23.12.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 23.12.2016
Updated: 05.01.2017

Update

*महा-जिज्ञाषा समाधान-*
*पूज्य गुरुदेव मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महामुनिराज एवं पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज*
*दिनांक- 23 दिसम्बर 2016,* शुक्रवार

👉 *धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से रात्रि में शादी की समस्त क्रियाएं दोषपूर्ण हैं।* रात्रि विवाह राक्षसी विवाह कहलाता है अतः कम से कम जैनियों में तो विवाह दिन में ही होना चाहिए।

☄ *महान बनने की चाह बुरी नहीं है, परंतु महत्वता चाहने की चाह बुरी है।* महान वह बनता है जो सहनशक्ति रखता है। जिसमें सब के प्रति दया व् प्रेम के भाव है। वही महान बन सकता है।

☄ *शादी-विवाह में कुंडली मिलाना आवश्यक नहीं है, इस संबंध में लकीर के फकीर नहीं बनना चाहिए। शादी विवाह में वाइब्रेशन मिलाना चाहिए। जिससे आप मिलने जा रहे हैं, अगर उस परिवार से मिलने पर आपको अच्छा लगता है, तब मेरी राय में कुंडली मिलाने की कोई आवश्यकता नहीं।*

👉 *आज बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए उन्हें पाप भीरुता, संवेदनशीलता, जैनत्व के प्रति गौरव का भाव और माता पिता के प्रति श्रद्धा अगर जगा दें तो ऐसे बच्चों को कहीं भी भेजने से निराशा नहीं होगी। उनका भविष्य उज्जबल ही रहेगा।*

☄ *आज के समय यौन सदाचार का पालन करना ही गृहस्थ का ब्रह्मचर्य है।* स्वदार संतोष ब्रत गृहस्थों का ब्रह्मचर्याणुव्रत होता है।

☄ अपनी ड्यूटी के समय में से धर्म के लिए समय निकालना कोई गलत नहीं है, किंतु व्यक्ति को अपनी ड्यूटी का पूरा कार्य करना भी आवश्यक है

👉 कार्य करना तो हमारे हाथ में है, परंतु उसका परिणाम हमारे हाथ में नहीं है। *हमारे मन के अनुसार परिणाम ना आने पर निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि यही मानना चाहिए कि हमारे भाग्य में इतना ही था।* संतोषी सदा सुखी वाली युक्ति को जीवन में धारण करना चाहिए।

☄ *कोई धार्मिक कार्य यदि प्रमादवश पूर्ण नहीं हो पा रहा है, तो यह बहुत बड़ा पाप है।* इसके लिए गुरु चरणों में जाकर प्रायश्चित लेकर पुनः अपना कार्य प्रारंभ करना चाहिए।

☄ *मुनि महाराज को स्वयं दीक्षा प्रदान करने में कोई बाधा नहीं, परंतु यह आपातकाल का मार्ग है।* परन्तु यदि गुरु मौजूद हो, योग्य हो तब संघ के साधुओं को यह कार्य नहीं करना चाहिए। यदि संघ आचार्य मार्ग का लोप कर रहे हो, तो उस संघ के योग्य साधु यह कार्य कर सकता है।

👉 *पात्र को जो दान दिया जाता है, वह परमार्थ के लिए होता है। परंतु दीन दुखी (अपात्र) को दिया दान सहयोग कहलाता है,* यह संसार रुप पूण्य दिलाता है। परंतु कुपात्र को दान नहीं देना चाहिए।

👉 धर्म का कोई संस्थापक नही होता। जैन धर्म त्रिकालिक है। *अलग-अलग जातियों का अपना स्वयं कोई अस्तित्व नही होता। जिसके देव-शास्त्र-गुरु एक हैं, उसकी जाति भी एक है।*

☄ *भगवान से कोई अपेक्षा मत रखो। भगवान की अपेक्षा रखो। गुरु से कुछ मत चाहो, बल्कि गुरु को चाहो। ऐसी दॄष्टि मन में रखोगे तो कल्याण हो जायेगा।*

👉 *कभी ऐसा कोई कार्य न करें जिससे गुरु का नाम बदनाम हो जाए। गुरु के बताये मार्ग पर चलना, उनकी शिक्षाओं का पालन करना ही गुरु का वास्तविक सम्मान है।*

