News in Hindi
शिवाचार्य समवशरण में पर्वाधिराज पर्युषण की धूम
आत्मज्ञानी सद्गुरूदेव युगप्रधान आचार्य सम्राट पूज्य श्री शिवमुनि जी म.सा. के सान्निध्य में वर्ष 2016 के अमृतमय वर्षावास भीलवाड़ा राजस्थान में पर्वाधिराज पर्व पयुर्षण की आराधना के लिए जहां भारतवर्ष से अनेक श्रद्धालु उपस्थित है वहीं पर स्थानीय श्री संघ के प्रत्येक व्यक्ति में अपूर्व उत्साह एवं उमंग है। प्रतिदिन प्रवचन का अमृतपान करने के लिए 10000 की उपस्थित दर्ज हो रही है। अनेक दीर्घ तपस्याएं गतिमान है। अब तक 6 मासखमण पूर्ण हो गए है तथा आगे भी मासखमण की तपस्याएं गतिमान है।
ऐसा लग रहा है जैसे कोई जैन धर्म का महाकुंभ चल रहा हो। आज सामूहिक तेले के प्रत्याख्यान ने 500 से अधिक भाई-बहिनों ने सामूहिक तेले तप के पच्चक्खान लिए। श्री अन्तकृत सूत्र वाचना में माता देवकी द्वारा 6 सहोदर मुनियों को आहर दान एवं शंका समाधान के लिए अरिहंत अरिष्ठनेमि के समवशरण का रोचक वर्णन शुभम मुनि जी द्वारा सुनाया गया। आचार्य भगवन ने पर्वाधिराज के इन पवित्र दिवसों में राग का त्याग करने की प्रेरणा देते हुए राग को आग की उपमा दी। राग एक ऐसी आग है जो समस्त सद्गुणों को भस्म कर देती है। तिष्य भिक्षु के उदाहरण के द्वारा जन-मानस को वीतरागता की ओर अग्रसर होने के लिए साधु और सिद्धपद की आराधना करने का सुगम मार्ग बताया।
शिवाचार्य समवशरण में पर्वाधिराज पर्युषण की धूम
आत्मज्ञानी सद्गुरूदेव युगप्रधान आचार्य सम्राट पूज्य श्री शिवमुनि जी म.सा. के सान्निध्य में वर्ष 2016 के अमृतमय वर्षावास भीलवाड़ा राजस्थान में पर्वाधिराज पर्व पयुर्षण की आराधना के लिए जहां भारतवर्ष से अनेक श्रद्धालु उपस्थित है वहीं पर स्थानीय श्री संघ के प्रत्येक व्यक्ति में अपूर्व उत्साह एवं उमंग है। प्रतिदिन प्रवचन का अमृतपान करने के लिए 10000 की उपस्थित दर्ज हो रही है। अनेक दीर्घ तपस्याएं गतिमान है। अब तक 6 मासखमण पूर्ण हो गए है तथा आगे भी मासखमण की तपस्याएं गतिमान है।
ऐसा लग रहा है जैसे कोई जैन धर्म का महाकुंभ चल रहा हो। आज सामूहिक तेले के प्रत्याख्यान ने 500 से अधिक भाई-बहिनों ने सामूहिक तेले तप के पच्चक्खान लिए। श्री अन्तकृत सूत्र वाचना में माता देवकी द्वारा 6 सहोदर मुनियों को आहर दान एवं शंका समाधान के लिए अरिहंत अरिष्ठनेमि के समवशरण का रोचक वर्णन शुभम मुनि जी द्वारा सुनाया गया। आचार्य भगवन ने पर्वाधिराज के इन पवित्र दिवसों में राग का त्याग करने की प्रेरणा देते हुए राग को आग की उपमा दी। राग एक ऐसी आग है जो समस्त सद्गुणों को भस्म कर देती है। तिष्य भिक्षु के उदाहरण के द्वारा जन-मानस को वीतरागता की ओर अग्रसर होने के लिए साधु और सिद्धपद की आराधना करने का सुगम मार्ग बताया।