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पक्खी पर्व 2017
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देखिए संथारापूर्वक देह त्यागने वाली जैन साध्वी की महाप्रयाण यात्रा में ऐसे उमड़े लोग
सोलह दिन के संथारे के पश्चात देह त्यागने वाली जैन साध्वी प्रमुख मैना सुंदरी की महाप्रयाण यात्रा बुधवार को शहर में गाजे-बाज के साथ निकाली गई। शहर के प्रमुख मार्गों से होकर निकली महाप्रयाण यात्रा में बड़ी संख्या में जैन समाज के लोगों ने अपनी भागीदारी निभाई। नौ बजे रवाना हुई महाप्रयाण यात्रा...
- पावटा स्थित सामयिक स्वाध्याय भवन में साध्वी की पार्थिव देह को लोगों के दर्शनार्थ रखा गया। सुबह से उनके अंतिम दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग उमड़ पड़े।
- नौ बजे गाजे बाजे के साथ उनकी महाप्रयाण यात्रा शुरू हुई। शहर के प्रमुख मार्गों से होते हुए यात्रा सिवांची गेट स्थित ओसवाल स्वर्गाश्रम पहुंची।
तेरह की उम्र में ली थी दीक्षा
- आचार्य हीराचन्द महाराज की आज्ञानुवर्ती साध्वी प्रमुख मैना सुंदरी ने ७१ वर्ष पूर्व १३ वर्ष की अल्प आयु में जैनाचार्य हस्तीमल महाराज से दीक्षा ली थी।
- अपने ७१ वर्षों के संयम जीवन में उन्होंने देश के कई प्रांतों की यात्रा कर भगवान महावीर के संदेश को जन-जन तक पहुंचाया। उनके प्रवचनों पर कई पुस्तकों का प्रकाशन हुआ।
ये है संथारा
- मृत्यु को निकट जान यह स्वेच्छा से देह त्यागने की परंपरा है। जैन धर्म में इसे जीवन की अंतिम साधना माना जाता है।
- इसमें व्यक्ति को जब लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है।
- संथारा लेने से पूर्व अपने परिजनों या गुरु की आज्ञा लेना आवश्यक माना गया है।
- दिगम्बर जैन शास्त्र के अनुसार इसे समाधि या संल्लेखना तो श्वेताम्बर जैन शास्त्र में संथारा कहा जाता है।
- भगवान महावीर के उपदेशानुसार जन्म की तरह मृत्यु को भी उत्सव का रूप दिया जा सकता है। संथारा लेने वाला व्यक्ति भी खुश होकर अपनी अंतिम यात्रा को सफल कर सकेगा, यही सोचकर संथारा लिया जाता है।
- गत वर्ष राजस्थान हाईकोर्ट ने संथारा पर रोक लगी दी थी, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी।
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Only when we have become non-violent towards all life will we have learned to live well ourselves.
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The hands that help are far better than lips that pray.
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It is possible to have the mind so still and so calm and so peaceful that we can hear the sound of the trees when there is no wind.
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May all sentient beings have happiness
and the causes of happiness;
May all sentient beings be free from suffering
and the causes of suffering;
May all sentient beings never be separated
from the happiness that knows no suffering;
May all sentient beings abide in equanimity,
free from attachment and anger that
holds some close and others distant.
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