25.02.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 25.02.2017
Updated: 26.02.2017

Update

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 16 - तेरापंथ आदि से युक्त नाम व गुरुकुलवास व्यवस्था

*अहिंसा यात्रा* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....।

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*विशेष सुचना*

पूज्य प्रवर द्वारा आज एक पत्र के सम्बन्ध में विशेष घोषणा की गई। सम्पूर्ण जानकारी वीडियो में सुने।

दिनांक - 25-2-2017

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'

📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 223📝

*तेरापंथी श्रावक*

*66.*
*'चैन'* है बेचैन सुन आश्रव अजीव, नहीं-नहीं,
स्पष्ट यतिवर ने सभा में कहा, चैन सही कही।
क्या कभी भी भूल पाएं नाम 'गेरू-व्यास का,
प्रथम परिचय दिया तेरापंथ के विश्वास का।।

*अर्थ--* लोटोती गांव में खरतरगच्छ के श्रीपूज जीनचंद सूरि आए। वे उपाश्रय में प्रवचन देते थे। एक दिन प्रवचन में उन्होंने आश्रव को अजीव बताया। यह बात सुन तेरापंथी श्रावक चैनजी श्रीमाल बेचैन हो उठे। उन्होंने सभा में खड़े होकर कहा-- 'महाराज! आश्रव अजीव नहीं, जीव होता है।' श्रीपूजजी ने उस विषय की जानकारी की। चैनजी का कथन सही पाकर उन्होंने सभा में स्पष्ट कहा कि चैनजी की बात ठीक है।

गेरूलालजी व्यास आचार्य भिक्षु के प्रथम श्रावक थे। उन्होंने सबसे पहले तेरापंथ के प्रति अपने विश्वास का परिचय दिया। उनके नाम को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

*भाष्य*

*चैनरूपजी श्रीमाल*

चैन जी श्रीमाल लोटोती गांव के रहने वाले थे। वे श्रद्धालु और तत्त्वज्ञ श्रावक थे। उन्हें आचार्य भारीमालजी और आचार्य ऋषिरायजी की उपासना का अवसर मिला। एक बार लोटोती में खरतरगच्छ के श्रीपूज जिनचंद्र सूरि आए। वे उपाश्रय में व्याख्यान देते थे। एक दिन उन्होंने व्याख्यान में नवतत्त्व की व्याख्या करते हुए कहा-- 'आश्रव अजीव है।' चैनजी तत्त्व के जानकार थे। वे खड़े होकर बोले-- 'महाराज! आश्रव तो जीव है। आप उसे अजीव कैसे बतला रहे हैं?' सूरिजी ने उनके कथन का प्रतिवाद किया, किंतु चैन जी अपनी बात पर अडिग थे। सूरिजी ने कहा-- 'इस विषय में व्याख्यान के पश्चात बात करेंगे।' व्याख्यान संपन्न हुआ। बात आगे बढ़ी, पर कोई निष्कर्ष नहीं निकला। आखिर आगम देखकर निर्णय करने की बात कही गई।

सूरिजी ने चर्चावादी यतियों को बुला कर आगम देखने का निर्देश दिया। विद्वान यतियों ने गंभीरता से आगमों का निरीक्षण कर कहा-- 'सूत्र-न्याय के अनुसार आश्रव जीव ही ठहरता है। सूरिजी आत्मार्थी थे। उन्होंने तत्काल चैनजी को बुलाया उनके सामने स्वीकार किया कि आश्रव जीव है। अपने द्वारा किए गए असत्य प्रतिपादन के लिए उन्होंने *'मिच्छामी दुक्कडं'* स्वीकार किया। इतना ही नहीं, चैन जी की बात को गलत कहा, उसके लिए उन्होंने खमत खामणा भी किया।

श्रावक चैनजी सूरिजी की आत्मार्थिता और उदारता से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने भी चालू व्याख्यान में प्रश्न पूछने से हुए अविनय के लिए क्षमायाचना की। उसके बाद वे जाने के लिए उद्यत हुए तो सूरिजी बोले-- 'अभी तो औपचारिक बात हुई है, इस विषय का सारा स्पष्टीकरण तो कल व्याख्यान में ही करूंगा।' दूसरे दिन प्रातःकालीन परिषद में सूरिजी ने सारी बात का खुलासा करते हुए अपनी धारणा को गलत बताया और चैनजी की धारणा को सही स्वीकार किया। उन्होंने जनता के सामने पुनः चैनजी से 'खमतखामणा' किया। इस घटना से सूरिजी और चैनजी-- दोनों का महत्त्व बढ़ा। सूरिजी का आग्रह लोगों की चर्चा का विषय था तो चैनजी का पुष्ट तत्त्वज्ञान सबको आश्चर्य में डालने वाला था।

*आचार्य भिक्षु के प्रथम श्रावक गेरूलालजी व्यास* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः।

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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News in Hindi

