13.04.2017 ►STGJG Udaipur ►News

Published: 13.04.2017

News in Hindi

99 वर्ष की उम्र में #हरकीबाई_नाहर ने #घोड़नदी #महाराष्ट्र में लिया #संथारा। आज दूसरा दिवस।
#जैन

Source: © Facebook

#धर्म के आधार पर देखा जाए तो #जैन धर्म की #आबादी ज़्यादा #शिक्षित है

Source: © Facebook

परस्पर सद् भाव का अनूठा मेल, एक ही मंच से राम व तीर्थंकरों के गुणों का बखान
राजधानी के धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजनों के अध्याय में बुधवार को रामकथा का एक ऐसा सुनहरा पृष्ठ जुड़ गया, जो लोगों को सदैव याद रहेगा। स्थल था इकबाल मैदान और कथा का वाचन कर रहे थे जैन संत छुल्लक ध्यान सागर महाराज। णमोकार मंत्र गूंजा और राम नाम संकीर्तन भी। इसके साक्षी बने हिंदू और जैन समुदाय के हजारों लोग।

शहर में यह पहला मौका था, जब कोई जैन संत मर्यादा पुरुषोत्तम राम की कथा का लोगों को श्रवण करा रहे थे। दोनों समुदायों के बीच प्रेम व सद्भाव की एक नई और अनूठी मिसाल दिखाई दी जब कथा के चलते जैन तीर्थंकरों की चर्चा हुई और राम के गुणों का बखान भी। संतश्री ने कहा कि राम ऐसे महापुरुष हुए, जिन्होंने अपने आचरण और चरित्र से लोगों को संदेश दिया कि रिश्तों की मर्यादा को कैसे कायम रखा जाए। संतश्री ने कहा कि भगवान राम पर करीब 300 रामायण लिखी जा चुकी हैं। इनमें महर्षि वाल्मीकि की रामायण, संत गोस्वामी तुलसीदास द्व‌ारा रचित रामचरित मानस, प्राकृत रामायण, दांडी रामायण, रंगनाथ रामायण आदि शामिल हैं। इन सभी में राम के चरित्र के माध्यम से विश्व को प्रेम, सद्भाव, त्याग व सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया गया है।

कौन बेहतर है,कौन बदतर। इसमें पड़ने से बचें। नजरिया बदलने से नजारा बदल सकता है।

आचार व्यसन मुक्त व विचार सद्भावना युक्त होने चाहिए।

अभिमान सत्य को पाने के बीच सबसे बड़ी अड़चन है।

राम के चरित्र से मिली प्रेरणा

संतश्री सागर ने कहा कि कई ग्रंथ पढ़े पर राम जैसा बिरला व्यक्तित्व कोई दूसरा नहीं दिखाई दिया। राम के जीवन चरित्र ने ही रामचरित मानस पढ़ने और राम कथा करने के लिए प्रेरित किया।

श्रीराम के कई पूर्वज राजपाट छोड़कर संन्यास के मार्ग पर गए, लेकिन वे सभी अपने उत्तरदायित्वों के प्रति सदैव सजग रहे। ब्रह्मा के पुत्र भरत के दो पुत्र थे। अर्थ कीर्तिधर और बाहुबली। अर्थ कीर्ति सूर्यवंशी थे, जिनके वंशज श्रीराम हुए। राजा कीर्तिधर ने अपने पुत्र सुकौशल को बाल्यकाल में ही राजपाट सौंपा और संन्यास ग्रहण कर लिया। बाद में उनके पुत्र ने भी अपने पिता की तरह संन्यास की दीक्षा ली। आशय है कि श्रीराम के वंश में त्याग की परंपरा पूर्वजों के समय से ही रही है।

श्रीराम के पूर्वज भी गए थे संन्यास की राह पर

पुष्करवाणी गु्रप ने कहा कि भिलाई निवासी संत सागर का जन्म 9 अप्रैल 1963 में वैष्णव परिवार में प्रेम चंद्र पंड्या के यहां हुआ। संतश्री ने 22 वर्ष की आयु में एमबीबीएस की तीसरे वर्ष की पढ़ाई करते वक्त ही संन्यास धारण कर लिया था। उन्हें जिनेंद्र वाणी की पुस्तक शांति पथ प्रदर्शन से संयास की प्रेरणा मिली। उन्होंने वर्ष 1985 में आचार्यश्री विद्यासागर महाराज से दीक्षा ग्रहण की। रामचरित मानस के साथ ही संस्कृत भाषा व शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी ली। दीक्षा से पूर्व उनका नाम प्रकाश था। जैनेश्वर दीक्षा के बाद उनका नाम ध्यान सागर हो गया।

Source: © Facebook

Sources

Source: © FacebookPushkarWani

Shri Tarak Guru Jain Granthalaya Udaipur
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Sthanakvasi
        • Shri Tarak Guru Jain Granthalaya [STGJG] Udaipur
          • Institutions
            • Share this page on:
              Page glossary
              Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
              1. Guru
              2. Shri Tarak Guru Jain Granthalaya Udaipur
              3. Udaipur
              4. भाव
              5. महाराष्ट्र
              6. राम
              7. सागर
              Page statistics
              This page has been viewed 960 times.
              © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
              Home
              About
              Contact us
              Disclaimer
              Social Networking

              HN4U Deutsche Version
              Today's Counter: