह कुछ ही समय में आत्मा को कंचन सा शुद्ध कर देता है,
आचार्यश्री से दीक्षित हो चुके हैं 300 मुनि व आर्यिकाएं आचार्यश्री से वर्ष 1980 से अब तक दीक्षा ग्रहण कर आर्यिका व मुनि बनने वालों की संख्या करीब तीन सौ है। यहां चातुर्मास कर रहे आचार्यश्री के संघ में 37 मुनि हैं। इन सभी की वे रोज यहां कक्षा लगाकर उन्हें आलाप पद्वति आदि ग्रंथों के माध्यम से जैन दर्शन की शिक्षा देते हैं।
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आगे आगे अपनी अर्थी के मैं गाता चलूँ, सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है #Kshamasagar #Digambara #Jainism #Tirthankara #Dharma
पीछे पीछे दूर तक दिख रही जो भीड़ है,
पंछी शाख से उड़ा, खाली पड़ा नीर है,
शक्ति सारी देख ले, पर्याय ही अनित्य है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है।२।
जिनको मेरे सुख दुखों से कुछ नहीं था वास्ता ।
उनके ही कांधों में मेरा कट रहा है रास्ता,
आँख जब मुंदी तो कोई शत्रु है न मित्र है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है।२।
डोरियों से में बंधा नहीं यह मेरा संस्कार था ।
एक कफ़न पर मेरा रह गया अधिकार था,
तुम उसे उतार ने जा रहे यह सत्य है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है।२।
आपके अनुराग को आज यह क्या हो गया,
मैं चिता पर चढ़ा महान कैसे हो गया,
सत्य देख हँस रहा की जल रहा असत्य है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है।२।
आपके ही वंश से भटका हुआ हूँ देवता,
आत्म तत्त्व छोड़ कर में जगत को देखता,
यह अनादि काल की भूल का ही करत्य है,
सिद्ध नाम सत्य हैं अरिहंत नाम सत्य है
आगे आगे अपनी अर्थी के में गाता चलूँ
सिद्ध नाम सत्य है अरिहंत नाम सत्य है।
~समाधिस्थ मुनि श्री क्षमासागर जी की सबसे प्रिय पंक्तिया जिन्हें वे हमेश गुनगुनाया करते थे
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ये पेज 51,000 Likes cross कर रहा हैं.. जैन धर्मं का 'अनेकान्तवाद' नाम से एक सिद्धांत हैं जिससे समस्यायों का Solution होता हैं इसी Solution को आचार्य विद्यासागर जी ने मूक-माटी महाकाव्य में Explain किया हैं आओ समझे.. और अपनी LIFE को Ideal अवस्था में ले जाने का प्रयास करले:) आचार्य श्री समझाने का प्रयास करते हैं की जो व्यक्ति सिर्फ अपने को 'ही' सब कुछ समझता हैं, दुसरे को तुच्छ समझता हैं निचा समझता हैं, और सोचता हैं जो मैं करता/सोचता हूँ वह 'ही' सत्य हैं दुसरे जो सोचते/करते हैं वो गलत हैं उस व्यक्ति की समझ अभी सही नहीं हैं! *दूसरी और एक व्यक्ति जो कहता हैं हम 'भी' सही सोचते हैं तथा दूसरा व्यक्ति 'भी' [ उसका नजरिया ] सही हो सकता हैं वो व्यक्ति हमेशा शांत तथा सुलझा हुआ रहता हैं और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ जाता हैं:)
भेट हो 'भी' से.... न की 'ही' से... [ मूक-माटी महाकाव्य से ली गयी पंक्तिया ]
'ही' एकान्त्वाद का समर्थक है
'भी' अनेकांत, स्यादवाद का प्रतिक है ।
हम 'ही' सब कुछ है
यु कहता है 'ही' सदा,
तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो!
और,
'भी' का कहना है की
हम 'भी' हैं
तुम 'भी' हो
सब कुछ!
#Mookmati #Vidyasagar #Jainism #Dharma #Tirthankara #Digambara #Jain #Adinatha
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धन्य दिगम्बर चर्या:) आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य मुनिश्री धवल सागर जी का पारना [ 5 उपवास तथा 72 धंटे बिना उठे ध्यान के बाद.. ] कराते वीर सागर जी और विशाल सागर जी @ नीमच, mp ।। today exclusive picture:) #vidyasagar #dhavalsagar #digambara #Jainism
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News in Hindi
आचार्यश्री का श्रेष्ट विवेक"* -देशभूषणजी महाराज ने आचार्यश्री शान्तिसागरजी के बारे में कहा- "आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने अपने जीवन की एक विशेष घटना हमें बताई थी- #Shantisagar #Deshbhushan #Jainism #Digambara #Tirthankara
एक ग्राम में एक गरीब श्रावक था। उसकी आहार देने की तीव्र इच्छा थी, किन्तु बहुत अधिक दरिद्र होने से उसका साहस आहार देने का नहीं होता था।
एक दिन वह गरीब पडगाहन के लिए खड़ा हो गया। उसके यहाँ आचार्यश्री की विधि का योग मिल गया। उसके घर में चार ज्वार की रोटी थी। उन्होंने सोचा कि यदि उसकी चारों रोटी हम ग्रहण कर लेते हैं, तो गरीब क्या खाएगा? इससे उन्होंने छोटी सी भाकरी, थोडा दाल, चावल मात्र लिया। आहार दान देकर गरीब श्रावक का ह्रदय अत्यंत प्रसन्न हो रहा था।
उसके भक्ति से परिपूर्ण आहार को लेकर वे आए सामायिक को बैठे। उस दिन सामायिक में बहुत लगा। बहुत देर तक सामायिक होती रही। शुध्द तथा पवित्र मन से दिए गए आहार का परिणामों पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
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