11.04.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 11.04.2017
Updated: 11.04.2017

Update

*श्री सुरेंद्र सुराणा ने परम श्रद्धेय आचार्य प्रवर से सिरियारी चुनाव 2016 के संदर्भ में हुई आशातना के लिए क्षमायाचना करते हुए सिरियारी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया।*

*परम पूज्य आचार्यप्रवर ने उनपर कृपा करते हुए 14 नवम्बर 2016 के अपने आदेश को निरस्त कर श्री सुरेन्द्र सुराणा को पुनः तेरापंथ धर्मसंघ में सम्मलित किया।*

🌻 तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

👉 *तेरापंथ के दशम अनुशास्ता आचार्य श्री महाप्रज्ञ के अष्ठम महाप्रयाण दिवस पर आयोजित होगा भव्य कार्यक्रम*

👉 *कार्यक्रम में उपस्थिति हेतु सादर आमंत्रण*

👉 22 अप्रैल को आयोजित होंगे कार्यक्रम -
🔹 सामायिक एवं जप - प्रातः 5:30 से 6:30 तक
🔹श्रद्धार्पण समारोह - प्रातः 9:30 से 11:00 तक
🔹 धम्म जागरण - सांय 7:30 से

प्रसारक - *तेरापंथ संघ संवाद*

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Update

*2616 वां महावीर जयंती समारोह पर देश भर में आयोजित विभिन्न कार्यक्रम* -

👉 कूचबिहार
👉 रतनगढ़
👉 राजलदेसर
👉 मंडी आदमपुर
👉 श्री डूंगरगढ़
👉 विजयनगरम्

👉जींद
👉 मुदीगेरे (कर्नाटक)
👉 विजयनगर (बैंगलोर) - नशा मुक्ति अभियान एवं सफाई अभियान का आयोजन
👉 बैंगलोर - एक शाम प्रभु महावीर के नाम

प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
09 -04 -2017

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 27📝

*आचार-बोध*

*19. आशातना*

आशातना का अर्थ है अशिष्ट व्यवहार। आय का अर्थ है सम्यग् दर्शन आदि की प्राप्ति और शातना का अर्थ है विनाश। जो आय का नाश करती है, वह आशातना है। इसके 33 प्रकार हैं। व्यवहार बदलते रहते हैं। इस दृष्टि से जिन 33 व्यवहारों का यहां उल्लेख है, उनमें से कई व्यवहार बदल जाने से कुछ आशातनाएं कृतार्थ हो गई हैं। जानकारी के लिए उन सबको यहां अविकल रूप से दिया जा रहा है--

*1.* शिष्य का गुरु से सटकर चलना।

*2.* शिष्य का गुरु से आगे चलना।

*3.* शिष्य का गुरु के समपार्श्व में (बराबर) चलना।

*4.* शिष्य का गुरु से सटकर खड़े रहना।

*5.* शिष्य का गुरु से आगे खड़े रहना।

*6.* शिष्य का गुरु के समपार्श्व में खड़े रहना।

*7.* शिष्य का गुरु से सटकर बैठना।

*8.* शिष्य का गुरु से आगे बैठना।

*9.* शिष्य का गुरु के समपार्श्व में बैठना।

*10.* गुरु के साथ शौचभूमि जाकर शिष्य द्वारा पहले शौच करना।

*11.* शौचभूमि या स्वाध्यायभूमि से साथ-साथ आने पर भी शिष्य द्वारा पहले गमनागमन विषयक आलोचना करना।

*12.* कौन सो रहा है और कौन जानता है? गुरु द्वारा ऐसा पूछने पर जागृत होने पर भी शिष्य द्वारा प्रश्न का उत्तर नहीं देना।

*13.* गुरु किसी आगंतुक व्यक्ति को जो बात कहना चाहें, उसे गुरु से पहले ही उसको कह देना।

*14.* आहार, पानी आदि लाकर शिष्य द्वारा पहले छोटे साधुओं के पास आलोचना कर फिर गुरु के पास आलोचना करना।

*15.* आहार, पानी आदि लाकर शिष्य द्वारा पहले छोटे साधुओं को दिखाकर फिर गुरु को दिखाना।

*16.* आहार, पानी आदि लाकर शिष्य द्वारा पहले छोटे साधुओं को निमंत्रित कर फिर गुरु को निमंत्रित करना।

*17.* शिष्य द्वारा भिक्षा में प्राप्त आहार आदि गुरु से पूछे बिना ही जिस किसी को दे देना।

