04.09.2016 ►Muni Tarun Sagar ►News

Published: 05.09.2016
Updated: 05.09.2016

News in Hindi

श्री रोठ तीज व्रत की कथा👉
श्री महावीर स्वामी के समवशरण मे राजा श्रेणीक ने पूछा है देव रोट तीज का व्रत कैसा है ओर कैसे किया जाता है और इस का क्या लाभ होता है? श्री देव ने कहा कि उज्जैन नगर मे सागरदत्त नाम का सेठ था।उसका व्यापार देश विदेश में था।उसके सात पुत्र और भरापूरा परिवार था।
एक दिन मुनिश्री ने यति एवं श्रावक के लिए व्रत का वणॆन किया। सागरदत्त की सेठानी ने भी अपनी शक्ति अनुसार मुनिश्री से ऐसा कोई सरल व्रत देने की विनती की कि मुझे ऐसा कोई व्रत दें जो साल मे सिर्फ एक बार ही आवे और उसमें मै कुछ खा सकूं ।
मुनिश्री ने कहा ठीक है, छोटे व्रत भी यदि पूर्ण निष्ठा एवं निदोष से पालन किया जाता है तो पुण्य और भव के अभाव में कार्य कारी होता है।
मुनिश्री ने कहा श्री चौबीसी व्रत जिसे रोट तीज भी कहते हैं साल में एक बार भाद्रपद शुक्ल तृतीया को आती है, उस दिन सामायिक स्नान ध्यान करके चौबीसी महाराज की पूजा करके एक वक्त 6 रसो का त्याग करके एकासन, और एक ही अन्न का उसी वक्त पानी से अन्तराय रहित गृहण करना।इससे घर परिवार मे सुख और लक्ष्मी अटल रहती है।
सेठानी व्रत लेकर खुशी खुशी घर आई और परिवार मे बताया।परिवारजन जो सुख सुविधाओं और 56 भोग के आदी थे, उन्हें यह व्रत कठोर और कठिन लगा और व्रत की निन्दा की।
सेठानी ने परिवार की निन्दा के कारण मुनिश्री के समक्ष लिये व्रतों का त्याग कर दिया।
व्रत भंग करने के पापोदय से परिवार की सम्पत्ति नष्ट होने लगी और कष्ट में दिन बिताने लगे, यहां तक कि रिश्तेदारो ने भी साथ छोड दिया।
सागरदत्त की पुत्री हस्तिनापुर मे परणाई थी उसने मदद के लिए एक वक्त के भोजन के साथ 5 रत्न छिपाकर भेजे तो भी व्रत भंग दोष एवं पापोदय से भोजन कीड़ो और रत्न कोयले में बदल गये।
ऐसी अनेक घटनायें घटी।
सागरदत्त भटकते भटकते चम्पापुर के सेठ समुद्रदत्त के पास पहुंचे और उन्होंने अपनी व्यथा बतायी । उस सेठ ने पुरे परिवार को मजदूरी पर रख लिया। पुरूष दुकान का और औरतें घर का काम करतें।
सागरदत्त ने सेठ समुद्रदत्त की पत्नी को अपनी धर्म बहिन बना लिया।
कुछ दिनों बाद समुद्रदत्त की पत्नी ने कहा कि कल भाद्रपद शुक्ल की तीज है और व्रत का दिन है अतः हर कार्य सफाई एवं शुभ्रता से करना है।
सागर दत्त की पुत्रवधू ने पूछा कि कल कौनसा व्रत है, तब समुद्र दत्त की पत्नी ने व्रत की विधि और महत्व बताया तब सागरदत्त की पुत्रवधू ने दृढ श्रद्धा के साथ जौ की रोटी भगवान को चढाकर उपवास करके नेवेध बनाकर अर्पित किया। सच्चे मन से व्रत लेकर उसके पालन करने से जो पण्य अर्जित हुआ उसके कारण वह नेवेध (जौ की रोटी) स्वर्ण का हो गया।
उधर समुद्रदत्त की पत्नी ने सागरदत्त की पत्नी को एक बडा सा रोठ बनवाकर उसके बच्चों के लिए दिया, तब पूछने पर सागरदत्त की पत्नी को मालूम हुआ कि आज चौबीसी व्रत यानि रोट तीज व्रत है जिसके निदोष पालन से कभी संकट नहीं आता है।
सागरदत्त की पत्नी को मुनिश्री के दिये गये व्रत की याद आने लगी और भंग करने का पश्चाताप हुआ। तब उसने व्रत करने का निर्णय किया और श्रद्धा से धारण किया, पुण्य से वह रोट सस्वर्ण का हो जाता है। कुछ समय बाद व्रत के प्रभाव से सेठ सागरदत्त का पुराना वैभव लौट आता है।
तब सेठानी ने जाना व्रत का महत्त्व और भंग करने का फल।यानी व्रत लेकर किसी भी प्रकार से उसे भंग नही करना चाहिए।संसार में सुख, वैभव और लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु श्रद्धा एवं निष्ठा पूर्वक पालन करने हेतु
इस दिन चौबीसी व्रत यानि रोट तीज का व्रत यानि सामायिक,, स्नान, ध्यान एवं चौबीसी महाराज की पूजा एवं एकासने के साथ एक अन्न और जल ग्रहण करना चाहिए। इति।
वृषभादि महावीर पर्यत चौबीसी तीथॆंकर अ सि आ उ सा नम: स्वाह: की कम से कम एक माला का जाप करें।हो सके तो 108 जाप करे।🌱🙏�🙏�🙏�🌹🌹🌹 🙏�🙏�🙏�🙏�🌹🌹🌹🌹

Source: © Facebook

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