24.09.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 24.09.2016
Updated: 05.01.2017

Update

❖ Amazing... श्री महावीर जी तीर्थ जिसे चान्दनपुर के नाम से भी जाना जाता हैं ~~चान्दनपुर के गाँव में बुलाले वीरा ओह मैं तो दर्शन करने आऊंगा, दर्शन करने आऊंगा तेरा वंदन करने आऊंगा..:)

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#Jainism #JainDharma #Jainsadhu #Jainsaint #Digambara #Nirgranth #Tirthankara #Adinatha #Mahavira #Rishabhdev #Acharyashri #Vidyasagar #Kundkund #Shantisagar

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❖ Amazing... श्री महावीर जी तीर्थ जिसे चान्दनपुर के नाम से भी जाना जाता हैं ~~चान्दनपुर के गाँव में बुलाले वीरा ओह मैं तो दर्शन करने आऊंगा, दर्शन करने आऊंगा तेरा वंदन करने आऊंगा..:)

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❖ 'पेट के डॉक्टर धड़ल्ले से कमा रहे हैं और आप जीवन बर्बाद कर रहे हो' श्रावक को बताए सात्विक भोजन के लाभ, आसन लगाकर भोजन करने से दूर रहती हैं बीमारियां -आर्यिका पूर्णमति माताजी #Purnmati

आधुनिकता के साथ- साथ जीवन में नैतिकता और धार्मिकता भी रखें। धार्मिकता होगी तभी जीवन में अध्यात्म आएगा। लेकिन आज जीवन से सात्विकता के साथ नैतिकता समाप्त हो गई है। इसके खत्म होने के पीछे सबसे बड़ा कारण जीवन में व्यवस्थित खानपान, बैठना- उठना नहीं होना है। हमारे ऋषि- मुनियों ने कहा कि आसन लगाकर भोजन करें जिससे हमारी पाचनशक्ति ठीक होगी। यह बात आर्यिका मां पूर्णमति माताजी ने कही। वह रविवार को महावीर भवन में धर्मसभा को संबोधित कर रही थीं।

उन्होंने कहा कि प्राणायाम और योग भी यही कहता है कि पहले बैठना और सोना सीखो। आज व्यक्ति कुछ भी खाए जा रहा है, जिसका परिणाम गैस, कब्ज और पाचन की समस्या के रूप में सामने आ रही है। पेट वाले डॉक्टर धड़ल्ले से कमाए जा रहे हैं और तुम अपना जीवन बर्बाद कर रहे हो। माताजी ने कहा कि इंसान का जीवन यंत्र पर बहुत निर्भर हो गया है। पूरा काम यंत्र कर रहे हैं तो लोगों के पास खाने और सोने का ही काम रह गया है, पहले महिलाओं को हार्ट अटैक नहीं आता था क्योंकि सुबह 4 बजे से काम करने लगती थी। भजनों के साथ भोजन बनता था जो अमृत होता था, आज फिल्मी गानों को सुनते ही भोजन बन रहा है तो वह क्या अमृत का काम करेगा। उन्होंने कहा कि लोग यह नहीं सोच रहे कि वह क्या खा रहे हैं और क्यों खा रहे हैं, जो मिले उसे खा जाते हैं। आज का जीवन ऐसा हो गया है कि संपत्ति तो बढ़ गई, लेकिन शांति खत्म हो गई। सफलता मिली स्वस्थ्यता चली गई, सत्ता मिली स्वजन दूर हो गए, घर मिला और धर्म चला गया।

... तो जल्द लौटेगी शादी ब्याह में परसाईं की रस्म
धर्मसभा के दौरान आर्यिका माताजी ने सभी श्रद्धालुओं से शादी ब्याह कार्यक्रमों में बफर के दौरान भी बैठकर ही खाना खाने का नियम दिलाया। इसके लिए उन्होंने समाज के उच्च पदाधिकारियों और विद्वानों से सामाजिक स्तर पर निर्णय लेने को कहा। यदि आर्यिका माताजी की उक्त पहल पर समाज द्वारा निर्णय लिया जाता है तो लगभग खत्म हो चुकी परसाई की रस्म जैन समाज में पुनर्जीवित हो जाएगी। बहरहाल जैन समाज की प्रबंध कार्यकारिणी समिति द्वारा बैठकर खाना खाने के संबंध में शीघ्र रूपरेखा तैयार कर निर्णय को लागू की सहमति दी है। जैन समाज के मंत्री अनिल जैन अंकल ने समाज के विभिन्न संगठनों से आव्हान किया है कि वह ऐसे में प्रोग्रामों में परसाई का जिम्मा लेने के लिए आगे, ताकि भारतीय संस्कृति के अनुरूप एक स्थान पर बैठकर भोजन किया जा सके।