*18.* गुरु के साथ सहभोजन की स्थिति में शिष्य द्वारा मनोज्ञ आहार जल्दी-जल्दी खा लेना।

*19.* गुरु के शिक्षा वचनों को सुना-अनसुना कर देना।

*20.* गुरु के सामने उद्दंडतापूर्वक बोलना।

*21.* गुरु के सामने 'क्या है' ऐसे उपेक्षापूर्ण वचन बोलना।

*22.* गुरु के सामने 'तू' 'तुम' ऐसे शब्दों का प्रयोग करना।

*23.* गुरु शिष्य को किसी कार्य का निर्देश दे, उसी भाषा में प्रत्युत्तर देना, जैसे-- 'आर्य! ग्लान की सेवा क्यों नहीं करते? यह बात सुन शिष्य कहे- 'तुम क्यों नहीं करते?'

*24.* गुरु की धर्मकथा का अनुमोदन नहीं करना।

*25.* धर्मकथा करते समय गुरु से कहना- यह बात आपको याद नहीं है।

*26.* गुरु की धर्मकथा का विच्छेद करना।

*27.* धर्मकथा कहते समय गुरु की धर्मसभा को भंग करना।

*28.* गुरु द्वारा की गई धर्मकथा को उसी परिषद में दोहराना।

*29.* गुरु के पट्ट आदि से पैर लगाने पर उन्हें अनुज्ञापित नहीं करना, उनसे क्षमा नहीं मांगना।

*30.* गुरु के शय्या, संस्तारकआदि पर खड़ा होना, बैठना और सोना।

*31.* गुरु से ऊंचे आसन पर खड़ा होना, बैठना और सोना।

*32.* गुरु के बराबर आसन पर खड़ा होना, बैठना और सोना।

*33.* गुरु द्वारा कुछ कहने पर अपने आसन पर बैठे-बैठे ही उसे स्वीकार करना, उसका प्रत्युत्तर देना।

(समवाओ 33/1)

*तपाचार व वीर्याचार* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 27* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*ज्योतिपुञ्ज आचार्य जम्बू*

*समकालीन राजवंश*

जम्बू ने दीक्षा ली उस समय मगध पर श्रेणिक पुत्र कोणिक एवं अवंती पर चण्डप्रद्योत-पुत्र पालक का शासन था। जम्बू के आचार्य-काल में राज सत्ताएं बदल गईं। नरेश कोणिक का देहावसान आचार्य सुधर्मा के शासनकाल में ही हो गया था। जम्बू के आचार्यकाल में मगध पर उदायी का शासन था। कोणिक की भांति उदायी भी जैनधर्म के प्रति गहरा निष्ठावान था। उदायी का देहावसान पौषध वी. नि. 60 में (वि. पू. 410) में हुआ था। इस समय आचार्य जम्बू के काल के 40 वर्ष हो गए थे। नरेश उदायी के संतान न होने के कारण इस समय मगध पर शिशुनागवंशी शासकों की सत्ता डगमगा गई। जम्बू के निर्वाण के 4 वर्ष पूर्व की घटना है। मगध के राजा का चयन करने के लिए मंत्रीगण की सलाह से हथिनी को घुमाया गया। मस्त चाल से चलती हुई हथिनी ने नापित पुत्र नंद के गले में वरमाला डाली। तीन शतक से भी अधिक समय तक शिशु नागवंशी शासकों द्वारा संचालित मगध का राज्य नंदवंश के हाथ में आ गया। अवंती पर उस समय अवंतिवर्धन का शासन था।

अवंती नरेश पालक के दो पुत्र थे अवंतिवर्धन और राष्ट्रवर्धन। पिता पालक ने अपने शासनकाल के बीसवें वर्ष में उत्तराधिकार पद पर ज्येष्ठ पुत्र अवंतिवर्धन की एवं युवराज पद पर अपने द्वितीय पुत्र राष्ट्रवर्धन की नियुक्ति कर अपने राज्य को व्यवस्थित किया। उसके बाद नरेश पालक ने मुनि दीक्षा ग्रहण की।

अवंतिवर्धन के शासनकाल में अवंती राज्य में भारी उतार-चढ़ाव आए। नरेश अवंतिवर्धन राष्ट्रवर्धन की पत्नी धारिणी के सौंदर्य पर मुग्ध हो गया। अवंतिवर्धन ने राष्ट्रवर्धन को अपने मार्ग में बाधक समझकर मरवा दिया। धारिणी अपनी इज्जत बचाने के लिए जैन श्रमणी बन गई। अपना उत्तराधिकार राष्ट्रवर्धन के पुत्र अवन्तिसेन को सौंप अवंतिवर्धन ने भी मुनि दीक्षा ग्रहण की।

