27.04.2017 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 27.04.2017
Updated: 29.04.2017

Update

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जी ने दो दक्षिण के युवा साधकों को कर्मनाशिनी जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान की थी वर्ष 1980 में सदलगा जिला-बेलगाँव के ही दो युवा अनन्तनाथ अष्टगे व महावीर प्रधाने। एक 24 साल के व एक 23 साल के युवा,दोनों ही श्यामवर्णी,लंबे चिट्ठे शरीर वाले व सौम्यमूर्ति साधक।37 वर्षों से निर्दोष मुनिचर्या के पालक ज्येष्ठ द्वयमहामुनि श्री योगसागर जी श्री नियमसागर जी के दीक्षा दिवस पर कोटिशः नमोस्तु

नियमसागर जी* महाराज का जीवन संक्षिप्त परिचय!

ऐसा देखा जाता है की मनुष्य जीवन में परिवर्तन के लिये *स्कूल पाठ्यक्रम में महान पुरुषो के जीवन चरित्र का समावेश किया जाता है ताकि विद्यार्थी जिसे ग्रहण कर अपने जीवन में भी उच्च आदर्श को स्थापित कर सकें ।* परमार्थ उत्थान के लिए क्या यह आवश्यक नहीं है?यह प्रश्न प्रत्येक भव्य जीव के लिए *अन्तरंग का विषय है या यो कहें कि कब लाब्धि आती है तो ऐसा सहज ही हो जाता है । फिर भी अन्तरंग के लिये प्रेरणा आवश्यक है*। यहाँ हमारे प.पू. श्री 108 नियम सागरजी महाराज के जीवन की संक्षिप्त में एक घटना प्रस्तुत की जा रही है ।_

_*🏵राग से वीतराग का प्रवास🏵*_

_उम्र *१८ वर्ष - जनवरी १९७५* के समय वैराग्य रूपी मन में हलचल चल रही थी घर से बहार जाने की तैयारी चल रही थी। *यह घटना उनके जन्म स्थली पवन भूमि सदलगा कर्नाटक* की है ।_

_उस समय *प.पू. श्री सुबलसागर जी* महाराज का सदलगा ग्राम में वास्तव्य था और ये उनसे परिचित और प्रभावित थे।_
_प.पू. श्री सुबल सागर जी महाराज एक दिन संसार - बिन्दु कथा का प्रवचन कर रहे थे, उस समय आप भी उस कथा को ग्रहण कर रहे थे । आपके मन में *इस कथा को सुनकर वैराग्य अंकुर उदित हुआ*(वाचकगणों ने भी संसार - बिन्दु कथा सुनी होगी विषयान्तर न हो इसलिए इस कथा को नहीं दे रहे है) प.पू. महाराज जी के निर्देश से इनके मन में उस संघ में ज्ञानार्जन और दीक्षा की तैयारी चल रही थी । इनको संघ में ६ वर्ष रहकर अध्ययन करना था फिर उसके बाद दीक्षा थी ।_

_एक दिन ये सदलगा बस स्टेण्ड पर खड़े हुए थे,अनायास श्री पारस जी इनसे पूछते हैं कि आप प.पू.श्री १०८ सुबल सागर जी के संघ में जानेवाले हो? तो इन्होंने अपने मन की स्थिति हाँ स्वरुप में दे दी । इसके बाद श्री पारस जी ने कहा कि *अजमेर (राजस्थान) में प. पू. श्री १ ० ८ विद्यासागर जी महाराज है, वहाँ आपको ले चलते है । अध्ययन भी हो जायेगा और दीक्षा भी हो जायेगी।* लेकिन सुबल सागर जी के संघ में शामिल होने का विचार बना चुके थे । वे बुरा नहीं माने इसलिए ये व पारसजी मिलने गए और अपने विचारों से अवगत कराया । प. पू. श्री १ ० ८ सुबल सागर जी महाराज ने सुनकर तुरंत स्वीकृति दे दी और शुभ तिथि भी तय कर दी । वह *५ फरवरी १९७५* का दिन था जब इन्होंने मिरज से अजमेर की यात्रा प्रारंभ कर दी थी ।_

