18.02.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 18.02.2017
Updated: 19.02.2017

Update

👉 कोलकाता चातुर्मास आवास व्यवस्था सम्बंधित जानकारी

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दिनांक - 18 फरवरी 2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए

*प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'

📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 218📝

*तेरापंथी श्रावक*

गतांक से आगे...

*केसरसिंहजी भंडारी*

विक्रम संवत 1875 मैं आचार्य भारीमालजी उदयपुर पधारे। वहां उनका प्रभाव बढ़ने लगा। विरोधी लोगों के लिए वह असह्य हो गया। उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से महाराजा भीमसिंहजी को भ्रांत करने का प्रयास किया। उन्होंने कहा - 'जहां तेरापंथी साधु रहते हैं, वहां दुष्काल पड़ जाता है। ये दया-दान के घोर विरोधी हैं। ऐसे साधुओं का नगर में रहना ही ठीक नहीं है।' महाराणा उनकी छद्मनीति को समझ नहीं पाए। उन्होंने सन्तों को नगर छोड़ने का आदेश दे दिया। आचार्य भारीमालजी वहां से विहार कर राजनगर चले गए। विरोधियों का हौसला बढ़ा। वे उनको मेवाड़ से बाहर निकलवाने की योजना बनाने लगे। केसरजी को इस बात की जानकारी मिली तो वे महाराणा के पास जाकर बोले -- 'अन्नदाता आपको यह क्या सुझा है? जो संत चिंटी को भी नहीं सताते उनको आपने नगर से निकलवा दिया। अब सुना है कि उन्हें मेवाड़ से भी निकाल देने का विचार किया जा रहा है। आपकी आज्ञा होगी तो वे देश छोड़कर चले जाएंगे। पर आप इस बात को याद रखना कि संतो को सताने का परिणाम अच्छा नहीं होता। इन दिनों नगर पर प्रकृति का प्रकोप है। शहर में भूखमरी फैल रही है। लोग असमय ही मर रहे हैं। महाराज के जामाता अचानक चल बसे। राजकुमार जवानसिंह बीमार हैं। अब आप उन्हें देश से निकाल देंगे तो क्या होगा, कहना कठिन है।'

महाराणा का मन पूरी तरह से भ्रांत था। वे बोले-- 'केसर! तू कुछ जानता नहीं। वे साधु नगर में रहने के योग्य नहीं हैं। वे वर्षा को रोक लेते हैं। उनके यहां रहने से दुष्काल की संभावना थी। इसिलिए मैंने उनको विदा कराया।' यह बात सुनके सर जी ने तेरापंथ के बारे में जानकारी दी और विरोधियों के गलत मंसूबे के बारे में बताया। महाराणा बोले-- तू उन्हें जानता है क्या? केसर जी ने सोचा-- अब मुझे स्वयं को प्रकट कर देना चाहिए। वे बोले-- 'आचार्य भारीमालजी मेरे गुरु हैं।' महाराणा ने तेरापंथ के उद्भव और विरोध का पूरा इतिहास सुना। अपने निर्णय के प्रति उन्हें पश्चाताप हुआ। केसरजी से परामर्श कर उन्होंने दो बार अपने हाथ से पत्र लिखकर आचार्य भारीमालजी को एक बार उदयपुर पधारने की प्रार्थना की। वृद्धावस्था के कारण वे पुनः उदयपुर नहीं जा सके। उन्होंने संघ के प्रभावशाली मुनि हेमराजजी को वहां भेजा। इससे वहां तेरापंथ की अच्छी प्रभावना हुई। केसरजी भंडारी ने उस कठिन समय में अपनी सूझबूझ से संघ की उल्लेखनीय सेवा की।

*संघ सेवा में अपने पुत्र के भी प्राणों की बाजी लगा देने वाले वीर श्रावक बहादुरमलजी भंडारी की समर्पित श्रद्धा* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः।

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'

📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 219📝

*तेरापंथी श्रावक*

*बहादुरमलजी भंडारी*

जोधपुर के विशिष्ट व्यक्तियों में एक नाम बहादुरमलजी भंडारी का है। वे सूझबूझ और विवेक संपन्न व्यक्ति थे। धार्मिक क्षेत्र में उनकी जितनी रुचि थी, प्रशासनिक क्षेत्र में भी उतनी ही दक्षता थी। वे एक सफल श्रावक थे तो सफल राज्यकर्मचारी भी थे। कुछ समय के लिए वे जोधपुर के दीवान बन कर भी रहे थे। उन्हें जिस कार्य में नियोजित किया गया, उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ उसे संपन्न किया। उन्होंने समय-समय पर धर्म संघ की भी उल्लेखनीय सेवा की सेवा की। अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाओं में एक घटना का यहां उल्लेख किया जा रहा है।

बात विक्रम संवत 1920 की है। जयाचार्य ने चूरु में मुनिपत जी को दीक्षा प्रदान की। उनकी दीक्षा के छह महीने बाद उनकी माता ने भी दीक्षा स्वीकार कर ली। उनके पिता का स्वर्गवास पहले ही हो चुका था। जयपुर वासी थानजी चोपड़ा के घर उनके पिता गोद गए थे, पर आपस में सामंजस्य न बैठने से वह संबंध टूट गया। उसके बाद वह जल्दी ही दिवंगत हो गए। मुनिपतजी और उनकी मां का मन विरक्त हो गया। वे दोनों दीक्षित हो गए। इधर थानजी ने जोधपुर नरेश तख्तसिंहजी से दीक्षा के बारे में शिकायत कर अपने पौत्र को लौटाने की मांग की। नरेश ने मामले की जांच किए बिना ही गुरु और शिष्य को पकड़ने का आदेश दे दिया। दस घुड़सवार आदेश लेकर लाडनूं के लिए चल पड़े। जयाचार्य उन दिनों लाडनूं में प्रवास कर रहे थे। षड्यंत्र की जानकारी बहादुरमलजी को मिल गई। उन्होंने रातोंरात नरेश से संपर्क करना चाहा। नरेश अंतःपुर में जा चुके थे। फिर भी भंडारीजी से मिले। भंडारीजी बोले-- 'आपने जयाचार्य को पकड़ने का आदेश किसी गलत सूचना पर दिया है। वे मेरे गुरु हैं। मैं उनके बारे में निश्चित रुप से कह सकता हूं कि वे बिना आज्ञा किसी को दीक्षा नहीं देते। पहले आपको स्थिति की जांच करनी चाहिए थी। जयाचार्य के लाखों भक्त हैं। वे अपने गुरु के लिए प्राण देने में भी नहीं हिचकिचाएंगे। इससे एक पूरा समाज राज्यविरोधी हो जाएगा।

*क्या बहादुर मल जी नरेश को अपनी बात समझाने में कामयाब हुए...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः।

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 बिहार- नेपाल बॉर्डर से..

👉 बिना रास्तों की परवाह किये जन - जन तक सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति के संदेश देते हुए पूज्य प्रवर के बढ़ते कदम..

👉 आज के विहार के दुर्लभ दृश्य..

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👉 अहिंसा यात्रा आज पुनः होगा बिहार में प्रवेश
👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 14.5 किमी का विहार..
👉 आज का प्रवास - ठाकुरगंज
👉 आज के विहार के दृश्य..

दिनांक - 18/02/2017

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18 फरवरी का संकल्प

तिथि:- फाल्गुन कृष्णा सप्तमी

जीवनशैली का हिस्सा हो जब ध्यान-योग।
दूर रहते सब शारीरिक व मानसिक रोग।।

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