इस समय कौशांबी का शासक नरेश अजीतसेन था। अजितसेन के बाद नरेश मणिप्रभ ने कौशांबी राज्य का संचालन किया। मणिप्रभ और अवंतिसेन दोनों सहोदर थे एवं राष्ट्रवर्धन के पुत्र थे।

ये तीनों अपने युग के प्रभावी राजवंश थे। इन तीनों में मगध का राजवंश अधिक प्रसिद्ध था। भगवान महावीर और निर्ग्रंथ धर्म के प्रति इन राजवंशो की गहरी आस्था थी।

एक बार आचार्य सुधर्मा की मुनि मंडली में युवा मुनि जम्बू की तेजस्वी एवं सौम्याकृति को देखकर कोणिक ने प्रश्न किया आचार्यवर! ये मुनि कौन हैं? नरेश कोणिक की जिज्ञासा के समाधान में सुधर्मा ने जम्बू का परिचय दिया।

जम्बू की दीक्षा के समय मगधाधीपति कोणिक का होना, अष्टमी, चतुर्दशी को उदायी द्वारा पौषध-व्रत की आराधना तथा अवंतिवर्धन का एवं राष्ट्रवर्धन की पत्नी धारिणी का जैन-शासन में दीक्षित आदि प्रसंग राजवंशों में जैन संस्कारों के प्राबल्य के उदाहरण हैं।

*अंतिम केवली जम्बू को केवल्य प्राप्ति व उनके जीवन के समय-संकेतों* के बारे में विस्तार से जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*प्राण केन्द्र --[ 3 ]*

नाक ध्राणेन्द्रिय है । इसके द्वारा गंध का संवेदन होता है । मस्तिष्क का एक भाग जो गंध की पहचान करता है, ध्राण -- मस्तिष्क कहलाता है । इसमें भय, क्रोध, आक्रामक, कामेच्छा आदि के भी केन्द्र अवस्थित है । ध्राणेन्द्रिय से उनके सम्बन्ध की संभावना की जा सकती है ।
प्राण केन्द्र पर ध्यान करने का अर्थ है वृत्तियों का परिष्कार । इससे नासाग्र - ध्यान के प्राचीन सूत्र का मूल्य समझने में सुविधा होगी ।

11 अप्रैल 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 52 - *बहिर्विहार आयोजन*

*समायोजन* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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Update

*2616 वां महावीर जयंती समारोह पर देश भर में आयोजित विभिन्न कार्यक्रम* -

👉 कूचबिहार
👉 रतनगढ़
👉 राजलदेसर
👉 मंडी आदमपुर
👉 श्री डूंगरगढ़
👉 विजयनगरम्

👉जींद
👉 मुदीगेरे (कर्नाटक)
👉 विजयनगर (बैंगलोर) - नशा मुक्ति अभियान एवं सफाई अभियान का आयोजन
👉 बैंगलोर - एक शाम प्रभु महावीर के नाम

प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
09 -04 -2017

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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी

📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 27📝

*आचार-बोध*

*19. आशातना*

आशातना का अर्थ है अशिष्ट व्यवहार। आय का अर्थ है सम्यग् दर्शन आदि की प्राप्ति और शातना का अर्थ है विनाश। जो आय का नाश करती है, वह आशातना है। इसके 33 प्रकार हैं। व्यवहार बदलते रहते हैं। इस दृष्टि से जिन 33 व्यवहारों का यहां उल्लेख है, उनमें से कई व्यवहार बदल जाने से कुछ आशातनाएं कृतार्थ हो गई हैं। जानकारी के लिए उन सबको यहां अविकल रूप से दिया जा रहा है--

*1.* शिष्य का गुरु से सटकर चलना।

*2.* शिष्य का गुरु से आगे चलना।

*3.* शिष्य का गुरु के समपार्श्व में (बराबर) चलना।

*4.* शिष्य का गुरु से सटकर खड़े रहना।

*5.* शिष्य का गुरु से आगे खड़े रहना।

*6.* शिष्य का गुरु के समपार्श्व में खड़े रहना।

*7.* शिष्य का गुरु से सटकर बैठना।

*8.* शिष्य का गुरु से आगे बैठना।

*9.* शिष्य का गुरु के समपार्श्व में बैठना।

*10.* गुरु के साथ शौचभूमि जाकर शिष्य द्वारा पहले शौच करना।

*11.* शौचभूमि या स्वाध्यायभूमि से साथ-साथ आने पर भी शिष्य द्वारा पहले गमनागमन विषयक आलोचना करना।