_मिरज से ट्रेन द्वारा मुंबई रतलाम होकर अजमेर पहुँचे, वहा मालुम हुआ कि प.पू.श्री. १०८ आचार्य श्री विद्यासागर जी का विहार हो चुका है । *वहा से ६० कि. मी. दूर किसानगढ़ में विराजमान थे ।* इन्होंने तुरंत किसानगढ़ की ओर यात्रा शुरू रखी और रात्रि साढे दस बजे आचार्य श्री के दर्शन हुए । सर्दी का मौसम था आचार्य श्री एकान्त में लीन थे । वही उनसे मौन स्थिति में वार्तालाप हुई ।_

_वार्तालाप का संक्षिप्त सार इस प्रकार है!!_
_*१. शिक्षा कितनी हुई है............... बी. एस. सी. (द्वितीय वर्ष)*_
_*२. ज्ञानार्जन के बाद क्या.............हम तुरंत दीक्षा चाहते हैं ।*_
_*३. कटिंग करवानी होगे - करोगे.....तुरंत हाँ ।*_

_तो ठीक है कल कटिंग करवा कर ड्रेस बदलना।आचार्य श्री आज्ञानुसार दूसरे दिन कटिंग व ड्रेस बदल के साथ संघ में प्रवेश हुए । फिर ब्रम्हचर्य का नियम लेकर अध्ययन चालू कर दिया । उस समय *संघ में सिर्फ एक क्षुल्लक जी व तीन ब्रम्हचारी थे* ।_

_कुछ समय के उपरान्त आचार्य श्री का विहार किसनगढ़ से मथुरा - आगरा होते हुए फिरोजाबाद में चातुर्मास हुआ। चातुर्मास के बाद इनकी दीक्षा होनी थी लेकिन अचानक चारों ब्रम्हाचार्यो को तीव्र बुखार आ गया उनमें से किसी एक का स्वास्थ्य जादा ख़राब हो गया इन्हें उनकी सेवा के लिये दो - तिन महिने रुकना पड़ा । आचार्य श्री का फिरोजाबाद से सोनागिरि की ओर विहार हो गया था |ये वहाँ पर तीन महिने बाद आचार्य श्री के पास पहुँचे और दीक्षा के लिये निवेदन किया। *आचार्य श्री ने सहमति देते हुए १८ दिसम्बर १९७५ की तिथि निश्चित की।इस प्रकार सोनागिरि जी सिद्ध क्षेत्र में बाहुबली भगवान की मूर्ति के सामने इनकी क्षुल्लक दीक्षा हुई ।*_

_●आपके जीवन में भी ऐसी घटना हो और आप कल्याण मार्ग में लग सकें ऐसी भावना रखते हैं। ●_

*🌦कुछ विशेष जानकारियाँ🌦*
_☀नियम सागर जी *,आचार्य श्री जी के संघ में 3 नंबर के महाराज* जी है।_

_☀आचार्य श्री जी से 15 अप्रैल 1980 को *वैशाख कृष्ण अमावस्या को मोराजी (सागर)* में आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की थी।।_

_☀नियम सागर जी *मौन प्रिय, उत्कृष्ट विद्वान् और एक बहुत अच्छे पेन्टर* भी है।_

_☀हम जो *विद्यासागर विश्ववंद्य श्रमणम् ------*(कृति-विद्याष्टकम) पढ़ते है वह नियम सागर जी ने लिखा है।।_

_☀नियम सागर जी महाराज वर्तमान *कुंथलगिरी सिद्धक्षेत्र (जिला - उस्मानाबाद, महाराष्ट्र)* में विराजमान है!!_

_☀अनेक मुनि जो की अभी आचार्य भगवंत से दीक्षित हैं उन्हे वैराग्य पूज्य नियम सागरजी महाराज जी के कारण ही हुआ हैं ।अर्थात उन सबके *मोक्षमार्ग में वे प्रेरणा स्त्रोत* रहें...._
●मुनिवर श्री ऋषभसागरजी
●मुनिवर श्री नेमीसागर जी
●मुनिवर श्री चंद्रप्रभसागर जी
●मुनिवर श्री सौम्यसागरजी
●मुनिवर श्री अक्षयसागरजी
●मुनिवर श्री सुपार्श्वसागर जी
●मुनिवर श्री स्वभावसागर जी
●मुनिवर श्री निष्कम्पसागर जी
_ऐसे अनेक साधु मुनिश्री जी प्रेरणा स्वरूप वैराग्य पथ पर आगे बढे हैं!!_
🥀🥀🥀🥀
_पूज्य महाराज श्री जी के मोक्षगामी श्री चरणों में सादर नमोस्तु और दीक्षा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