*नोट- पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। किसी को किसी सम्बंध में कोई शंका हो तो कृपया सुधाकलश app या youtube पर आज का वीडियो देख कर अपना समाधान कर सकते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।*

*पूज्य गुरुदेव का जिज्ञाषा समाधान कार्यक्रम प्रतिदिन लाइव देखिये- जिनवाणी चैनल पर*
*सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से*

*संकलन- दिलीप जैन शिवपुरी।*

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आज का जिज्ञाषा समाधान -मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महामुनिराज एवं मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज #MuniSudhaSagar #MuniPramaanSagar

धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से रात्रि में शादी की समस्त क्रियाएं दोषपूर्ण हैं।* रात्रि विवाह राक्षसी विवाह कहलाता है अतः कम से कम जैनियों में तो विवाह दिन में ही होना चाहिए।

☄ *महान बनने की चाह बुरी नहीं है, परंतु महत्वता चाहने की चाह बुरी है।* महान वह बनता है जो सहनशक्ति रखता है। जिसमें सब के प्रति दया व् प्रेम के भाव है। वही महान बन सकता है।

☄ *शादी-विवाह में कुंडली मिलाना आवश्यक नहीं है, इस संबंध में लकीर के फकीर नहीं बनना चाहिए। शादी विवाह में वाइब्रेशन मिलाना चाहिए। जिससे आप मिलने जा रहे हैं, अगर उस परिवार से मिलने पर आपको अच्छा लगता है, तब मेरी राय में कुंडली मिलाने की कोई आवश्यकता नहीं।*

👉 *आज बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए उन्हें पाप भीरुता, संवेदनशीलता, जैनत्व के प्रति गौरव का भाव और माता पिता के प्रति श्रद्धा अगर जगा दें तो ऐसे बच्चों को कहीं भी भेजने से निराशा नहीं होगी। उनका भविष्य उज्जबल ही रहेगा।*

☄ *आज के समय यौन सदाचार का पालन करना ही गृहस्थ का ब्रह्मचर्य है।* स्वदार संतोष ब्रत गृहस्थों का ब्रह्मचर्याणुव्रत होता है।

☄ अपनी ड्यूटी के समय में से धर्म के लिए समय निकालना कोई गलत नहीं है, किंतु व्यक्ति को अपनी ड्यूटी का पूरा कार्य करना भी आवश्यक है

👉 कार्य करना तो हमारे हाथ में है, परंतु उसका परिणाम हमारे हाथ में नहीं है। *हमारे मन के अनुसार परिणाम ना आने पर निराश नहीं होना चाहिए, बल्कि यही मानना चाहिए कि हमारे भाग्य में इतना ही था।* संतोषी सदा सुखी वाली युक्ति को जीवन में धारण करना चाहिए।

☄ *कोई धार्मिक कार्य यदि प्रमादवश पूर्ण नहीं हो पा रहा है, तो यह बहुत बड़ा पाप है।* इसके लिए गुरु चरणों में जाकर प्रायश्चित लेकर पुनः अपना कार्य प्रारंभ करना चाहिए।

☄ *मुनि महाराज को स्वयं दीक्षा प्रदान करने में कोई बाधा नहीं, परंतु यह आपातकाल का मार्ग है।* परन्तु यदि गुरु मौजूद हो, योग्य हो तब संघ के साधुओं को यह कार्य नहीं करना चाहिए। यदि संघ आचार्य मार्ग का लोप कर रहे हो, तो उस संघ के योग्य साधु यह कार्य कर सकता है।

👉 *पात्र को जो दान दिया जाता है, वह परमार्थ के लिए होता है। परंतु दीन दुखी (अपात्र) को दिया दान सहयोग कहलाता है,* यह संसार रुप पूण्य दिलाता है। परंतु कुपात्र को दान नहीं देना चाहिए।

👉 धर्म का कोई संस्थापक नही होता। जैन धर्म त्रिकालिक है। *अलग-अलग जातियों का अपना स्वयं कोई अस्तित्व नही होता। जिसके देव-शास्त्र-गुरु एक हैं, उसकी जाति भी एक है।*

☄ *भगवान से कोई अपेक्षा मत रखो। भगवान की अपेक्षा रखो। गुरु से कुछ मत चाहो, बल्कि गुरु को चाहो। ऐसी दॄष्टि मन में रखोगे तो कल्याण हो जायेगा।*

