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#शिवाचार्य #भीलवाडा #चातुर्मास 2016
संथारा को फैशन बना दिया - आचार्य श्री शिव मुनि
13/9/2016 आज संथारा को फैशन बना दिया गया है । जब भी कोई वेंटिलेटर पर लेटा और उसे संथारा पचखा दिया गया यह गलत है । संथारा नाम के लिए नही आत्मा के कल्याण के लिए होना चाहिये ।संथारा उसी को आता है जिसे आत्म ज्ञान ज्ञान हो । संथारा भेद विज्ञान की साधना है । मृत्यु को महोत्सव बनाना हे संथारा । यह कहना है जैन श्रमण संघीय आचार्य श्री शिव मुनि का । आचार्य श्री ने सोमवार को शिवाचार्य समवसरण में आयोजित चातुर्मासिक धर्मसभा मेंं श्रावक श्राविकाओं को संथारा साधिका चरणप्रज्ञा मसा की 9 पुण्य तिथी पर उद्बोधित करते हुए कहा कि जिसको भेद विज्ञान की साधना का बोध हो जाए वो ही संथारा के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है । संथारा दो घड़ी के लिए नही होता ।
आचार्य श्री ने कहा कि ज्ञान जिससे दुःख दूर हो जाए, जिससे लक्ष्य पूरा हो जाए, इंसान सत्य की राह पर आ जाये वो ज्ञान हे । जिन शासन में ज्ञान वो हे जिसमें तत्व का बोध हो, उसका अनुभव हो । जीव अजीव का ज्ञान की कसौटी पर इंसान को खरा उतरना हे । ज्ञान की 6 कसौटी हे तत्व का बोध, चित्त का निरोध, आत्मा की शुद्धि, जिससे राग भाव दूर हो, श्रेय की प्राप्ति हो, मैत्री की प्राप्ति हो ।
राग द्वेष संसार के दो बीज हे । राग होगा तो द्वेष बढेगा द्वेष से दुःख होगा और दुःख से संसार बढ़ेगा । इस संसार में व्यक्ति सबसे राग करता है घर - परिवार, धन - दौलत, नाम - शोहरत सबके लिए, लेकिन कोई उसके लिए नही रोता है । जितना हमारा राग कम होगा आसक्ति टूटेगी उतना ही हमारा मन आत्मा में रमण कर सकेगा । यदि सच में धर्म करना चाहते हो तो किसी को बांधो मत । उसे प्रेरणा दो उसे आगे बढाओ । राग महादुख का कारण है ।
व्यक्ति जितना मौन रहेगा जितना कम बोलेगा उतना ही आनन्द में रहेगा । वर्तमान में जितने भी दुःख हे, कषाय हे वो वाणी के कारण है । फिर भी हम वाणी का दुरूपयोग करते हे । जितना हो सके वचन को संयमित करना चाहिए । वाणी व्यवहार कम हो और मौन का पालन ज्यादा हो । साधना का आनन्द मौन में हे । स्वर से साधना नही की जा सकती है । अगर आत्मा में रमण करना है तो मौन धारण करना है । व्यक्ति सुगंध में सुख तलाशता हे और दुर्गन्ध में दुःख का भाव लाता है । जबकि जीवन का मूल मन्त्र समभाव का है । सुख में खुश नही होना और दुःख में दुखी नही होना ।
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