28.02.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 28.02.2017
Updated: 01.03.2017

Update

Exclusive @ #Kunthalgiri ⚠️भगवान कुलभूषण, देशभूषण जी की मोक्ष स्थली तथा चरित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी की समाधि स्थली सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरी में कुलभूषण, देशभूषण भगवान के आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज दर्शन करते हुए अनुपम द्रश्य #AcharyaVardhmansagar #AcharyaShantisagar #KulbhushanDeshbhushan

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Pravachan from #Bina_Barah जब भी समय हो, कुछ ऐसा करते जाओ जिससे पुण्य बढ़ता जाए और कर्म का बंधन कम होता जाए -आचार्य श्री विद्यासागर जी #AcharyaVidyasagar

उत्साह और उमंग में उम्र का कोई बंधन नहीं होता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कौन सा कार्य करने योग्य है और कौन सा नहीं। यानी कर्म और अकर्म में भेद करने का विवेक हर व्यक्ति के पास होना चाहिए। जिंदगी में जो करने योग्य कार्य नहीं थे, वे भी कर डाले। अब कर्म बंध गए हैं। हमें हर सांस पर खुद को संभालना चाहिए। कोई भी कार्य ऐसा न हो जाए, जिससे कर्म का बंधन बंध जाए।

दृव्य का स्वभाव परिगमनशील है। वह रुकता नहीं है। समय यदि आपको मिला है तो समय को बांधकर समय के अनुसार चलें। इससे आप अपनेआप को श्रेष्ठ बना सकते हैं। समय को न तो व्यर्थ बर्बाद करना चाहिए और ही इसका दुरुपयोग करना चाहिए। यदि ये एक बार निकल जाता है तो कभी लौटकर नहीं आता है। जब भी समय हो, कुछ ऐसा करते जाओ जिससे पुण्य बढ़ता जाए और कर्म का बंधन कम होता जाए।

- आचार्य श्री विद्यासागर जी

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News in Hindi

कर्म रूपी दलदल के बीच उगे हुए कमल रूपी आत्मा को 3 रत्नों के समायोजन से मोक्ष की राह दिखाने वाले अरिहंत द्वारा कहे गए जिन धर्मं तथा उनकी जीवंत प्रतिकृतियों को समर्पित पेज @ 60,000 LIkes!! @ Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt

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Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt
आचार्य श्री विद्यासागर जी -De facto follower of Jainism who believes into Rational Perception, Rational Knowledge and Rational Conduct (united)

पश्चाताप @ चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागर जी तथा पंडित सुमेरु चाँद दिवाकर जी #AcharyaShantiSagar

लेखक दिवाकरजी पूर्व समय में उनके द्वारा गलत संगति में पूज्य शान्तिसागरजी महराज की चर्या की परीक्षा का जो भाव था उसके संबंध में लिखते हैं कि ह्रदय में यह भाव बराबर उठते थे कि मैंने कुसंगतिवश क्यों ऐसे उत्कृष्ट साधु के प्रति अपने ह्रदय में अश्रद्धा के भावों को रखने का महान पातक किया? संघ में अन्य सभी साधुओं का भी जीवन देखा, तो वे भी परम पवित्र प्रतीत हुए।

मेरा सौभाग्य रहा जो मैं आचार्यश्री के चरणों में आया और मेरा दुर्भाव तत्काल दूर हो गया। मेरे कुछ साथी तो आज भी सच्चे गुरुओं के प्रति मलिन दृष्टि धारण किए हुए हैं: 'बुद्धिः कर्मानुसारीणी' खराब होनहार होने पर दृष्टि बुद्धि होती हैं। उस समय कटनी में महराज की तपश्चर्या बड़ी प्रभावप्रद थी। संघ के सभी साधु ज्ञान और वैराग्य की मूर्ति थे। धार्मिकों के लिए तो वे अतुल्य लगते थे। आचार्यश्री कम बोलते थे, किन्तु जो बोलते थे, वह अधिक गंभीर तथा भावपूर्ण रहता था।

पूजन, भजन, तत्वचर्चा, धर्मोपदेश में दिन जाते पता नहीं चला। वर्षायोग समाप्ति का दिन आ गया। अब कल संघ का कटनी से विहार होगा, इस विचार से लोगों के ह्रदय पर वज्राघात-सा होता था। कितनी शांति, सुख, संतोषपूर्वक समय व्यतीत हुआ, इनकी घर-घर में चर्चा होती थी।

*🌿 स्वाध्याय चा.चक्रवर्ती ग्रंथ का 🌿*

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