••••••••• www.jinvaani.org •••••••••
••••••• Jainism' e-Storehouse •••••••

#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #AcharyaVidyasagar

Source: © Facebook

आज के शुभ दिन मोराजी,सागर में संत शिरोमणि आचार्यवर्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने 37 साल पूर्व वैशाख माह की अमावस्या तिथि को सदलगा के निवासी व अपने अनुज भ्राता ब्र. अनन्तनाथ अष्टगे व सदलगा के ही अपने पड़ौसी ब्र. महावीर प्रधाने को क्षुल्लक, ऐलक दीक्षा के उपरांत मुनि दीक्षा प्रदान की थी,सागर में सादे समारोह में दो युवा ऐलकों का दीक्षा समारोह देखने के लिए हजारों की भीड़ उमड़ी थी क्रमशः दोनों को मुनि योगसागर व मुनि नियमसागर नाम दिया आज दोनों मुनिराज वसुधा पर वीर देशना का जन-जन के मध्य प्रचार-प्रसार कर रहे है

*🌿मुनि योगसागर जी महाराज🌿*
मलप्पा जी व श्रीमति जी की तीसरी संतान ब्र.अनन्तनाथ अष्टगे प्रारंभ से धार्मिक वातावरण में पले-बढ़े थे अग्रज भ्राता विद्याधर की मुनि दीक्षा के वक्त उम्र मात्र 12 वर्ष थी तब से लगातार संघ में आना-जाना बना रहा व एक बार जब पिताजी माताजी व बहनों ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया तो स्वयं भी छोटे भाई के साथ आचार्य विद्यासागर जी के संघ में ही रुक गए व 2 मई 1975 को आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया आचार्य श्री के वरद हस्तकमलों से आपने क्षुल्लक, ऐलक व मुनि दीक्षा प्राप्त की व क्रम से साधना के सोपान पूर्ण करने लगे आप 1994 के श्रवणबेलगोला मस्तकाभिषेक में भी उपस्थित रहे थे वहाँ आचार्य वर्धमानसागर जी के साथ चातुर्मास सम्पन्न किया,पश्चात पुनः आचार्य श्री के संघ में रहकर साधना करते रहे व अपने अनुज मुनिराजों को धर्म के गूढ़तम रहस्यों का ज्ञान कराया,मुनि श्री अच्छे चिंतक व कवि भी है तभी तो कई काव्य ग्रन्थों का आपने पद्यानुवाद किया है,आपने न्यायदर्शन व अध्यात्म का गूढ़तम ज्ञान अर्जित किया है आज आप संघ में उपाध्याय की भूमिका निभाते है आचार्यश्री के पश्चात संघ में आप सबसे ज्येष्ठ है इस कारण संघ के सभी अन्य साधूओं को प्रतिपल मोक्षमार्ग पर बढ़ने का उपदेश देना उनकी शंकाओं का समाधान करना,अध्ययन कराना आदि कार्य आप सहजता से पूर्ण करते है,आपके वात्सल्य से पूरा संघ व सभी उपसंघ अभिभूत है,ऐसे अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी आत्मार्थी साधक के चरणों में त्रिकाल नमोस्तु व ऐसी कामना की आप अतिशीघ्र शिवालय के सभी सोपान पूर्ण कर परम पद में स्थिर होवें

