28.09.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 28.09.2016
Updated: 05.01.2017

Update

TODAY UPDATE PICTURE ❖ मेरे संसदीय घर भी पधारो आचार्य भगवन.. सांसद सिंधिया ने किया आज आचार्यश्री से निवेदन:)

28 सितंबर! संसद में कांग्रेस के मुख्य क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बुधवार को भोपाल में चातुर्मासरत आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के दर्शन कर गुना में पंचकल्याण महोत्सव के लिए निवेदन करते हुए आशीर्वाद मांगा। इस मौके पर गुना जैन समाज का प्रतिनिधि मंडल एवं कांग्रेस कार्यकर्ता भी उपस्थित थे। प्रात: 9:30 बजे हबीवगंज स्थित जैन मंदिर पहुंचे सांसद सिंधिया ने आचार्यश्री के समक्ष श्रीफल भेंढ किया। इस मौके पर कमेटी द्वारा सांसद सिंधिया का सम्मान किया गया।

इस मौके पर सांसद सिंधिया ने आचार्यश्री के समक्ष अपने संसदीय घर गुना, अशोकनगर, शिवपुरी, ग्वालियर-चंबल में आने का आग्रह किया। सांसद सिंधिया ने गुना के पंचकल्याणक महोत्सव के लिए निवेदन करते हुए क्षेत्रवासियों की भावनाओं को आचार्यश्री के समक्ष रखा। इस मौके अवसर पर *सांसद सिंधिया ने कहा कि आज मुझे जो भी संस्कार मिले हैं वह जैन दर्शन के कारण ही मिले हैं। बचपन में मेरे पिताजी, माताजी ग्वालियर में जैन मंदिर ले जाया करते थे, बचपन से ही मेरा जैन सिद्धांतों के प्रति झुकाव रहा। सांसद सिंधिया ने क्षमावाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह त्यौंहार समाज में सौहार्द का वातावरण पैदा करता है। पूरे विश्व को आज इसकी जरूरत है।

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UPDATE LATEST PRAVACHAN @ Picture @ #Bhopal ❖ प्राशुकता ही जीवन है -आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ने कहा कि प्राशुक जल की एक निश्चित अबधि तक मर्यादा रहती है उसके बाद उसमें जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। लौंग डालने से प्राशुक्ता की अवधि बढाई जा सकती है उसे जीव रहित बनाया जा सकता है। जल को उबालने से भी प्राशुक बनाया जाता है जो पीने योग्य हो जाता है। ठन्डे जल से संयम का ब्रत भंग होता है और पेट में भीतर जीवों की उत्पत्ति हो जाती है । ज्ञान के आभाव में अशुद्ध जल लेने से रोगों की उत्पत्ति होती है जो मानसिक रूप से भी लोगों को कमजोर बनाने में सहायक होती है ।हम जमीन के बहुत नीचे से जल को प्राप्त करते हैं तो उसमें बिभिन्न प्रकार के खनिज तत्व भी समाहित होते हैं जो अकेले छानने से प्रभाव् हींन नहीं होते उसे उबालना ही पड़ता है। अशुद्ध जल आपके पेट, लीवर, किडनी और ह्रदय पर सीधा प्रभाव डालता है और अधिकतर रोग भी जल की अशुद्धता के कारण ही होता है।

उन्होंने कहा कि जल का समाशोधन अग्नि के माध्यम से ही किया जा सकता है । शुद्ध हवा और सूर्य के माध्यम से भी जल का शुद्धिकरण होता है ये प्राकृतिक संसाधन है । आज जो हरी पत्ति की सब्जियां होती हैं ये भी जीव सहित होती हैं जब इन्हें सुखाकर उपयोग में लाया जाता है तो प्राशुक हो जाती हैं, जैंसे अंगूर सूखने के बाद किश्मिस् और मुनक्का बन जाते हैं बो प्राशुक हो जाते हैं । सूर्य की ऊर्जा और हवा के प्रभाव से अनेक बस्तुओं को प्राशुक बनाया जाता है। बड़े बड़े महानगरों में आज शुद्ध जलवायु का नितांत आभाव होता जा रहा है इसी कारण पर्यावरण दूषित हो रहा है। चिकित्सालय उसी व्यक्ति को जाना पड़ता है जो अपने पेट को प्रदुषण से मुक्त नहीं कर पाता। जैन दर्शन को जानने वाला प्राशुक विधि से भोजन का निर्माण करता है और जल भी प्राशुक ग्रहण करता है तो बो हमेशा रोगमुक्त रहता है। सरकार और कुछ अखबार जल ही जीवन है का नारा तो समाज को दे रहे हैं परंतु जल के प्राशुकीकरण की विधि नहीं बता रहे हैं जबकि जल तभी जीवन का वरदान होता है जब बो प्राशुक और शुद्ध होता है। प्राशुकीकरण विधि के लिए लोगों को प्रशिक्षण देने की भी आवश्यकता है। यदि जल और हवा शुद्ध नहीं होगा तो मन को भी शुद्ध नहीं बनाया जा सकता। आज मन की चिकित्सा की आवश्यकता है और मन को सही चिकित्सा तभी मिल सकती है जब शुद्ध आहार और शुद्ध जल का उचित प्रबंधन किया जाय । कितना ही विज्ञानं का अध्ययन कर लें परंतु विवेक को जाग्रत रखके और सावधानी को बरतकर ही हम प्रदुषण मुक्त जीवन जी सकते हैं। ज्ञान और साबधानी दोनों अलग अलग बस्तु हैं, अकेले ज्ञान से प्रबंधन को उचित नहीं बनाया जा सकता उसके लिए साबधानी की भी अति आवश्यकता होती है।

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