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News in Hindi

Shikhar Ji.. Parasnath tonk exclusive yesterday pic!! इस पेज के Admin सम्मेद शिखर जी यात्रा पर हैं, कल 20 पंथी कोठी में एक क्षुल्लक जी के दर्शन करे जिनके बारे में पता चला उन्होंने ख़ुद बताया की वे Air Force में 5 Year रह चुके हैं, Job कर चुके हैं तो सुनकर ग़ज़ब लगा की वैराग्य होने पर उन्होंने ऐसी जॉब भी छोड़ दी:) उस समय ज़्यादा बात नहीं कर पाए ओर हम admin उनका नाम पूछना/पता करना भूल गए वे पतले से लम्बे से हैं तथा 20 पंथी कोठी में चातुर्मास कर रहे हैं किसी को उनके बारे में पता हो या उनकी पिक्चर हो तो ज़रूर SHARE करे, शिखर जी अच्छे भीड़ हैं.. मौसम बहुत आनंदमय हैं.. वंदना करने में ऐसा ग़ज़ब आनंद आया इस बार की क्या कहे, घने बादल... ऊपर पहुँचकर देखा कि हमारे बाल ओर कपड़े लगभग गीले थे... shayad औंस/fog थी!!!!:) पारस बाबा के दर पर आध्यात्मिक रस बरस रहा हैं... जिन धर्म का मर्म समझाने मानो वो ख़ुद कण कण में बस रहा हैं!!!

-Nipun Jain

❖ आपको दुःख किसने दिये?

कोई कहेगा कि भगवान ने दिये!
कोई कहेगा कि देवी-देवता ने दिये!
कोई कहेगा कि मेरे दुश्मनों ने दिये!
कोई कहेगा कि मेरे अपनों ने दिए!

जिनवानी कहती हैं ये दुःख आपने ही अपने लिए बना रखें है,आपके किए हुए कर्मों से ही आपको दुःख होता है!
आप पूछोगे की मैंने अपने लिए दुःख क्यूँ बनाया है?
इसका उत्तर है " प्रमाद "!
प्रमाद की व्याख्या बहुत बड़ी है:
प्रमाद में राग,द्वेष भी आ गया,आलस भी आ गया,क्रोध करना भी आ गया,छल-कपट करना भी आ गया,चोरी करना भी आ गया,माँस-अण्डा खाना भी आ गया,दूसरे की स्त्री को गंदी नज़र से देखना भी आ गया आदि!

छोटा सा उदाहरण: व्यक्ति स्वाद के चक्कर में ज़्यादा खा लेता है,और फिर उसका पेट दर्द हो जाता,बीमारियाँ हो जाती हैं!

अपने दुखों का कारण तू क्यूँ दूसरों को मानता है,तू ही तो कर्ता है,तू ही तो भोगता है,
"जैसे कर्म करेगा, वैसे ही तो भोगेगा,"
करनी का फल तो हर किसी को भोगना पड़ा है
"अपना किया हुआ ही तो तू भोग रहा है,
नहीं तो क्या मजाल किसी की तुझे दुःख दे दे"!

""अपने को दुःख होता है,उसमें तो आप कहते हो की मुझे बचाए कोई पर जब आप दूसरों को दुःख देते हो तो आपको उनका दर्द महसूस नहीं होता!""

"अगर हमेशा के लिए सभी दुखों से छुटकारा चाहते हो तो प्रमाद से अप्रमाद में आओ!
ज़्यादा नहीं तो व्यर्थ के पापों से तो बचो,पाप करते हुए उसमें मज़ा लेने से बचो,बड़ा व भयंकर क्रोध करने से बचो,जरूरतमंद की सहायता करो,बड़े बुज़ुर्गों की सेवा करो,दान दो,साधुओं की निर्दोष सेवा करो,उनका प्रवचन सुनो,अपने बच्चों को धर्म के संस्कार दो,दिखावे में ना उलझो!"

अपनी आत्मा का कल्याण करना है तो पुरुषार्थ आपको ही करना पड़ेगा!!
राह फूलो भरी नहीं तो काँटों भरी भी नहीं है और मंजिल(मोक्ष)इतनी सुन्दर हो तो हिम्मत दोगुनी हो जाती है ।काम कठिन जरूर है मगर आसान मानकर करेगें तो ही आगे बढ़ पायेगें।
और फिर जब बहुत सारे यात्री(साधु, साध्वी, श्रावक,श्रविका)यात्रा में नजर आते है तो राह आसान लगने लगती है।हमारी तो अभी शुरुआत भर है आप भी बढिए हम भी बढ़ते है कम से कम आज जहाँ है वहां से कुछ तो फासला तय करेंगे।

"आनंद जिसकी तुम्हें तलाश है,वह तुम्हारे अंदर ही है" -अमन जैन

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