👉 *कभी ऐसा कोई कार्य न करें जिससे गुरु का नाम बदनाम हो जाए। गुरु के बताये मार्ग पर चलना, उनकी शिक्षाओं का पालन करना ही गुरु का वास्तविक सम्मान है।*

*नोट- पूज्य गुरुदेव जिज्ञासाओं को समाधान बहुत डिटेल में देते हैं। हम यहाँ मात्र उसका सार ही देते हैं। किसी को किसी सम्बंध में कोई शंका हो तो कृपया सुधाकलश app या youtube पर आज का वीडियो देख कर अपना समाधान कर सकते हैं। किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।*

*पूज्य गुरुदेव का जिज्ञाषा समाधान कार्यक्रम प्रतिदिन लाइव देखिये- जिनवाणी चैनल पर*
*सायं 6 बजे से, पुनः प्रसारण अगले दिन दोपहर 2 बजे से*

संकलन- दिलीप जैन शिवपुरी।
प्रस्तुति-अनिल बड़कुल, जैन न्यूज़, गुना

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New Year 2017 Celebration @ खजुराहो!!

भव्य अनूठा आयोजन🔸* अन्तर्राष्ट्रीय दि.जैन अतिशय क्षेत्र खजुराहो में नूतन वर्ष की पावन वेला पर प्रथम बार भव्य आयोजन सम्पन होने जा रहा है।

_परम पूज्य संत शिरोमणि दिगम्बर सरोवर के राजहंस आचार्य श्री १०८ विद्यासागर महाराज जी परम प्रभावक आज्ञानुवर्ती शिष्य परम पूज्य_
_🚩ज्येष्ठ मुनिश्री १०८ पवित्रसागर महाराज जी_
_🚩परम पूज्य ज्येष्ठ मुनिश्री १०८ प्रयोगसागर महाराज जी_
_🚩परम पूज्य प्रशममूर्ति,मुनिश्री१०८ अजितसागर महाराज जी_
_🚩श्रद्देय ऐलक श्री १०५ दयासागर महाराज जी_
_🚩श्रद्देय ऐलक श्री १०५ विवेकानंदसागर महाराज जी_

_ससंघ के पावन पुनीत सानिध्य में प्रथम बार खजुराहो (मप्र)में दो दिवासिय विशेष आयोजन *31 दिसम्बर एवं 1 जनवरी* को भव्य रूप से सम्पन होने जा रहा है।_
_🌦 *दिनाँक 31 दिसंबर 2016* शनिवार की_
_👉🏾प्रात:काल 7 बजे से अभिषेक, शान्तिधारा,_
_👉🏾पूजन दोपहर 1 बजे से यागमंडल विधान कलश शुद्धि,तत्पश्चत पुज्य मुनिश्री जी के विशेष प्रवचन सम्पन होंगे।
_🌦एवं प्रात:काल की नूतन वर्ष की पावन वेला *1जनवरी 2017* पर रविवार की_
_👉🏾प्रात: काल 7 बजे से खजुराहो में विराजमान श्री देवाधिदेव शान्तिनाथ भगवान जी का १००८ कलशों से भव्य महामस्तकाभिषेक,बृहत् शान्तिधारा,एवं महापूजन आचार्यश्री जी की एवं मुनिश्री जी की पूजन,कलशारोहण तत्पश्चत मुनिश्री जी के प्रवचन होंगे।_
_👉🏾दोपहर में 1 बजे से भव्य आयोजन_
_151 कलशों का शिखर सहेली वेदियों पर,कलशारोहण एवं श्री शान्तिनाथ संग्रहालय का लोकार्पण एवं मुनिश्री जी के प्रवचन सम्पन स्वरुप एक अनूठा आयोजन भव्य रूप से संम्पन होने जा रहा है।

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#RIP /vs #Live_In_Peace???

