09.02.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 09.02.2017
Updated: 10.02.2017

Update

👉 कांदिवली - दीक्षार्थी अभिनन्दन समारोह
👉 गुडियातम - मंगल भावना समारोह का आयोजन
👉 कोलकाता - ज्योत्सना स्वच्छता प्रशिक्षण सेमिनार का आयोजन
👉 गंगाशहर - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉 सिलीगुड़ी - काव्य सन्ध्या का आयोजन
👉 उदयपुर - walkthaon keep the city clean का आयोजन

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'

📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 212📝

*तेरापंथी श्रावक*

*63.*
बेड़ी-मुक्त *'शोभजी'* श्रावक,
लिखी प्रभावक *'पूजगुणी'*।
पत्नी-प्रतिबोधक *'महेशजी'*,
*'ऐ गुरु म्हांरा'* ढाल चुनी।।

*अर्थ--* आचार्य भिक्षु के नाम-स्मरण से *शोभजी-* शोभाचंदजी श्रावक की बेड़ी टूट गई। उन्होंने शासन की प्रभावना करने वाला *'पूजगुणी'* नाम का ग्रन्थ लिखा। *महेशजी-* महेशदासजी ने तत्त्व समझकर आचार्य भिक्षु की श्रद्धा स्वीकार की। उन्होंने अपनी पत्नी को प्रतिबोध देने के लिए *'ऐ गुरु म्हांरा'-* इस गीत का निर्माण किया।

*भाष्य--* *श्रावक शोभाचंदजी*
आचार्य भिक्षु के प्रमुख श्रावकों में एक नाम *'शोभजी'* का है। वे केलवा (मेवाड़) के कोठारी (चोरड़िया) परिवार से थे। उनके पिता नेतसीजी ने विक्रम संवत 1817 में आचार्य भिक्षु के प्रथम चातुर्मास्य में ही उनकी श्रद्धा स्वीकार कर ली। शोभजी उस समय गर्भ में थे। श्रद्धालु परिवार में जन्म लेने के कारण वे प्रारंभ से ही धर्म में रूचि लेने लगे। आचार्य भिक्षु के प्रति उनकी आस्था प्रगाढ़ थी। वे काव्यरसिक और कुशल कवि थे। उन्होंने बहुत गीत लिखे। कहा जाता है कि उनका यह निर्णय था कि आचार्य भिक्षु जितने पद्य बनाएंगे, उनका दशमांश वे भी बनाएंगे। इस निर्णय के आधार पर वे रचना करने लगे। आचार्य भिक्षु ने 38 हजार पद्य परिमित साहित्य की रचना की थी। शोभजी ने सौ-सौ पद्यों के पीछे दस-दस पद्य लिखे। इस क्रम में उन्होंने 38 सौ पद्यों की रचना की। उनके द्वारा लिखित एक कृति का नाम है-- *'पूजगुणी'*। उसमें तीस गीत हैं। उन गीतों में श्रद्धेय के प्रति समर्पित श्रद्धा मूर्त हो रही है। उनके कुछ प्रसिद्ध गीत निम्नोक्त हैं--
*1.* पूज भीखण जी रो समरण कीजे
*2.* हूं बलिहारी हो भीखण जी रा नाम री
*3.* स्वामीजी रा दरसण किण विध होय?

शोभजी धार्मिक दृष्टि से जितने जागरुक थे, सांसारिक कामों में उतने ही दक्ष थे। पारिवारिक दायित्व संभालने के साथ वे केलवा ठिकाने (राजपरिवार) के भी प्रधान थे। वर्षों तक उन्होंने अच्छे ढंग से काम किया। एक बार किसी बात को लेकर तात्कालीन ठाकुर साहब से उनका मतभेद हो गया। राजपरिवार की प्रतिकूलता होने से वहां रहना कठिन हो गया। उन्होंने अपनी दूसरी व्यवस्था की और वे गुप्तरूप में परिवार के साथ नाथद्वारा चले गए। केलवा के ठाकुर पहले से ही रुष्ट थे। इस घटना ने आग में घी का काम किया। उन्होंने नाथद्वारा के बड़े जागीरदार गुसांईजी के साथ साठगांठ की और शोभजी पर कल्पित अभियोग लगाकर उन्हें कारावास में कैद करवा दिया।

*कारावास में एक चमत्कारिक घटना घटी। उस घटना से सभी स्तब्ध रह गए।* वह घटना क्या थी...? जानने के लिए पढ़ें... हमारी अगली पोस्ट... क्रमशः कल।

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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Update

👉 सूरत - श्रीमती वीरोदेवी संकलेचा द्वारा तिविहार संथारा प्रत्याख्यान

प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻

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👉 डोम्बिवली, मुम्बई - एटीडीसी डोम्बिवली के प्रथम वर्षगांठ पर फ्री मेडिकल कैंप का आयोजन

प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*

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09 फरवरी का संकल्प

तिथि:- माघ शुक्ला त्रियोदशी

शुक्ला पक्ष, तिथि है तेरस।
ध्याएँ भिक्षु को निर्निमेष।।

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  1. आचार्य
  2. आचार्य तुलसी
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