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11 वर्ष बाद हुआ मंगल मिलन
श्रमण संघीय सलाहकार श्री #दिनेश मुनि जी म. आदि ठाणा एवं महासाध्वी स्पष्टवक्ता डॉ. श्री #दर्शनप्रभा जी म. आदि ठाणा का #सोलापुर (#महाराष्ट्र) में 11 वर्षों बाद मंगल मिलन हुआ।
साध्वीवृन्दों का आगे विहार अहमदनगर की ओर हुआ है। उसके पश्चात् फरवरी माह द्वितीय सप्ताह तक #पाली (राजस्थान) पहुंचने की संभावना है।
एवं सलाहकार श्री दिनेश मुनि जी म. का 25 दिसम्बर तक प्रवास सोलापुर में रहेगा तत्पष्चात् पढरपुर होते हुए #इंचलकरणजी दिनांक 20 जनवरी 2017 तक पहंुचने की संभावना है।
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News in Hindi
*मूर्तिपूजक जैन संघों के नाम*
*एक कठोर सन्देश*
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◆ छोटा सा जैन समाज है. उसके अनेक मत-पंथ हैं. सबको अपनी अपनी मान्यता के अनुसार जीने का अधिकार है.
◆ वर्तमान में अर्हत् धर्म के लिए विषम परिस्थितियां हैं. बहुत बड़े संक्रमण काल से गुजर रहा है अपना समाज. ऐसी स्तिथि में सबको मिलझुल कर आगे बढ़ना चाहिये और एक-दूसरे के प्रति सद्भावना का वातावरण बनाना चाहिये. हकीकत में तभी हम सभी सुरक्षित रह सकेंगे.
◆ *एक-दूसरे के मत-पंथ का विरोध करने या एक-दूसरे की धर्मश्रद्धा को ठेस पहुंचाने का अब समय नहीं है.*
◆ लेकिन बहुत ही दुःख के साथ यह बताने जा रहा हूं कि जैन धर्म की स्थानकवासी परंपरा का ज्ञान गच्छ (खींचण) संप्रदाय अब अपनी सारी मार्यदा भूल रहा है.
◆ *इस खींचण संप्रदाय के कोई अमृतमुनि हैं, जो अभी दक्षिण भारत में विचरण कर रहे हैं.*
◆ दक्षिण भारत में आज भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां मूर्तिपूजक, स्थानकवासी और तेरापंथी.....तीनों मान्यताओं के लोग साथ रहते हैं और एक-दूसरे के प्रति सद्भाव रखते हैं.
◆ लेकिन ये खींचण संप्रदाय के संत-सतियां काफी वर्षों से समाज में परस्पर ज़हर घोलने का काम कर रहे हैं.
◆ *ये अमृतमुनि शिमोगा, जमखंडी, लोखापुर, सिंदनूर, बल्लारी, पाली, भीलवाड़ा आदि अनेक क्षेत्रों में संघभेद करवाकर आपस में जैन समाज को लड़वा चुके हैं.*
◆ ये मूर्तिपूजक जैनों के उपाश्रय में रुककर भी रात को धर्मचर्चा के नाम पर लोगों को *जैन मंदिर नहीं जाने और कभी पूजा नहीं करने की प्रतिज्ञायें देते हैं.* इसके लिए वे अरिहंत प्रभु की प्रतिमाओं के लिये असह्य गलत टिप्पणियां करते हैं.
◆ *मैं तब हैरान रह गया जब यह पता चला कि वे अब अरिहंत प्रभु के प्रक्षाल से मल-मूत्र साफ़ करते हैं.*
◆ यह मूर्तिपूजक परंपरा का घोर अपमान हैं. *यह मरते दम तक सहा नहीं जा सकता.*
◆ स्पष्ट है कि *यदि ऐसा है तो इस्लाम और खींचण संप्रदाय में कोई अंतर नहीं है.*
◆ अपने संप्रदाय के संत-सतियों के इन गंदे कारनामों के लिये *खींचण संप्रदाय के गच्छनायक अविलंब माफ़ी मांगते हुए स्पष्टिकरण दें.*
◆ अगर ऐसा नहीं होता है तो मैं मूर्तिपूजक जैन परंपरा का एक आचार्य होने के नाते और उस *परंपरा का नमक खाने के एवज में समग्र श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रावक-श्राविकाओं को बड़े दुःख के साथ यह निर्देश देता हूं कि वे खींचण संप्रदाय के संत-सतियों का सार्वजनिक बहिष्कार करें.*
◆ *उन्हें किसी भी हालत में मूर्तिपूजक परंपरा के उपाश्रयों, विहार धामों और धर्मशालाओं में उतरने नहीं दें, उन्हें गोचरी-पानी नहीं वोहरायें. उनके प्रवचन हरगिज नहीं सुनें.*
◆ इसके बावजूद वे ना सुधरें तो *मूर्तिपूजक जैन परंपरा की आन-बान और शान की रक्षा की खातिर इन दुष्ट संत-सतियों के साथ शाम-दाम-दंड-भेद के साथ सारी कार्यवाही करें.*
◆ जो असली मूर्तिपूजक हों वे आगे आयें और जो दोगले मूर्तिपूजक हों, वे धर्म परिवर्तन कर लें.
◆ *मैं नाम के नहीं, काम के सभी मूर्तिपूजक जैनाचार्यों से यह निवेदन करना चाहता हूं कि वे भी प्रभु शासन की रक्षा के लिये इस बारे में गोल-गोल नहीं, स्पष्ट निर्देश जारी करें.*
◆ लंबे समय से चल रहे इस पाप का अब अंत होना चाहिये!
◆ *सभी जैन अपनी प्रतिक्रिया भेजिये.*
*–आचार्य विमलसागरसूरि*
(सुरत-पालीताणा विहार यात्रा से)
Whatsapp no. 9967762222.
(प्रेषक: अर्जुन कतिजा)
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