*12.* कौन सो रहा है और कौन जानता है? गुरु द्वारा ऐसा पूछने पर जागृत होने पर भी शिष्य द्वारा प्रश्न का उत्तर नहीं देना।

*13.* गुरु किसी आगंतुक व्यक्ति को जो बात कहना चाहें, उसे गुरु से पहले ही उसको कह देना।

*14.* आहार, पानी आदि लाकर शिष्य द्वारा पहले छोटे साधुओं के पास आलोचना कर फिर गुरु के पास आलोचना करना।

*15.* आहार, पानी आदि लाकर शिष्य द्वारा पहले छोटे साधुओं को दिखाकर फिर गुरु को दिखाना।

*16.* आहार, पानी आदि लाकर शिष्य द्वारा पहले छोटे साधुओं को निमंत्रित कर फिर गुरु को निमंत्रित करना।

*17.* शिष्य द्वारा भिक्षा में प्राप्त आहार आदि गुरु से पूछे बिना ही जिस किसी को दे देना।

*18.* गुरु के साथ सहभोजन की स्थिति में शिष्य द्वारा मनोज्ञ आहार जल्दी-जल्दी खा लेना।

*19.* गुरु के शिक्षा वचनों को सुना-अनसुना कर देना।

*20.* गुरु के सामने उद्दंडतापूर्वक बोलना।

*21.* गुरु के सामने 'क्या है' ऐसे उपेक्षापूर्ण वचन बोलना।

*22.* गुरु के सामने 'तू' 'तुम' ऐसे शब्दों का प्रयोग करना।

*23.* गुरु शिष्य को किसी कार्य का निर्देश दे, उसी भाषा में प्रत्युत्तर देना, जैसे-- 'आर्य! ग्लान की सेवा क्यों नहीं करते? यह बात सुन शिष्य कहे- 'तुम क्यों नहीं करते?'

*24.* गुरु की धर्मकथा का अनुमोदन नहीं करना।

*25.* धर्मकथा करते समय गुरु से कहना- यह बात आपको याद नहीं है।

*26.* गुरु की धर्मकथा का विच्छेद करना।

*27.* धर्मकथा कहते समय गुरु की धर्मसभा को भंग करना।

*28.* गुरु द्वारा की गई धर्मकथा को उसी परिषद में दोहराना।

*29.* गुरु के पट्ट आदि से पैर लगाने पर उन्हें अनुज्ञापित नहीं करना, उनसे क्षमा नहीं मांगना।

*30.* गुरु के शय्या, संस्तारकआदि पर खड़ा होना, बैठना और सोना।

*31.* गुरु से ऊंचे आसन पर खड़ा होना, बैठना और सोना।

*32.* गुरु के बराबर आसन पर खड़ा होना, बैठना और सोना।

*33.* गुरु द्वारा कुछ कहने पर अपने आसन पर बैठे-बैठे ही उसे स्वीकार करना, उसका प्रत्युत्तर देना।

(समवाओ 33/1)

*तपाचार व वीर्याचार* के बारे में जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 27* 📝

*आगम युग के आचार्य*

*ज्योतिपुञ्ज आचार्य जम्बू*

*समकालीन राजवंश*

जम्बू ने दीक्षा ली उस समय मगध पर श्रेणिक पुत्र कोणिक एवं अवंती पर चण्डप्रद्योत-पुत्र पालक का शासन था। जम्बू के आचार्य-काल में राज सत्ताएं बदल गईं। नरेश कोणिक का देहावसान आचार्य सुधर्मा के शासनकाल में ही हो गया था। जम्बू के आचार्यकाल में मगध पर उदायी का शासन था। कोणिक की भांति उदायी भी जैनधर्म के प्रति गहरा निष्ठावान था। उदायी का देहावसान पौषध वी. नि. 60 में (वि. पू. 410) में हुआ था। इस समय आचार्य जम्बू के काल के 40 वर्ष हो गए थे। नरेश उदायी के संतान न होने के कारण इस समय मगध पर शिशुनागवंशी शासकों की सत्ता डगमगा गई। जम्बू के निर्वाण के 4 वर्ष पूर्व की घटना है। मगध के राजा का चयन करने के लिए मंत्रीगण की सलाह से हथिनी को घुमाया गया। मस्त चाल से चलती हुई हथिनी ने नापित पुत्र नंद के गले में वरमाला डाली। तीन शतक से भी अधिक समय तक शिशु नागवंशी शासकों द्वारा संचालित मगध का राज्य नंदवंश के हाथ में आ गया। अवंती पर उस समय अवंतिवर्धन का शासन था।

