29.03.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 29.03.2017
Updated: 30.03.2017

Update

जो कृपा गुरुवर की देखी, आकाश मुझे छोटा लगता |
हैं चाँद सितारे सब बौने, जो समवशरण उनका दिखता |
महावीर छवि जिनमे बसती, करुणा का सागर लहराता |
ऐंसे विद्यासिन्धु को पा, यह युग खुद पर है इठलाता |

💐💐💐 - जैन ब्रजेश सेठ, पाटन

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#share_maximum -दिगम्बर साधु कपड़े क्यूँ नहीं पहनते? नंगे होना ओर दिगंबर रहना में क्या फ़र्क़ हैं? कोई non-Jain भाई पूछे तो यह कहना... #मुनि_प्रमाणसागर

उत्तरप्रदेश में बूचड़खानों को बंद करवा कर जो #योगीजी ने जीवो के रक्षा की है उसके लिए C.M. #Yogiji का संपूर्ण जैन समाज दिल से आभार व्यक्त करता है. हम आपके बहुत बहुत आभारी है और यही चाहते है की आप जीव रक्षा के लिए और सख्त कदम उठाये। #अहिंसापरमोधर्म

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News in Hindi

#रणथंभोर #अभ्यारण मुनि पुंगव श्री #सुधासागर जी महाराज -पुनः इतने वर्षों बाद ऐसा मौका था जब जिन धर्म प्रभावक जगत पूज्य मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज अपने संघ सहित रणथंभोर के जंगल में पहुचे तो जंगल के रहने वाले प्रत्येक जीव मुनि श्री के दर्शन एवं आगवानी करने मौजूद रहे ||

पहली बार मुनि श्री के चरण जब रणथंभोर में पड़े थे तब से अब तक इतने वर्षों में जो नये जीव पैदा हुए है थे उन्होंने पहली बार मुनि दर्शन किये थे और वो अपनी माँ से कोतुहल वश पूछ रहे थे कि ये आख़िर हे कोन जो बालक वत रहते हुए अपनी यौवनावस्था में समाज के बीच सिंह के समान निर्भीकता से चले आ रहे है, तब बच्चों को समझाते हुए माता ने कहाँ बेटा ये जैन मुनि है जिनकी चर्या को आज सारे संसार के लोग उनके त्याग के कारण नमस्कार करते है ये संत अपने शरीर के प्रति भी राग नही रखते और अपने ही हाथों अपने केशो को निकाल कर केशलोंच करते है अपने पास तिल तुश मात्र भी परिग्रह नही रखते इसिलए बगैर कपड़ो के दिगम्बर अवस्था में रहते है इनका संसार के प्रत्येक जीवो के प्रति प्रेम भाव होता है ये भाव से भी किसी को नही सताते बल्कि चलते समय भी चार हाथ आगे रहने वाले सूक्षम से सूक्ष्म जीव को भी बचाते हुए चलते है

इनके हाथों में नारियल का कमंडल और जो मयूर पिच्छिका दिखाई दे रही है वही इनके आवश्यक उपकरण है यह मयूर पिच्छिका जीवो को बचाने में उपयोग आती है यह इतनी नर्म और मुलायम होती है कि इससे सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव भी नही मरते है और सबसे खाश बात है कि यह मयूर पिच्छिका भी अपने ही जंगल में रहने वाली मयूर अत्यन्त खुश होने पर छोड़ देती है जिनसे बना होने पर पूर्णता शाकाहारी है तभी छोटे छोटे सावको का एक समूह जिसमे हिरण, बारहसिंघा,जंगली सूकर, जंगली भैंसा, छोटा भालू, बकरी, भेड़,गधे के साथ साथ बंदरो की टोली भी यहां वहा घूमते देख महाराज जी ने भी बड़े ही करुणा भाव से सबको आशीष दिया और उद्बोधन स्वरुप उन्हें सदा एक दूसरे के संग प्रेम से रहने की प्रेरणा दी।

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