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News in Hindi

जैन धर्म में गाय की महत्ता #Cow #AnimalLove #Vegetarian #Vegan

जैन धर्म का मूल अहिंसा है अतः जैन धर्म सभी जीवों की हत्या और उनके मांस सेवन का कड़ा निषेध करता है |
जैन उसे एक पवित्र पशु मानते हैं तथा उसका माता के समान सम्मान भी करते हैं | उसकी बहुविध उपयोगिता के कारण अन्य पशुओं की अपेक्षा उसके प्रति जैनों में बहुमान भी अधिक है |जैन मुनियों की पवित्र एवं कठिन आहारचर्या में भी तुरंत दुहा हुआ और मर्यादित समय में उष्ण किया हुआ गो दुग्ध श्रेयस्कर माना गया है

तीर्थंकर ऋषभदेव के काल से ही जैन गो रक्षा में सक्रिय हैं । उन्होंने कृषि करो और ऋषि बनो का सन्देश दिया था |उस काल में विशाल गोशालाएँ निर्मित हुईं और गो पालन को जीवन शैली बनाया गया । सभी पशुओं सहित गायों पर भी क्रूरता, उन्हें भूखा रखना, बोझ से लादना, अंग भंग, सभी पर कानूनी प्रतिबंध था ।

अर्धमागधी प्राकृत भाषा में रचित जैन आगमों के अनुसार महावीर के काल में गायों की संख्या से किसी के धन का आकलन होता था । एक व्रज गौकुल में दस हज़ार(१०,०००) गायें होती थीं । महावीर के पिता राजा सिद्धार्थ के वैशाली गणराज्य में सर्वाधिक गायों के १० स्वामियों को ‘राजगृह महाशतक’ एवं ‘काशिय -चुलनिपिता’ कहा जाता था ।महावीर ने अपने प्रत्येक अनुयायियों को ६०,००० गायों के पालन का उपदेश दिया था ।भगवान् महावीर के प्रमुख भक्त आनंद श्रावक ने आठ गोकुल संचालित करने का संकल्प लिया था ।

आज भी पूरे देश में जैन समाज द्वारा लगभग पांच हज़ार से अधिक गो शालाएं संचालित हैं | जैन समाज गो रक्षा के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए खर्च करती है |

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मुनिश्री समयसागर जी महाराज -धर्म क्या हैं.. मार्मिक प्रवचन ज़रूर पढ़े!! #MuniSamaysagar

शास्त्र का अध्ययन अलग वस्तु है, गुरु का वचन अलग वस्तु है। आगम का अध्ययन, अवलोकन करने पर अंगो और पूर्वों का ज्ञान हो सकता है। गुरु के द्वारा संकेत प्राप्त होता है। शब्दों के साथ अनुभव का भी पुट होता है, शब्दों में जो अर्थ छिपा होता है उसे समझने के लिए गुरुओं का सहारा लेना पड़ता है।

काल अल्प है इसका सदुपयोग करे तो सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हो सकती है। *आचार्य महाराज से एक व्यक्ति ने कुण्डलपुर में कहा कि "मैं जल्दी में हूँ, संक्षेप में धर्म का स्वरूप समझना चाहता हूँ।" तो गुरुदेव ने कहा आज तक इस संसारी प्राणी का जो अच्छा लगा है वह अधर्म है। और जो आज तक रुचा नहीं वह धर्म है।

संसारी प्राणी व्यस्त है,संसार के कार्य में,लौकिक क्षेत्र में भी विकास कर लेता है।विदेशों में भी अध्ययन कर आता है। *बुद्धि तो है, बुद्धिमान हो जाए वह बुद्धि। व्यक्ति संसार के इन्द्रिय विषयों का ही पोषण करता है विषयों का आकर्षण बढ़ता जाता है, स्टैण्डर्ड बढ़ता है, महानगरों में जाकर इतना-इतना श्रम करके 18-18 घण्टे कार्य करता है फिर भी क्या हासिल कर पाता है।धार्मिक क्षेत्र के हिसाब से वह अँगूठा छाप है,ये धन मुक्ति तक ले जाने में सहायक नहीं है। मोक्षमार्ग में सूक्ष्म ज्ञान की आवश्यकता है,श्रुत का कोई पार नहीं है।

स्वर्गों में सागरोपम की आयु होती है, वहाँ सम्यग्दृष्टि जीव १२ भावनाओं का चिंतन करता है और मिथ्यादृष्टि विषयों में आसक्त रहता है वहाँ उसे सुख की अनुभूति नहीं रहती अपितु मानसिक पीड़ा रहती है जैसे माहेन्द्र के सामने सामान्य इन्द्र! उनकी क्या स्थिति होती है-चपरासी जैसी।

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