05.09.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 05.09.2016
Updated: 05.01.2017

Update

दस लक्षण बोले तो.. भगवान् महावीर द्वारा कहा गया धर्मं का मर्म समझने का सुनहरा अवसर!:) कल से दस लक्षण पर्व शुरू हो रहे है, 10 दिन तक चलने वाले ये पर्व 6th Sept से 15th Sept तक चलेंगे:) रोज विशेष ARTICLE पढना ना भूले!!

१.रात्रि भोजन का त्याग।
२. रात्रि अन्न जल आदि सबका त्याग।
३. बाजार की मिठाई,नमकीन,बिस्किट आदि सबका त्याग।
४. दिन में कम से कम दो घंटे का स्वाध्याय।
५. प्रतिदिन मंदिर जी जाकर जिनदर्शन,भक्ति,पूजा करना।
६. सिनेमा,टेलीविजन नहीं देखना।
७. हरी सब्जियों का त्याग।
८. चार महादान(शास्त्र दान,अभय दान आदि) में से कोई भी एक दान रोजाना या जितना हो सके करना।
९. पाँचों पापों का यथाशक्ति त्याग करना।
१०. जितना हो सके जिनधर्म की प्रभावना करना।
११. कषाय रहित परिणाम रखना।
१२. एकाशन या पूर्ण व्रत या जितना हो सके।
१३. इन्द्रियों को अपने Control में रखने का हरसंभव प्रयास।
१४. हमेशा धर्म के कार्यों में संलग्न रहना।
१५. व्यापारादि कम से कम करना,यदि हो सके तो ना करना।
१६. कन्दमूल आदि वस्तुओं का त्याग
१७. रोजाना एक धण्टे का मौनव्रत
१८. हर दिन एक धण्टे मोबाइल का त्याग(जाग्रत अवस्था में अर्थात जागते हुए ही,सोने के बाद नहीं)
१९. चमड़े इत्यादि की वस्तुओं का त्याग
२०. भोजन में झूठा ना छोड़े
२१. सभी प्रकार के अचारों का त्याग
२२. वाहनों का सीमित उपयोग
२३. हरी वनस्पति पर चलने का त्याग
२४. जितना हो सके धर्ममय प्रवृति रखना।
२५. पाँच अणुव्रतों का यथाशक्ति पालन करना।
२६.तीन गुणव्रत व चार शिक्षाव्रत का यथाशक्ति पालन करना।
२७. गमन करने की व परिग्रह की यथाशक्ति सीमा बाँध लेना
२८. पुण्य को हेय रूप जानते हुए आत्म सम्मुख होने की ओर प्रयास करते हुए प्रत्येक धर्म को अंगीकार करने का प्रयास करना।
२९. ये दस धर्म नहीं बल्कि धर्म के दस लक्षण है।इसीलिए वस्तु के स्वभाव धर्म को जानकर ज्ञाता दृष्टा रहने का पुरुषार्थ करना।
३०. अपना ज्ञाता दृष्टा स्वरूप समझकर कर्तत्व बुद्धि को छोड़कर धर्म के दस लक्षणों को ध्याना।

किसी भी नियम की मर्यादा को यथाशक्ति कम या ज्यादा किया जा सकता है।

इन सभी नियमों का यथाशक्ति पालन करते हुए संयमित जीवन जीने का प्रयास करना।
*इसे सभी ग्रुप में भेजकर प्रभावना में सहयोगी बनें।* स्वाध्याय करते हुए हम सबको शीघ्र ही तत्वज्ञान हो तथा हम भेदज्ञान करके इस भवसमुद्र को पार करें।*
इसी भावना के साथ आप सबको दशलक्षण पर्व की शुभकामनाएँ।

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The Jain Celebration of Das Lakshan commencing from tomorrow only, so let's ready to nourish soul natural qualities and read daily specially dedicated articles @ Jainism -the Philosophy!!

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आचार्य श्री विद्यासागर जी के REAL भाई तथा आचार्य श्री से दीक्षित प्रथम शिष्य मुनि समयसागर जी today picture:)

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शंका समाधान - 5 Sept.' 2016
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१. पर्यावरण की रक्षा के लिए जैन दर्शन को अपनाना पड़ेगा! जैन दर्शन के अनुसार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति किसी भी चीज का आवश्यकता से अधिक प्रयोग करना अनर्थदण्ड व्रत में यानि की पाप की श्रेणी में आता है!

२. माँ-बाप को बच्चों के ऊपर जरुरत से ज्यादा दबाव नहीं डालना चाहिए!

३. अपने स्वरुप का ज्ञान होने से कषाय मंद होती है! मन, इन्द्रिय को control में करने के लिए वैराग्य चाहिए! इसीलिए विषय और कषाय को कम करने के लिए और जीवन को आगे बढ़ाने के लिए ज्ञान और वैराग्य दोनों को अपने जीवन में समाहित करना चाहिए!

४. किसी कवी का लिखा हुआ पद्य / कविता / पूजा पड़ते समय अंत में उस कवी का नाम आता है उसको छिपा के या बदल कर नहीं पड़ना चाहिए, जैसा लिखा है वैसा ही पड़ना चाहिए! भाव पूर्वक एक बार कवी का नाम लेकर दूसरी बार अपना नाम लेकर पड़ सकते हैं!

- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज

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❖ यह है शहंशाह जहांगीर का ऐतिहासिक फरमान जो उन्होंने 26 फरवरी 1605 में जैन समाज की मांग पर भाद्रपद मास पर हर किस्म की कुरवानी और जानवरों को हलाक करने पर पावंदी लगाई थी।

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आचार्य श्री विद्यासागर जी से चर्चा करते हुए भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री "नरेंद्र सिंह तोमर" हबीबगंज जैन मंदिर मे...

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❖ भारत सरकार द्वारा पदम्-श्री से विभूषित मुजफ्फर हुसैन के लिखी किताब 'इस्लाम और शाकाहार' पढ़ने योग्य बहुत विचारणीय पुस्तक है! इस किताब से लिया गया एक महत्वपूर्ण पहरा! ]

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दस लक्षण बोले तो.. भगवान् महावीर द्वारा कहा गया धर्मं का मर्म समझने का सुनहरा अवसर!:) कल से दस लक्षण पर्व शुरू हो रहे है, 10 दिन तक चलने वाले ये पर्व 6th Sept से 15th Sept तक चलेंगे:) रोज विशेष ARTICLE पढना ना भूले!!

दसलक्षण का आगमन, जीवन में आया है अनमोल, क्षमादि धार तू, जय अरिहंत बोल!
क्षमा पारस जैसी, तप बाहुबली सा....ध्यान भरत तुल्य, और संयम वृषभदेव सा...
तीर्थंकर की वाणी को ह्रदये में धारले...संयम तप आदि लेकर..जीवन संवार ले...

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