28.03.2017 ►STGJG Udaipur ►SL Ban Lekh

Published: 28.03.2017

News in Hindi

कत्लखानों पर अंकुष अभिनंदनीय 

    - डाॅ. दिलीप धींग

युवा राजनेता योगी आदित्यनाथ ने 19 मार्च 2017 को उŸारप्रदेष के मुख्यमंत्री की शपथ ली। अगले ही दिन से उन्होंने अपने राज्य में विभिन्न व्यवस्थाओं में सुधार हेतु अनेक अच्छे कदम उठाने शुरू किये। उनके अच्छे कदमों में एक है - यांत्रिक तथा अवैध (गैर-कानूनी) बूचड़खानों और मांस की दुकानों को बन्द करवाना। उन्होंने अधिकारियों को प्रदेषभर में बूचड़खाने बन्द करने की कार्य-योजना (एक्षन-प्लान) तैयार करने के निर्देष दिये हैं। उन्होंने गौ-तस्करी पर पूर्ण पाबन्दी के निर्देष भी दिये हैं। मौजूदा हिंसामय परिवेष में उŸारप्रदेष के मुख्यमंत्री का यह महŸवपूर्ण और साहसिक निर्णय है।

    उŸारप्रदेष में भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में तथा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावी रैलियों में यह वादा किया था कि भाजपा की सरकार बनने पर उŸारप्रदेष में यांत्रिक तथा अवैध बूचड़खानों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जायेगा। प्रदेष में शासन की बागडोर संभालने वाले योगी आदित्यनाथ ने वादे के अनुसार यांत्रिक व अवैध बूचड़खानों खिलाफ मुहिम छेड़ दी है। अब तक दर्जनों छोटे-बड़े बूचड़खानों, मांस प्रक्रिया इकाइयों और मांस की दुकानों को मुख्यमंत्री के आदेष से बन्द कर दिया गया है। संभवतः पहली बार किसी प्रदेष के मुख्यमंत्री ने निर्दोष प्राणियों की चीखों और चीत्कारों को इतनी संवेदनषीलता से सुना है तथा मूक प्रजा पर होने वाले अन्तहीन अत्याचारों का अन्त करने की शुरूआत की है।

    कुछ ‘विकासवादी’ कहलाने वाले लोग आदित्यनाथ की इस अच्छी पहल के कथित नुकसान गिनाने लग गये हैं। उन्हें बूचड़खानों से होने वाले अनाप-षनाप भयावह नुकसान दिखाई नहीं देते हैं। देषभर में वर्षें से संचालित हजारों अवैध बूचड़खानों के विरुद्ध भी उन लोगों ने कभी कुछ नहीं कहा। समाज में भी अन्य मुद्दों पर तो वैधता और अवैधता की काफी समीक्षाएँ देखने-पढ़ने को मिलती है, लेकिन पषु-पक्षियों के बेहिसाब अवैध कत्ल के बारे में वैसी मुखरता और प्रखरता कम ही देखने में आती है। वैसे ‘कुदरत के कानून’ में कोई बूचड़खाना वैध नहीं होता है।

    यह वक्त है कि सबको इस करुणामय व पर्यावरण-हितैषी कदम का समर्थन करना चाहिये। सभी धर्मों के गुरुओं, सामान्य और विषिष्टजनों को भी मूक प्राणियों की आवाज बनना चाहिये। जो लिख सकते हैं, उन्हें पषु-पक्षियों के जीने के अधिकार के पक्ष में अपनी कलम चलानी चाहिये। निरीह पषु-पक्षियों की रक्षा का कोई भी कदम, कानून या अभियान हमेषा सर्वथा गैर-राजनीतिक होता है। क्योंकि पषु-पक्षी मतदाता (वोटर) नहीं होते हैं। पषु-पक्षी कभी कोई आन्दोलन, धरना, तोड़-फोड़ या कोई मांग नहीं करते हैं। वे प्रकृति के अनुसार जीते हैं। किसी से कुछ नहीं लेते हैं। स्वाभाविक तौर पर जो कुछ लेते हैं उसके बदले में कई गुना अधिक देते हैं। उनके होने से ही धरती का पर्यावरण स्वच्छ रहता है।

    बूचड़खाने स्वच्छता के अव्वल दर्जे के दुष्मन होते हैं। बूचड़खानों ने स्वच्छ सुन्दर वातावरण तथा पारिस्थितिकी सन्तुलन को बिगाड़कर रख दिया है। विभिन्न घातक बीमारियाँ, ग्लोबल वार्मिंग तथा जल की बर्बादी का एक बड़ा कारण मांस-उत्पादन, मांस-व्यापार और मांसाहार है। अर्थतंत्र की दृष्टि से भी बूचड़खाने बेहद नुकसानकारी होते हैं। समाज में फैलती क्रूरता, हिंसा, दुराचार तथा अनेक समस्याओं की जड़ में क्रूरता से पैदा हुआ वह भोजन भी है, जो पषु-पक्षियों को तड़पा-तड़पाकर, मारकर प्राप्त किया जाता है। देष-दुनिया के अनेक विचारक और वैज्ञानिक इस तथ्य को स्वीकार करते हैं। अनेक वैज्ञानिक शोध-निष्कर्षों में भी कत्लखानों तथा मांसाहार से होने वाले विभिन्न प्रकार के दुष्परिणामों को बताया गया है। वस्तुतः पषु-पक्षियों के वध का निषेध केवल करुणा का ही विषय नहीं है, अपितु यह एक नीतिपूर्ण और मानवीय जीवनषैली का विषय भी है।

    अनेक समीचीन दृष्टियों से उŸारप्रदेष में अटल निष्चय के साथ कत्लखानों पर रोक लगाना एक सराहनीय कदम है। अन्य राज्यों में भी बूचड़खानों तथा पषु-पक्षियों के वध पर रोक लगाई जानी चाहिये। यह शुभ है कि 23 मार्च 2017 को उŸारप्रदेष के पड़ोसी राज्य बिहार के पषुपालन मंत्री अवधेषकुमार सिंह ने बिहार में चल रहे अवैध बूचड़खानों के खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई का निर्देष दिया है। अन्य राज्यों में, देषभर में बेरोक-टोक चलने वाले अवैध बूचड़खानों पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये। केन्द्र सरकार से निवेदन है कि वह भी इस दिषा में राज्यों को निर्देष जारी करे। इस सम्बन्ध में मीडिया और समाज की जागरूकता शासन और प्रषासन को अधिक सक्रिय बना सकती है।

    इतिहास साक्षी है कि भारत में अषोक, विक्रमादित्य और कुमारपाल जैसे अनेक कुषल शासकों ने प्रकृति और संस्कृति की रक्षा के लिए पषु-पक्षियों की हत्याओं पर रोक लगा दी थी। गुर्जर नरेष कुमारपाल ने तो उनके अधीनस्थ सभी अठारह प्रदेषों को वधषाला-मुक्त कर दिया था। शान्ति, सुरक्षा, समृद्धि और सर्वांगीण विकास की दृष्टि से उनका शासनकाल स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। अकबर ने भी वध-निषेध के फरमान जारी किये थे। मौजूदा वक्त में भी देष में अहिंसा को राज्याश्रय प्रदान करना बेहद जरूरी है। योगी आदित्यनाथ के सुधारवादी फैसले भारत की अहिंसामय पावन संस्कृति का अभिनन्दन हैं।

    निदेशक: अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र

    सुगन हाउस, 18, रामानुजा अय्यर स्ट्रीट,

    साहुकारपेट, चेन्नई-600001

Sources

Source: © FacebookPushkarWani

Shri Tarak Guru Jain Granthalaya Udaipur
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Sthanakvasi
        • Shri Tarak Guru Jain Granthalaya [STGJG] Udaipur
          • Institutions
            • Share this page on:
              Page glossary
              Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
              1. Guru
              2. Shri Tarak Guru Jain Granthalaya Udaipur
              3. Udaipur
              4. बिहार
              Page statistics
              This page has been viewed 276 times.
              © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
              Home
              About
              Contact us
              Disclaimer
              Social Networking

              HN4U Deutsche Version
              Today's Counter: