30.01.2017 ►TMC ►Terapanth Center News

Published: 30.01.2017
Updated: 01.02.2017

Update

📢 *विशेष सूचना*

शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में सिलीगुड़ी में आयोजित होने वाले 153 वें *मर्यादा महोत्सव* का सीधा प्रसारण-

दिनांक:- 03 फ़रवरी 2017 को

*पारस चैनल* पर:- प्रात: 11:30 से

संप्रसारक:- अमृतवाणी

30.01.2017
प्रेषक > *तेरापंथ मीडिया सेंटर*
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TMC

📢 *_अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में आयोजित सर्वधर्म सद्भाव सम्मेलन के अनुपम दृश्य।_*

30.01.2017
प्रस्तुति > *तेरापंथ मीडिया सेंटर*
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Update

🌏 आज की प्रेरणा 🌎
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
प्रस्तुति - अमृतवाणी 📺
आलेखन - संस्कार चैनल के श्रवण से:-

शास्त्रकार ने तीन संदेश दिये है - पहला बड़ों के प्रति विनय करना चाहिए| साधु संस्थान में भी रत्नाधिक साधुओं को बड़ा महत्त्व दिया गया है | संयम पर्याय में बड़ा व उम्र में छोटा साधु भी हो तो भी बड़े उम्र वाले साधु उसे वन्दन करते हैं | विनय आदमी को बड़ा बनाता है | दूसरा संयत रहो व संयम की दिशा में पराक्रम करो | तीसरा तत्व - नियति और पुरुषार्थ से सम्बन्धित है | नियति और पुरुषार्थ दोनों महत्वपूर्ण है व दोनों का अपना अपना स्थान है | भाग्यवाद को भी माना तो जाता है,पर तुम भाग्य भरोसे मत बैठो, पुरुषार्थ करो | न कोरे भाग्यवाद को मानों न ही कोरे पुरुषार्थवाद को | पुरुषार्थ के द्वारा भी न भव्य को अभव्य और न अभव्य को भव्य व न जीव को अजीव व न अजीव को जीव बनाया जा सकता है | यहाँ परिणामिक भावों की भूमिका सहज ही उजागर हो जाती है | हमारा पुरुषार्थ भी सम्यक व विवेकपूर्ण होना चाहिए | पुरुषार्थ में विवेक व सम्यक्त्व का समावेश हो व चोट कहाँ हो इस बात का भी हमें ज्ञान होना जरूरी है |

दिनांक - ३० जनवरी २०१७ सोमवार

🌏 आज की प्रेरणा 🌎
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
प्रस्तुति - अमृतवाणी 📺
आलेखन - संस्कार चैनल के श्रवण से:-

शास्त्रकार ने तीन संदेश दिये है - पहला बड़ों के प्रति विनय करना चाहिए| साधु संस्थान में भी रत्नाधिक साधुओं को बड़ा महत्त्व दिया गया है | संयम पर्याय में बड़ा व उम्र में छोटा साधु भी हो तो भी बड़े उम्र वाले साधु उसे वन्दन करते हैं | विनय आदमी को बड़ा बनाता है | दूसरा संयत रहो व संयम की दिशा में पराक्रम करो | तीसरा तत्व - नियति और पुरुषार्थ से सम्बन्धित है | नियति और पुरुषार्थ दोनों महत्वपूर्ण है व दोनों का अपना अपना स्थान है | भाग्यवाद को भी माना तो जात्ता है,पर तुम भाग्य भरोसे मत बैठो, पुरुषार्थ करो | न कोरे भाग्यवाद को मानों न ही कोरे पुरुषार्थवाद को | पुरुषार्थ के द्वारा भी न भव्य को अभव्य और न अभव्य को भव्य व न जीव को अजीव व न अजीव को जीव बनाया जा सकता है | यहाँ परिणामिक भावों की भूमिका सहज ही उजागर हो जाती है | हमारा पुरुषार्थ भी सम्यक व विवेकपूर्ण होना चाहिए | पुरुषार्थ में विवेक व सम्यक्त्व का समावेश हो व चोट कहाँ हो इस बात का भी हमें ज्ञान होना जरूरी है |

दिनांक - ३० जनवरी २०१७ सोमवार

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