*🌿मुनि नियमसागर जी महाराज🌿*
बाबूराव जी प्रधाने व सोनाबाई जी की पहली संतान महावीर प्रधाने भी सदलगा के धार्मिक वातावरण में पले बढ़े थे,एक बार प.पू. सुबलसागर जी महाराज *संसार बिन्दु* कथा पर प्रवचन कर रहे थे,उसे सुनकर आपको वैराग्य हुआ आपको संघ में ही रहकर प.पू. सुबलसागर महाराज जी से धार्मिक ज्ञान प्राप्त करना था व वही ६ वर्ष बाद दीक्षा लेने का निश्चय किया तभी निमित्त स्वरूप एक दिन सदलगा के ही पारसप्पा जी से मिलना हुआ उन्होंने पूछा कि आप प.पू. सुबलसागर जी से दीक्षा लेने वाले है ना? उत्तर मिला-हाँ। उन्होंने कहा आपको अजमेर ले चलते है वहाँ प.पू. विद्यासागर जी महाराज है युवा साधक है,वही ज्ञानार्जन भी हो जाएगा व दीक्षा भी..... सुबलसागर जी के सामने बात रखी महाराज जी राजी और तुरंत तिथि भी महाराज जी ने तय कर दी...!!

मिरज से ट्रेन द्वारा अजमेर पहुंचे आचार्य श्री का विहार किशनगढ़ तरफ हो गया था वहाँ से किशनगढ़..!!
रात्रि 10.30 बजे आचार्य श्री के दर्शन मिले,सर्दी के दिन थे। मौन चर्चा हुई दूसरे दिन कटिंग कराके ड्रेस बदला दी गई, आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत मिल गया संघ में एक क्षुल्लक व तीन ब्रह्मचारियों के साथ आपका अध्ययन आरंभ हुआ,सोनागिरी सिद्धक्षेत्र में बाहुबली की मूर्ति के सामने आपकी क्षुल्लक दीक्षा हुई व सागर में मुनिदीक्षा..
संस्कृत में विशेष रुचि के कारण आचार्य श्री ने आपको संस्कृत भाषा का विस्तृत अध्ययन करवाया,संघ में रहकर कई महत्वपूर्ण विषयों का अध्ययन आपने सहज ही कर लिया क्षयोपशम के साथ-साथ प्रवचन शैली भी मनमोहक थी और साथ ही एक और गुण था 🦋चित्रकारी का🦋
उपसंघ बनाकर आपको आचार्य श्री ने दक्षिण भारत में प्रभावना हेतु भेजा अपनी आगमोक्त चर्या व सुस्पष्ट प्रवचन शैली ने जल्दी हो लोगों को प्रभावित किया,आपने अपने प्रवचनों में लोगों को स्वाध्याय की प्रेरणा दी व मिथ्यात्व से दूर हटने का संदेश... इससे लोगों की वर्षों से बंद आँखें खुल गई क्योंकि आज तक धर्म के ठेकेदारों ने भोली-भाली जनता को केवल दर्शन-पूजन तक ही सीमित रखा था,व धर्म का परिभाषा मात्र यही बताई कि अधिक से अधिक दान दो,भट्टारकों की/पण्डितों की सेवा-पूजन करो..जब लोगों ने स्वयं स्वाध्याय शुरु किया व व्रतों को ग्रहण किया तो उन्हें धर्म के यथार्थ स्वरुप का बोध हुआ,श्रावक षटावश्यकों के पालन की तरफ अग्रसर हुए,वर्षों से लगा मिथ्यात्व रुपी मैल छूटने लगा,और आज उसका परिणाम सामने आ रहा है दक्षिण के बहुतेरी जनता सद् धर्म से जुड़ी है,मिथ्यात्व का शमन हुआ है,इसे नियम देशना का ही प्रभाव कहे तो अतिशयोक्ति न होगी

*❄एक और महत्वपूर्ण बात❄*

*मुनि श्री 37 वर्ष पूर्व दीक्षित है और लगभग 30 वर्ष से उपसंघ का संचालन कर रहे है आपके बाद के दीक्षित मुनि,जिनको आपने बालक अवस्था में देखा था आज वह आचार्य बन गए पर धन्य है नियमसागर जी मुनिराज जो 37 वर्ष की लंबी साधना करने के उपरांत भी सारी योग्यताएँ होते हुए भी किसी पद या उपाधि की आकांक्षा नहीं रखते अन्यथा आज न जाने कितने बड़े आचार्य बनते? किन्तु गुरुआज्ञा को शिरोधार्य कर 37 वर्ष तक आपने पंच महाव्रतों का निर्दोष पालन किया ऐसे ख्याति पूजा लाभ से सर्वथा दूर अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी महाश्रमण नियमसागर महामुनिराज के चरणों में त्रिकाल नमोस्तु इस भावना से आप शीघ्र संसार सिंधू को तैरकर मोक्षतट पर पहुँचे👏🏻👏🏻👏🏻