👉 उत्तर हावड़ा - "टेक्नालॉजी का ज्ञान बनायेगा सशक्त समाज" कार्यशाला का आयोजन
👉 सिलीगुड़ी - श्रीमती भंवरीदेवी चोरडिया का संथारा परिसम्पन्न

प्रस्तुति -🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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आचार्य तुलसी की कृति...'श्रावक संबोध'

📕अपर भाग📕
📝श्रृंखला -- 224📝

*तेरापंथी श्रावक*

*गेरूलालजी (गोरूलालजी) व्यास*

गेरूलालजी व्यास जोधपुर के पुष्करणा ब्राह्मण थे। वे प्रारंभ से ही संत-समागम के रसिक थे। समय-समय पर वे जैन संतों के सान्निध्य से भी लाभ उठाते थे। बार-बार निकट संपर्क के कारण वे जैन तत्त्वज्ञान में भी रुचि लेने लगे। आचार्य भिक्षु ने धर्म क्रांति से पहले विक्रम संवत 1816 का चातुर्मास जोधपुर में किया। गेरूलालजी सर्वप्रथम उसी चातुर्मास्य में उनके संपर्क में आए। उनकी क्रांतिकारी अवधारणाओं से वे बहुत प्रभावित हुए। कुछ महीनों बाद आचार्य भिक्षु ने स्थानकवासी संप्रदाय से अभिनिष्क्रमण कर दिया। उसके बाद वे जोधपुर आए तो व्यासजी आदि कुछ लोगों ने उनका बहुत सहयोग किया। व्यासजी पर उनका इतना रंग चढ़ा कि परंपरा से ब्राह्मण होते हुए भी उन्होंने विधिवत् जैन धर्म स्वीकार कर लिया। उस समय जोधपुर के तेरह व्यक्ति आचार्य भिक्षु के भक्त बने, उनमें प्रथम पंक्ति में व्यासजी का नाम था। उन्होंने आचार्य भिक्षु द्वारा निरूपित श्रद्धा और आचार को इतनी गहराई से समझ लिया कि उसके बारे में लोग उनसे जानकारी लेने लगे।

तेरापंथ का नामकरण जोधपुर में हुआ। उस समय आचार्य भिक्षु वहां नहीं थे। उनसे समझे हुए श्रावक दुकानों में सामायिक आदि धार्मिक अनुष्ठान करने लगे। एक दिन सायंकाल जोधपुर राज्य के दीवान फतेहमलजी सिंघी बाजार से होकर कहीं जा रहे थे। उन्होंने श्रावकों को वहां देखा तो मन में जिज्ञासा उभरी। उन्होंने श्रावकों से वहां सामायिक करने का कारण पूछा। उस समय व्यासजी ने ही उनको आचार्य भिक्षु की धर्मक्रांति का पूरा विवरण सुनाया था।

मांडवी (कच्छ) के एक सनातनी मठ के महंत की संपत्ति पाली और जोधपुर में भी थी। उन दोनों स्थानों की देखरेख के लिए महंत जी ने गेरूलालजी को नियुक्त किया था। वहां की आय और व्यवस्था संबंधी कार्यों की सूचना देने के लिए उन्हें कई बार मांडवी जाना पड़ता था। आते-जाते समय वे अपना रात्रिकालीन प्रवास किसी जैन उपाश्रय या स्थानक में करते थे। वे वहां सामायिक करते और आचार्य भिक्षु द्वारा रचित श्रद्धा एवं आचार संबंधी गीतिकाओं का संगान करते। वहां जो लोग धर्मोपासना करते, उनके साथ तात्त्विक चर्चा शुरु कर देते। इस क्रम से उन्होंने अनेक गांव व शहरों में आचार्य भिक्षु का संदेश पहुंचा दिया। उनसे तत्त्व समझकर अनेक व्यक्ति सुलभबोधी और सम्यक्त्वी बने। उनके इस कर्तृत्व के आधार पर यह कहा जा सकता है कि व्यासजी तेरापंथ के प्रथम श्रावक थे और सुदूर प्रदेशों में तेरापंथ का परिचय देने वाले श्रावकों में भी प्रथम थे।

*धर्मसंघ के प्रति समर्पण का बोधपाठ सीखने के लिए रीड़ी के संतोकचंदजी सेठिया की घटना* के बारे में पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः।

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 12.7 किमी का विहार..

👉 आज का प्रवास -बैरगाछी

👉 आज के विहार के दृश्य..

दिनांक - 25/02/2017

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👉 जोकिहाट (बिहार) से....
👉 पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमण की आज प्रातः की मोहनीय मुद्रा..

दिनांक: 25/02/2017

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25 फरवरी का संकल्प

तिथि:- फाल्गुन कृष्णा चतुर्दशी

मिट्टी, पानी, हवा, वनस्पति सब में है असंख्य जीव व्याप्त।
ना हो अनावश्यक हिंसा किसी भी जीव की रखें ध्यान पर्याप्त।।

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  1. आचार्य
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