अवंती नरेश पालक के दो पुत्र थे अवंतिवर्धन और राष्ट्रवर्धन। पिता पालक ने अपने शासनकाल के बीसवें वर्ष में उत्तराधिकार पद पर ज्येष्ठ पुत्र अवंतिवर्धन की एवं युवराज पद पर अपने द्वितीय पुत्र राष्ट्रवर्धन की नियुक्ति कर अपने राज्य को व्यवस्थित किया। उसके बाद नरेश पालक ने मुनि दीक्षा ग्रहण की।

अवंतिवर्धन के शासनकाल में अवंती राज्य में भारी उतार-चढ़ाव आए। नरेश अवंतिवर्धन राष्ट्रवर्धन की पत्नी धारिणी के सौंदर्य पर मुग्ध हो गया। अवंतिवर्धन ने राष्ट्रवर्धन को अपने मार्ग में बाधक समझकर मरवा दिया। धारिणी अपनी इज्जत बचाने के लिए जैन श्रमणी बन गई। अपना उत्तराधिकार राष्ट्रवर्धन के पुत्र अवन्तिसेन को सौंप अवंतिवर्धन ने भी मुनि दीक्षा ग्रहण की।

इस समय कौशांबी का शासक नरेश अजीतसेन था। अजितसेन के बाद नरेश मणिप्रभ ने कौशांबी राज्य का संचालन किया। मणिप्रभ और अवंतिसेन दोनों सहोदर थे एवं राष्ट्रवर्धन के पुत्र थे।

ये तीनों अपने युग के प्रभावी राजवंश थे। इन तीनों में मगध का राजवंश अधिक प्रसिद्ध था। भगवान महावीर और निर्ग्रंथ धर्म के प्रति इन राजवंशो की गहरी आस्था थी।

एक बार आचार्य सुधर्मा की मुनि मंडली में युवा मुनि जम्बू की तेजस्वी एवं सौम्याकृति को देखकर कोणिक ने प्रश्न किया आचार्यवर! ये मुनि कौन हैं? नरेश कोणिक की जिज्ञासा के समाधान में सुधर्मा ने जम्बू का परिचय दिया।

जम्बू की दीक्षा के समय मगधाधीपति कोणिक का होना, अष्टमी, चतुर्दशी को उदायी द्वारा पौषध-व्रत की आराधना तथा अवंतिवर्धन का एवं राष्ट्रवर्धन की पत्नी धारिणी का जैन-शासन में दीक्षित आदि प्रसंग राजवंशों में जैन संस्कारों के प्राबल्य के उदाहरण हैं।

*अंतिम केवली जम्बू को केवल्य प्राप्ति व उनके जीवन के समय-संकेतों* के बारे में विस्तार से जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*प्रेक्षाध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ*

अनुक्रम - *भीतर की ओर*

*प्राण केन्द्र --[ 3 ]*

नाक ध्राणेन्द्रिय है । इसके द्वारा गंध का संवेदन होता है । मस्तिष्क का एक भाग जो गंध की पहचान करता है, ध्राण -- मस्तिष्क कहलाता है । इसमें भय, क्रोध, आक्रामक, कामेच्छा आदि के भी केन्द्र अवस्थित है । ध्राणेन्द्रिय से उनके सम्बन्ध की संभावना की जा सकती है ।
प्राण केन्द्र पर ध्यान करने का अर्थ है वृत्तियों का परिष्कार । इससे नासाग्र - ध्यान के प्राचीन सूत्र का मूल्य समझने में सुविधा होगी ।

11 अप्रैल 2000

प्रसारक - *प्रेक्षा फ़ाउंडेशन*

प्रस्तुति - 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻

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*श्रावक सन्देशिका*

👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
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*समायोजन* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....

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News in Hindi

👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 16.5 किमी का विहार..
👉 आज का प्रवास - राजगीर
👉 आज के विहार के दृश्य..

दिनांक - 11/04/2017

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प्रस्तुति - 🌻 तेरापंथ संघ संवाद 🌻

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11अप्रैल का संकल्प

तिथि:- चैत्र शुक्ला पूर्णिमा "पक्खी"

पंद्रह दिन में एक बार करें आत्म-स्नान।
आदान-प्रदान क्षमा का तज अभिमान।।


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  1. आचार्य
  2. आचार्य श्री महाप्रज्ञ
  3. दर्शन
  4. महावीर
  5. मुक्ति
  6. राजगीर
  7. सत्ता
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