Source: © Facebook

Update

The Ideal conduct followed by Digambara Saints [ Nude Jaina Sky-clad Ascetics ]

'Dig' means directions & 'Ambara' means sky. For Digambara Saints, the sky is their clothing; they do not wear anything in cold, winter and scorching summers. They sleep on wooden planks and deny all comforts in life. They walk bare footed in all direction for miles because they believe in 'Ahinsa [ Non-voilece]' & are careful; they do not hurt any living creature. They keep moving from place to place to avoid arousal of sense of possessiveness. These saints lead an ascetic life & it is very hard to understand the kind of penance they undertake. They pluck or uproot their hair frequently by pulling them one by one to test their patience and will power. They fast and meditate in the desert. In order to control their mind, they practice controlling their body. They have meal only once a day in a standing posture using their palms as a plate at around 10:00 a.m. and will not have even water till the next morning meal. Most of the saints do not take salt & sugar in their meals because they say it is only the intake of salt & sugar that arouses all the flavors in life. In the journey of salvation the body is essential vehicle and so we have to fill it with gasoline but taste is not necessary. Presently Digambara Ascetic cum leader Acarya VidyaSagara G is living without salt and sugar for last 42 years. The tolerance of this saint is amazing. Acarya SanmatiSagara G is a great example who only took curd and water for more than 5 years. When they fall seriously ill or in old age- they take up 'Samadhi' which means giving up food and water & welcoming death. This is called the art of dying which is most difficult truth to be faced by each human being.

--- www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---

#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #Nonviolence

Source: © Facebook

News in Hindi

#रविवारीय_विद्यावाणी रविवासरीय प्रवचन श्रंखला में आचार्यश्री ने चन्द्रगिरि डोंगरगढ़ में मांगलिक उपदेश देते हुये कहा कि एक स्थान पर गुरु महाराज के उपदेश हो रहे थे सर्वत्र हिंसा की बात ठीक नही मानी जा रही थी सुख, सुविधा,शान्ति,के लिए सभी को हिंसा का त्याग करना आवश्यक है।

यह बात सभी को समझ में आ गई सभी ने यथाशक्ति संकल्प लिया। समीप के बिल में एक *सर्प* भी सुन रहा था उसने भी किसी को भी *काटने का त्याग करने का संकल्प लिया। जैसे ही अन्य लोगो को यह बात पता चली तो लोग उसको परेशान करने लगे एक दिन वह गुरु चरणों में पहुच अपनी व्यथा बताता है तब मुनिराज ने कहा आपने किसी को भी काटने का त्याग किया है फुफकारने का नही किया। यह गुरुमंत्र उसने महामंत्र के रूप में स्वीकार कर लिया। गुरु उपदेश सुनकर एक ऐसा विषधर जिसके काटने तो दूर, उसकी लाल लाल आँखों के देखने मात्र से व्यक्ति मर सकता है। जब वह हिंसा का त्याग कर सकता है तब हम अपने व्रतों,अणुव्रतों को ग्रहण करके उसका पालन क्यों नही कर सकते

प्रस्तुति, राजेश जैन

••••••••• www.jinvaani.org •••••••••
••••••• Jainism' e-Storehouse •••••••

#Jainism #Jain #Digambara #Nirgrantha #Tirthankara #Adinatha #LordMahavira #MahavirBhagwan #RishabhaDev #Ahinsa #AcharyaVidyasagar

Source: © Facebook

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Acarya
          2. Ahinsa
          3. Body
          4. Digambara
          5. JAINA
          6. Jaina
          7. Jainism
          8. JinVaani
          9. Nirgrantha
          10. Nonviolence
          11. Tirthankara
          12. Tolerance
          13. आचार्य
          14. कृष्ण
          15. ज्ञान
          16. दर्शन
          17. दस
          18. पूजा
          19. महाराष्ट्र
          20. महावीर
          21. राजस्थान
          22. सागर
          Page statistics
          This page has been viewed 2297 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: