21.03.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 21.03.2017
Updated: 23.03.2017

Update

👉 कोलकत्ता: श्रीमती मोहिनी देवी गिडिया का "चोविहार संथारा" परिसम्पन्न
*🌿तेरापंथ संघ संवाद🌿*

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👉 आज के मुख्य प्रवचन के कुछ विशेष दृश्य..
👉 गुरुदेव मंगल उद्बोधन प्रदान करते हुए..
👉 प्रवचन स्थल: राणी सती मंदिर, "मुज्फ्फपुर" में..

दिनांक - 21/03/2017

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻

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Update

👉 बनभेड़ी: जीवन में मूल्यों का विकास विषय पर दिल्ली पब्लिक स्कूल (D.P.S.) में कार्यक्रम का आयोजन
👉 रायपुर - GST पर सेमिनार आयोजित
👉 बंगोमुंडा - स्वागत एवं अभिनन्दन समारोह आयोजित
👉 नागपुर - रजत जयंती दिवस एवं "क्या नारी वास्तव में सशक्त है " विषय पर प्रतियोगिता
👉 बाड़मेर - आवो चले गांव की ओर कार्यक्रम आयोजित

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*श्वास और ह्रदय*

श्वास से प्रश्वास को दुगुना या चौगुना करके श्वसन को नियंत्रित किया जा सकता है । इससे मस्तिष्क को विश्राम या शिथिलीकरण प्राप्त होता है क्योंकि श्वास बाहर छोडने में किसी भी प्रकार का मांसपेशीय तनाव नही पडता । ह्रदय दर इसमें स्वभावतः निम्न रहती है । इस प्रकार श्वसन के अभ्यास से कालान्तर में मस्तिष्कीय तरंगे प्रभावित होती है जिससे शरीर के अन्य अंग व प्रणालियां भी प्रभावित होती है ।

21 मार्च 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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News in Hindi

👉 दिल्ली - स्वर्ण जयंती के अवसर पर तेयुप द्वारा सेवा कार्य
👉बोकारो - ज्ञानशाला प्रारभ्भ
👉तिरुवत्तियुर - ज्ञानशाला निरिक्षण
👉 चेन्नई - ड्राइंग कॉम्पिटिशन
👉 चेन्नई - जीवन विज्ञान और प्रेक्षाध्यान कक्षा का आयोजन
👉 सिलीगुड़ी: "नशा घटे दुर्घटना हटे" विषयक कार्यशाला का आयोजन
👉 फरीदाबाद - कार्यकर्ता -व्यक्तित्व विकास कार्यशाला:कैसे बनाएं संतुलन
👉 उतर हावडा - महिला मंडल द्वारा विभिन्न कार्यक्रम आयोजित
👉 मनली - ज्ञानशाला निरिक्षण

प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 34 - *क्षेत्रीय समाचार एवं सूचना विज्ञप्ति*

*कैसेट सी.डी. आदि* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 9* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*श्रमण-सहस्रांशु आचार्य सुधर्मा*

*जन्म एवं परिवार*

सुधर्मा का जन्म विदेह प्रदेशांतर्गत कोल्लाग सन्निवेश के ब्राह्मण परिवार में वी. नि. पूर्व 80 (वि. पू. 550, ई. पू. 607) में हुआ। उनका गोत्र अग्नि वेश्यायन था। उनके पिता का नाम धम्मिल और माता का नाम भद्दिला था।

*जीवन-वृत्त*

ब्राह्मण सुधर्मा अपने युग के प्रकांड विद्वान थे। वैदिक दर्शन का उन्हें अगाध ज्ञान था। चतुर्दश विद्याओं पर उनका आधिपत्य था। ब्राह्मण समाज पर उनका प्रभाव था। वे पांच सौ छात्रों के शिक्षक थे।

*श्रमण-भूमिका में प्रवेश*

ब्राह्मण सुधर्मा श्रमण शिक्षा ग्रहण कर गणधर बने। जैन शासन में तीर्थंकरों के बाद सर्वोच्च पद गणधर का होता है। गणधर अतुल बल संबंध एवं उत्कृष्ट ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप के धनी होते हैं। उनमें असाधारण क्षमताएं होती हैं। गणधरों की शरीर संपदा भी सामान्य मनुष्यों से अतिरिक्त होती है। देवों की समस्त रूप संपदा तीर्थंकरों के एक नख में समाहित हो जाती है। गणधरों की रूप संपदा तीर्थंकरों से किञ्चिन्न्यून एवं आहारक शरीरी, चक्रवर्ती आदि अन्य सबसे विशिष्ट होती है।

सुधर्मा गणधर थे। उनके शरीर की ऊंचाई सात हाथ की थी। समचतुरस्र संस्थान था। वज्रऋषभनाराच संहनन था। सुंदर और सुगठित उनकी काया सुतप्त स्वर्ण की भांति कांतिमान थी। शरीर का वर्ण रक्ताभगौर था।

ब्राह्मण सुधर्मा का जैन श्रमण भूमिका तक पहुंचने का इतिहास रोचक है। सर्वज्ञत्वोपलब्धि के बाद श्रमण भगवान् महावीर एक बार जंभियग्राम से मध्यमा पावापुरी पधारे। महासेन उद्यान में ठहरे। उसी नगर में सोमिल ब्राह्मण महायज्ञ कर रहा था। उन्नत, कुलोत्पन्न वेद-विज्ञ ग्यारह विद्वान (गणधर) गोब्बर ग्रामवासी गौतम गोत्रीय वसुभूति के पुत्र इंद्रभूति, अग्निभूति, वायुभूति, कोल्लाग सन्निवेशवासी भारद्वाज गोत्रीय धनमित्र के पुत्र व्यक्त, अग्नि वैश्यायन गोत्रीय धम्मिल के पुत्र सुधर्मा, मौर्य सन्निवेशवासी वाशिष्ठ गोत्रीय धनदेव के पुत्र मण्डित, काश्यप गोत्रीय मौर्य के पुत्र मौर्यपुत्र, मिथिलावासी गौतम गोत्रीय देव के पुत्र अकम्पित, कौशलवासी हरितगोत्रीय वसु के पुत्र अचलभ्राता, वत्स देश तुङ्गीय सन्निवेशवासी कौंडिण्य गोत्रीय दत्त के मेतार्य, राजगृहवासी कौंडिण्य गोत्रीय बल के पुत्र प्रभास ये सभी सोमिल ब्राह्मण के यज्ञानुष्ठान के लिए वहां आए थे। उनके साथ चवालिस सौ शिष्य थे। सभी विद्वानों का गर्व आकाश को छू रहा था। समग्र ज्ञानसिंधु पर वे अपना एकाधिपत्य मानते थे। समाज, राजनीति, तर्क, न्याय, ज्योतिष, दर्शन, अध्यात्म, धर्म, विज्ञान, कला और साहित्य किसी भी विषय पर उन से लोहा लेने वाला कोई भी व्यक्ति उनकी दृष्टि में नहीं था।

*जब उन्होंने अपार जन समूह को महावीर की ओर बढ़ते हुए देखा तो क्या हुआ...?* यह जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 9📝

*आचार-बोध*

*शीलरक्षा*

लय- देव! तुम्हारे...

*26.*
स्थान विजन हो काम-कथा-वर्जन
आसन का संयम हो।
आंखों का कानों का संयम,
स्मृति का संयम सक्षम हो।।

*27.*
सरस और अतिमात्र अशन न करे
न विभूषाभाव भजे।
बने न विषयासक्त व्यक्त दसविध
विधान से शील सझे।।

*6. शीलरक्षा-ब्रह्मचर्य समाधि के दस स्थान--*

*1.विजन स्थान-* स्त्री, पशु और नपुंसक से आकीर्ण शयन और आसन का वर्जन।

*2. काम कथा वर्जन-* केवल स्त्रियों के बीच कथा नहीं करना, वासनावर्धक कथा नहीं करना।

*3. आसन-संयम-* स्त्रियों के साथ पीठ आदि एक आसन पर नहीं बैठना।

*4. चक्षु-संयम-* स्त्रियों की मनोहर और मनोरम इंद्रियों को वासना की दृष्टि से नहीं देखना, उनके विषय में नहीं सोचना।

*5. श्रुति-संयम-* स्त्रियों के कामोत्तेजक शब्द, गीत हास्य आदि को नहीं सुनना। दीवार, परदे आदि के अंतर से भी नहीं सुनना।

*6. स्मृति-संयम-* गृहवास में की हुई रति और क्रीड़ा का स्मरण नहीं करना।

*7. सरस भोजन संयम-* प्रणीत--घी-तेल आदि झरते हुए गरिष्ठ भोजन का सेवन नहीं करना।

*8. अतिमात्र भोजन-* मात्रा से अधिक भोजन नहीं करना।

*9. विभूषावर्जन-* शरीर को नहीं सजाना।

*10. विषयासक्तिवर्जन-* शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श में आसक्त नहीं होना।

ब्रह्मचर्य की साधना की दृष्टि से पुरुष के लिए स्त्री का प्रसंग वर्जित है। इसी प्रकार स्त्री के लिए पुरुष का प्रसंग वर्जित समझना चाहिए।
(उत्तरज्झायणाणि अ. 16/3-12)

*संयम से सत्रह प्रकार* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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21 मार्च का संकल्प

तिथि:- चैत्र कृष्णा अष्टमी

मैली होती आत्मा पड़ती जब-जब कर्मों की छाया।
अब तो है इसे उजलाना मनुष्य जीवन हमनें है पाया।।


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  1. आचार्य
  2. ज्ञान
  3. दर्शन
  4. दस
  5. महावीर
  6. श्रमण
  7. स्मृति
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